दफ्तर के खुलने का समय हो चुका है, सब अपने कंप्यूटर्स ऑन कर रहे है ।
शिशिर-रवि अयोध्या परियोजना से व्यय की जो स्टेटमेंट आनी थी आ गई क्या ?
रवि (हँसते हुए)-सर मेल तो आ गया है पर उसमे अटैचमेंट ग़लत लगा दी है ।
शिशिर-उन्हें रिप्लाई कर इन्फॉर्म करो।
शिशिर के जाते ही रवि खूब जोर हँसा और अपने पड़ोस में बैठे अंकित को ईमेल दिखाया और कहा यार देखो स्टेटमेंट की जगह अयोध्या के असिस्टेंट ने अपने बच्चे का टाइम टेबल लगा दिया है।
अंकित और रवि दोनों हँसने लगे । रवि ने मेल का रिप्लाई कर सही अटैचमेंट मांगा और अयोध्या के असिस्टेंट को कॉल किया और कहा सर वो व्यय का स्टेटमेंट भेज दीजिए तुरंत।
असिस्टेंट-मैंने तो वो कल ही भेज दिया ।
रवि (हँसते हुए)-आप अटैचमेंट में देखिए तो क्या लगा कर भेजा है।
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असिस्टेंट ने मेल देखा और ग़लत अटैचमेंट के लिए माफ़ी माँगी ।
आज रवि की सीट पर जो भी आता रवि सबको वो मेल दिखाता और मजाक बनाता । रवि रोहित सर को भी वो अटैचमेंट दिखाने लगा तभी रोहित ने कहा-अरे उसके (अयोध्या के असिस्टेंट) पिताजी की तबीयत ठीक नहीं है तब भी वो हॉस्पिटल से काम कर रहा है तभी गलती से कुछ का कुछ सेंड हो गया । रोहित ने रवि को वो मेल डिलीट करने कहा ताकि इसे और लोग ना देखे और मज़ाक ना बनाए,क्यूंकि वो भी हमारी कंपनी का मेम्बर है उसका मज़ाक़ बनना मतलब अपना अपमान ।
रोहित के जाते ही रवि को आत्मग्लानि हुई कि मेल मैं भी डिलीट कर सकता था पर मैंने तो उसके मेल का मज़ाक बनाया, और उसके अपमान में मैं अपना सम्मान और ख़ुशी महसूस कर रहा था, पर रोहित सर ने बता दिया कि दूसरों के सम्मान में ही अपना सम्मान है ।
आदरणीय पाठकों,
ये वाक्या मेरे कार्यालय का है । हमारी दिनचर्या रोज़ हमें कुछ ना कुछ नया सिखाती है तभी तो कहा गया है जीवन एक पुस्तक की तरह है, हर दिन एक नया पृष्ठ जोड़ता है। जीवन से हर दिन कुछ सीखते रहना ही सफलता की कुंजी है।
धन्यवाद।
स्वरचित एवं अप्रकाशित।
रश्मि सिंह
नवाबों की नगरी (लखनऊ)