ओमप्रकाश एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे । उनका छोटा सा परिवार था माता-पिता , पत्नी और दो लड़कियाँ थीं । जितना भी वे कमाते थे उससे उनकी ज़िंदगी आराम से गुजर जाती थी । पिता पोस्ट मास्टर करके रिटायर हो गए थे और उन्होंने एक घर भी बना लिया था । इसलिए भी ओमप्रकाश जी को तकलीफ़ नहीं होती थी क्योंकि उन्हें किराए के घर में नहीं रहना पड़ता था ।
ओमप्रकाश बहुत ही सीधे स्वभाव के थे । जब भी किसी को मदद की ज़रूरत होती तो मदद के लिये हमेशा आगे रहते थे । दूसरों की मदद पैसों से नहीं कर पाते थे पर अपने बातों से उनका हौसला बढ़ाने का काम ज़रूर कर दिया करते थे । उन्हें लगता था कि वे जैसे दूसरों की तकलीफ़ को समझते थे वैसे ही सब होंगे । पत्नी रजनी हमेशा कहती है आप ही हो जो लोगों के लिए भागते हो पर देखना जब आपको ज़रूरत होगी
तो कोई आगे नहीं आएगा तब मेरी बात आपको समझ में आएगी । मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ दुनिया ऐसी ही है । ओमप्रकाश हँस कर वहाँ से चले जाते थे । उनकी बड़ी बेटी ने डिग्री किया था पढ़ने में अच्छी थी और बहुत सुंदर थी । ओमप्रकाश जी एकदम निश्चिंत रहते थे क्योंकि उन्हें मालूम था कि उनकी सुंदर सुशील लड़कियों के लिए रिश्ते आ ही जाएँगे ।
उन्हें किसी के पास जाने की ज़रूरत नहीं है । जैसे इनकी सोच थी वैसा ही हुआ बड़ी लड़की के लिए बहुत ही सुंदर और योग्य लडके का रिश्ता आया बिना दहेज लिए ही वे शादी कराना चाह रहे थे ।ऐसे महँगाई के समय बिना दहेज लिए रिश्ता होना बहुत ही ख़ुशी की बात थी । रिश्ता पक्का हो गया न न करते करते बहुत सा पैसा ख़र्च हो रहा था ।
बड़ी लड़की है घर में पहली शादी है इसलिए थोड़ा बजट डगमगा रहा था । उन्होंने ने और पत्नी ने मिलकर सोचा चाचा या मामाओं से उधार माँग लेते हैं फिर धीरे-धीरे चुका देंगे । उनकी सोच को सुन ओमप्रकाश के पिता ने कहा कि मेरे भाई हैं मैं ही उनसे माँग लेता हूँ वैसे भी यहाँ जो उनका घर है उसकी पूरी देखभाल तू ही तो करता आ रहा है ।
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इसलिए अब तुझे मदद की ज़रूरत है तो तेरी मदद वे लोग भी ज़रूर करेंगे । यह कहकर उन्होंने भाई को फ़ोन घुमाया उन्हें पक्का यक़ीन था कि वहाँ बात बन जाएगी उन्हें कहीं और जाने की ज़रूरत नहीं है । वहाँ से क्या बातें हुई क्या जवाब मिला मालूम नहीं पर ओमप्रकाश के पिता राघवजी बहुत ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रहे थे तुम्हारे लिए मेरे बेटे ने क्या नहीं किया
जब भी फ़ोन पर तुमने काम बताया उसी समय जाकर उसने उस काम को निपटाया तुम लोगों को कृतज्ञता ही नहीं है वैसे भी वह उधार माँग रहा है जाने दो मुझे कुछ नहीं बताओ कहते हुए फ़ोन को पटक कर रिसीवर पर रखा । वे उदास हो गए जब बहुत ज़ोर देकर पूछा तो कहा नहीं अभी उनके पास पैसे नहीं हैं उनके बेटे बहू को स्विट्ज़रलैंड घूमने जाना है तो बहुत ख़र्चा होगा ।
रागिनी को बहुत ग़ुस्सा आया मैं हमेशा से कहती थी दूसरों के लिए भाग दौड़ मत करो ज़रूरत पर कोई हमें नहीं पूछेगा पर आपने मेरी सुनी ही कब ? ओमप्रकाश बिना किसी से कुछ कहे घर के पास के पार्क में जाकर एक बेंच पर बैठ गया था और मन ही मन सोचने लगा मैं ग़लत था क्या ? मेरी सोच में ज़रूरत मंद लोगों की सहायता करना ही असली मनुष्यता है नहीं तो हम में और जानवरों में कोई अंतर नहीं होता पर जब मुझे ज़रूरत है
कोई भी सहायक सामने नहीं आ रहा है । रागिनी शायद ठीक ही कह रही है मेरी ही गलती थी कि मैंने उसकी बात सुनी नहीं । आँख बंद करके सोचते हुए ओमप्रकाश को लगा कोई उसके बग़ल में आकर बैठा है
उसने आँखें खोली देखा तो उनके ही कॉलोनी में रहने वाले रामप्रसाद जी हैं ।रामप्रसाद जी अपनी पत्नी जानकी देवी के साथ चार महीने ही भारत में रहते हैं बाक़ी के दिन अपने दोनों बेटों के पास रहते हैं । उनका एक बेटा अमेरिका में रहता है और एक बेटा केनडा में रहता है । रामप्रसाद जी ने कहा क्या बात है बेटा इतनी सोच में हो कि मुझे भी नहीं देखा । ओमप्रकाश ने कहा कुछ नहीं अंकल अर्चना की शादी तय हो गई है
अगले महीने शादी है लड़का यहाँ नहीं रहता है बैंगलोर में काम करता है अकेला लडका है । माता-पिता दोनों यहीं रहते हैं माँ टीचर है पिता बैंक में हैं वे लोग आगे से खुद रिश्ता माँगने आए थे इसलिए हाँ कर दिया । यह तो बहुत अच्छी ख़बर है वैसे भी तुम्हारी बेटियाँ दोनों ही खुशनसीब हैं खूबसूरत पढ़ी लिखी और संस्कारी हैं मेरा कोई तीसरा बेटा होता तो मैं ही
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उन्हें अपने घर ले जाता कहते हुए ज़ोर-ज़ोर से हँसते हैं । ओमप्रकाश भी मुस्कुराने लगा उन्होंने कहा मुद्दे पर आता हूँ अब बता कितने पैसे चाहिए ओमप्रकाश आँखें फाड़कर उनकी तरफ़ देखने लगा उन्होंने कहा देख ओम एक लड़की का पिता लड़की की शादी तय होने के बाद उदास बैठा है तो इसका मतलब है पैसों का इंतज़ाम नहीं हुआ है । फिर उन्होंने कहा देख ओम तुमने मेरे लिए जितना किया है
उसमें से अगर मैं तुम्हारे कुछ काम आ सकूँ तो भी वह बहुत ही कम है । मुझे आज भी लगता है उस दिन तुमने मेरी मदद न की होती और मुझे जल्दी से अस्पताल नहीं पहुँचाया होता तो मैं आज तुम्हारे सामने बैठा नहीं होता मेरे बच्चे भी हमेशा तुम्हें याद करते हैं । इसलिए मेरे सामने खुलकर अपनी समस्या को बताओ शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकता हूँ ।
ओमप्रकाश ने कहा ठीक है कल मैं आपको बताऊँगा अभी चलिए बहुत देर हो गई है । उन्हें उनके घर छोड़ते हुए ओमप्रकाश अपने घर चला गया । पत्नी ने कहा कहाँ चले गए थे पापा जी खाने के लिए आपका इंतज़ार कर रहे हैं । चलिए खाना लगा देती हूँ । उसने किसी से भी इस बारे में ज़िक्र नहीं किया क्योंकि उसका विश्वास मनुष्यों से उठ गया था ।
दूसरे दिन सबेरे सबेरे ही दरवाज़े की घंटी बजी राघवजी ने दरवाज़ा खोला देखा तो रामप्रसाद थे । अरे आइए क्या बात है इतनी सुबह अमेरिका से कब आए । रामप्रसाद जी ने कहा मुझे एक सप्ताह हुआ है आए हुए । सुना है पोती का रिश्ता पक्का हो गया है बधाई देने आ गया था । राघव जी ने कहा कि बहुत बहुत शुक्रिया बैठिए । रागिनी भी आती है और हाल-चाल पूछती है और चाय बनाने के लिए रसोई में जाती है ।
रामप्रसाद ने राघवजी से कहा देखिए राघवजी ओम ने मेरे लिए क्या किया आपको नहीं मालूम आप उस समय बनारस गए हुए थे मैं रात को सोया हुआ था अचानक मेरे सीने में दर्द होने लगा मैंने अपनी पत्नी को उठाया और कहा शायद हमें अस्पताल जाना पड़ेगा किसी पड़ौसी की मदद ले लेते हैं देखो कोई है तो वह भागी भागी दो तीन घरों में गई
पर कोई भी साथ आने के लिए तैयार नहीं थे मेरे सीने का दर्द बढ़ता जा रहा था मुझे लगा अब मेरा अंत समय आ गया है उसी समय ओम ऑफिस के किसी व्यक्ति का एक्सिडेंट हुआ तो उसे अस्पताल पहुँचाकर वापस आ रहा था मेरी पत्नी रोते हुए एक घर से दूसरे घर भाग रही थी उसने उन्हें रोका और कारण पूछा जब उसने बताया
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तो जल्दी से एंबुलेंस को सूचना दी और थोड़ा सा फस्टेड किया । एंबुलेंस के आते ही फिर हमारे साथ वापस अस्पताल गया डॉक्टर ने कहा बहुत सही समय पर लाए हैं और थोडी देर होती तो हम इन्हें बचा नहीं सकते थे । जब तक मुझे होश नहीं आया मेरी पत्नी का सहारा बनकर अस्पताल में ही रह गया बच्चे हमारे दूर थे पर ओम हमारे लिए भगवान का दूत बनकर आया था ।
मेरे बच्चे आज भी ओम को याद करते हैं । मैं हमेशा सोचता था कि मेरा भगवान में इतनी आस्था है इसलिए उन्होंने ओम को फ़रिश्ता बनाकर भेजा भगवान उसका भला करे जो दूसरों के लिए सोचता है भगवान उनके साथ हमेशा रहते हैं । सब सुनते हुए राघवजी कहते हैं कि क्या मालूम भगवान क्या मदद करेंगे उसकी मुझे तो विश्वास ही नहीं है ।
रामप्रसाद ने अपनी जेब से चेकबुक निकाली और उस पर राशि लिखकर हस्ताक्षर किया और राघवजी के हाथ में रखकर नमस्कार किया ।और कहा न मत बोलिए राघवजी !!!!मेरे लिए ओम ने जो कुछ भी किया उसका कर्जा तो मैं नहीं उतार सकता और न ही उतारना चाहता हूँ पर मुझे न मत कहिए मैं उधार के रूप में दे रहा हूँ जब पैसे होंगे तब दे दीजिएगा ।
राघवजी ने रागिनी और ओमप्रकाश को पुकारा जल्दी से इधर आओ !!!!दोनों भागते हुए आए कि क्या हो गया है । ओम ने रामप्रसाद को नमस्ते किया और पिता से पूछा आपने बुलाया था क्या हुआ ? उन्होंने ने चेक ओमप्रकाश के हाथ में रखकर कहा रागिनी तुम कहती थी न ओमप्रकाश ने जो भी किया उसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ ।
इतने लोगों की सहायता की थी पर जब अपनी बारी आई लोगों ने कन्नी काट ली पर बेटा भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं देख रामप्रसाद जी भगवान बनकर अपनी मदद करने आए हैं । ओमप्रकाश ने देखा पूरे पाँच लाख का चेक था । रामप्रसाद ने कहा ओम उधार समझकर ले ले बेटा धीरे-धीरे चुका बेटा कोई जल्दी नहीं है अब आराम से अपनी बिटिया के ब्याह की तैयारी कर और कुछ ज़रूरत है तो मुझे बता जो मेरे से होगा कर दूँगा ।
ओमप्रकाश ने सोचा मेरा तो मनुष्यों पर से विश्वास ही उठने वाला था पर देखा परोपकारी मनुष्य के साथ कभी धोखा नहीं हो सकता कहीं न कहीं से उन्हें सहायता मिल ही जाती है ।
के . कामेश्वरी