moral stories in hindi :नैना इशारों -इशारों में अपने माता-पिता को जल्दी से तैयार होने के लिए कहती है।आज नैना के ब्यूटी पार्लर का उद्घाटन है।पिछले कुछ समय से शहर के पाॅश इलाके में अपना ब्यूटी पार्लर खोलने का उसका सपना था,जो आज साकार होने जा रहा है।खुशी से उसके कदम बार-बार थिरक उठते हैं और वह माँ को गले लगा लेती है।
माँ सुनयना जी की भी खुशी का कोई पारावर नहीं है।नैना तैयार होकर माता-पिता के साथ पार्लर पहुँच जाती है।अभी सारे मेहमान नहीं आए थे।नैना वहाँ की व्यवस्था देखने लगती है।उसके माता-पिता कुर्सी पर बैठ जाते हैं।
नैना की माँ सुनयना जी आँखें बंद कर नैना के बचपन की यादों में खो जाती हैं।दो भाईयों के बाद नैना का जन्म हुआ था।सुनयना दम्पत्ति प्यारी-सी गुड़िया पाकर निहाल थे।वे बिना भेदभाव के तीनों बच्चों की परवरिश कर रहें थे।कुछ समय पश्चात् उन्हें एहसास हुआ कि नैना सामान्य बच्ची नहीं है।दिखाने पर उनके अरमानों पर वज्रपात करते हुए डाॅक्टर ने कहा -” मैडम!यह बच्ची जन्मजात गूँजी और बहरी है।इसका कोई इलाज नहीं है!”
डाॅक्टर की बातें सुनकर सुनयना दम्पत्ति को तो पलभर के लिए दुनियाँ घूमती नजर आई।उन्हें बेटी का भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा।बेटी की चिन्ता में सुनयना जी का हृदय बेबसी से भीतर-भीतर तड़प रहा था।बेटी के भविष्य की चिन्ता में उनके हृदय का सूना कोना रात के अंधकार में चीख उठता।उनकी बेचैनी देखकर उनके पति समझाते हुए कहते -” सुनयना!हौसला रखो।हम बेटी की परवरिश में कोई कमी नहीं रखेंगे।हम अपनी तीनों संतान को एक आँख से देखेंगे।”
वक्त बहुत बड़ा मलहम होता है।सुनयना दम्पत्ति अपने बच्चों की परवरिश समान भाव से करने लगें।अनेक शारीरिक परेशानियों बाद भी नैना ने बारहवीं की परीक्षा पास कर ली।अब आगे पढ़ना उसके लिए मुमकिन नहीं था।उन्होंने नैना की हौसलाअफजाई करते हुए उसे ब्यूटीशियन का कोर्स करा दिया। कुछ ही समय में नैना की गिनती शहर के अच्छे ब्यूटीशियन में होने लगी। आज नैना उनके सहयोग से बैंक से लोन लेकर अपना भव्य ब्यूटी पार्लर खोलने जा रही
नैना उनकी तंद्रा भंग करते हुए इशारों में उन्हें मंच पर बुलाती है।नैना के हाथों ब्यूटी पार्लर का उद्घाटन होते ही सभी करतल ध्वनि के साथ उसका उत्साहवर्धन करते हैं।नैना अपने माता -पिता से गले मिलती है।माता-पिता भी मानो अपने स्नेह का संचित कोष उसपर आज ही उड़ेल देना चाहते हों। इस भावुक दृश्य को देखकर सभी अतिथि की आँखें खुशी से छलछला उठतीं हैं।
सचमुच अगर सभी माता-पिता अपने दिव्यांग बच्चों को सामान्य बच्चों संग एक आँख से देखें,तो उनकी भी दुनियाँ सँवर सकती है।समाज उन्हें कभी भी उपेक्षित दृष्टि से नहीं देखेगा।
समाप्त।
लेखिका-डाॅ संजु झा।