शाम का धुंधलका फैलने लगा था |शंकर बाबू अपने हाथों में सब्जी का थैला थामे जल्दी जल्दी पुल पार कर रहे थे | एक दोस्त से बात करने के चलते कुछ देर हो गई थी और अब वे जल्दी से घर पहुंचना चाह रहे थे| पुल ज्यादा लंबा नहीं था |नीचे नदी बह रही थी | अभी वे पुल के बीच में ही पहुंचे थे कि उनके सामने से एक लड़का तेजी से आया और पुल की रेलिंग पर चढ़ने लगा | शंकर बाबू बिना कुछ सोचे समझे झट से आगे बढ़कर उसे पकड़ कर नीचे खींच लिये |थैला हाथ से छूटकर नीचे गिर गया |
“यह क्या बेहूदगी है? क्या कर रहे हो? ” शंकर बाबू ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया |
“मैं जान देना चाहता हूँ, पर आपको इससे क्या? छोडिये मेरा हाथ | ” लडका उनका हाथ झटकते हुए कहा |
” ओ हो हो हो, ऐसी बात है , पर क्यों भला? ” शंकर बाबू ने और जोर से उसका हाथ पकड़ लिया |
“आपको इससे क्या लेना- देना ? छोडिये मेरा हाथ | मुझे जाने दिजिए |” लड़का उनसे हाथ छुड़ाने के लिए जोर लगाने लगा |
“अरे भाई, जान ही न देना है, तो थोड़ी देर हो जायेगी तो क्या फर्क पडेगा? थोड़ी देर बाद जान दे देना | पहले मुझे कारण बताओ तो सही बेटा | मैं तुमसे बहुत बड़ा हूँ, बहुत दुनिया देखी है, शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूँ | ” शंकर बाबू उसके सिर पर स्नेह से एक हाथ फेरने लगे और एक हाथ से उसे पकड़े रखा |
पता नहीं शंकर बाबू के सिर पर हाथ फेरने का असर था या उनकी स्नेह भरी आवाज का, लडका रोने लगा | शंकर बाबू चुपचाप उसके सिर पर हाथ फेरते रहे |
” अब बताओ , क्या बात है? ” शंकर बाबू ने थोड़ी देर बाद पूछा |
“मेरी प्रेमिका ने मुझे छोड़ दिया | आज वह दूसरे के साथ शादी कर रही है | मैं उसे बहुत प्यार करता हूँ, उसके बिना जी नहीं पाऊंगा |” लड़का धीरे से बोला |
” पर क्यों छोड़ दिया उसने तुम्हें? क्या वह तुम्हें प्यार नहीं करती थी ? ” शंकर बाबू ने पूछा |
“प्यार तो वह भी करती थी | साथ जीने, मरने की बातें भी करती थी |बार- बार कहती थी, शादी तुमसे ही करूंगी | ” लडका बोला |
” तब फिर क्या हुआ? वह दूसरे के साथ शादी क्यों कर रही है? क्या उसके या तुम्हारे माता – पिता राजी नहीं हुए ?”
” माता-पिता तक तो बात ही नहीं पहुंची | हम दोनों ने साथ ग्रेजुएशन किया था और दोनों प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहे थे| हमने सोचा था, पहले करियर बना लें, नौकरी पा लें, फिर उनसे बात करेंगे | मैं सफल नहीं हो पाया और वह सफल हो गई|
एक अच्छी नौकरी पा गई और अब अपने साथ काम करने वाले के साथ शादी कर रही है | मैंने पूछा तो बोली, तुम तो बेरोजगार हो, नौकरी पा न सके, तुम्हारे साथ मेरा क्या भविष्य होगा? ” लड़का फिर रूआंसा हो गया -” मैं हार गया | अब जीना नहीं चाहता|”
“क्या यह तुम्हारा आखिरी मौका था?”
” नहीं मौके तो अभी और भी हैं, पर अब मन नहीं कर रहा है, कुछ भी करने का| किसके लिए करूँगा, अब तो जीने की भी इच्छा नहीं रही |”
“क्या, तुम अनाथ हो? तुम्हारे परिवार में कोई नहीं है| ” शंकर बाबू ने पूछा |
” हैं ना, माँ , पिताजी है ं, एक छोटा भाई, एक छोटी बहन है और एक बूढ़ी दादी है |” लड़का झट से बोला |
“हैं, लेकिन कोई तुम्हें प्यार नहीं करता |है ना? ” शंकर बाबू भी तुरंत बोल उठे |
“नहीं, नहीं सब मुझे बहुत प्यार करते हैं|” लड़का बोला
“फिर तुम उस एक बेवफा के लिए, जो तुम्हें छोडकर किसी और की हो गई, अपनेआप को अपने पूरे परिवार को बिना उनकी कोई गलती के जीवन भर के लिए सजा देना चाहते हो | जिसने तुम्हारे प्यार को कोई महत्व नहीं दिया, उसके लिए पूरे परिवार के प्यार को ठुकरा रहे हो |” शंकर बाबू ने आगे कहा -” देखो बेटा, दुनिया में सिर्फ एक प्रेमिका का प्यार ही प्यार नहीं होता | प्यार के अनेक रूप है ं,माता-पिता का प्यार, भाई – बहन का प्यार, पति- पत्नी का प्यार, बच्चों का प्यार, परिवार का प्यार, दोस्तों का प्यार, इत्यादि, इत्यादि | सभी प्यार का अपना- अपना महत्व है | इनके प्यार को समझो |अपने परिवार के प्यार को समझो | भले ही तुम्हारी प्रेमिका के लिए अब तुम्हारी कोई अहमियत नहीं, पर अपने परिवार के लिए अपनी अहमियत को समझो | तुम जान दे दोगे तो कल्पना करो , तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारे माता-पिता, भाई-बहन, तुम्हारी बूढ़ी दादी का क्या हाल होगा ? ” इतना कहकर शंकर बाबू चुप हो गये | लड़का भी चुप रहा | थोड़ा सोचने लगा “फिर मैं क्या करूँ ? “थोड़ी देर बाद बोला |
” सबसे पहले तो अपने मन को शांत करो | जो प्रेमिका तुम्हारे जीवन में मात्र दो – चार वर्ष पहले आई, उसकी इतनी अहमियत कि उसके लिए जान दे रहे हो और जो परिवार तुम्हारे माँ के गर्भ में आने से लेकर अभीतक तुम्हारे साथ रहा और आजीवन तुम्हारे साथ रहेगा, उसकी कोई अहमियत नहीं तुम्हारे जीवन में ? अपने परिवार की अहमियत को समझो ,उनके सपनों, उनकी खुशियों की अहमियत को समझो | जिस परिवार ने तुम्हें लाड-प्यार से पाल पोस कर इतना बड़ा किया, उनके अनगिनत सपने, आशायें तुम्हारे साथ जुडी है | अपनी जान देकर उन्हें जीवन भर का दुख देना चाहते हो, जो तुम्हें अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करते हैं | इसके बदले उनके लिए जिओ, उनके सपनों को साकार करो | उनके प्रति अपनी जिम्मेवारियों को समझो|” शंकर बाबू ने समझाते हुए कहा -” अपनी सारी शक्ति और मेहनत से एकबार फिर प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करो |अपनी प्रेमिका से भी अच्छी नौकरी और अच्छी लड़की प्राप्त करो |एक खुशहाल जीवन जिओ | उसे भी तो दिखा दो कि तुम उससे कम नहीं हो | इसे एक चैलेंज की तरह लो | सफलता पाकर ही दम लो |”
“थैंक्यू अंकल |आपने मेरी आंखें खोल दी |मुझे बचा लिया | आप ठीक कहते हैं |अब मैं ऐसा हीं करूँगा|” लड़का शंकर बाबू के पैर छूते हुए बोला |
” बेटा, धन्यवाद तो ईश्वर का करो |उसने तुम्हें मानव जन्म और इतना अच्छा परिवार दिया है | इसकी अहमियत समझो, सम्मान करो और अपने कर्मों से उनका नाम रौशन करो | आगे ऐसे ख्याल मन में कभी मत लाना और कभी आये तो अपने परिवार को जरूर याद कर लेना |”शंकर बाबू उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोले -” मेरे भी दो बच्चे हैं | एक लड़की और एक लड़का |लड़का बडा है,ग्रेजुएशन कर रहा है | मुझे तुममें उसीकी छवि दिखाई दे रही है |”
” अंकल, आप बहुत अच्छे है ंं| आप सही कह रहे हैं | मेरा नाम रौनक है | मुझे भी अपना बेटा समझें | यह जीवन अब आपकी देन है | जीवन में कभी आपके कुछ काम आ सकूँ तो अपने को धन्य समझूँगा |” रौनक हाथ जोड़कर बोला |
” तो रौनक, सबसे पहले तो यह थैला उठाओ और मुझे अपने घर ले चलो | अपने पिता से मिलवाओ और माँ के हाथों की गरमागरम चाय पिलवाओ , दादी का आशीर्वाद दिलवाओ |” शंकर बाबू हंसते हुए बोले |
” जी अंकल, जरूर |चलिए, मेरे घरवाले आपसे मिलकर और सारी बातें जानकर बहुत खुश होंगे | आपका एहसान मानेंगे |” रौनक थैला उठाते हुए बोला |
” मिलवाना तो ठीक है, पर ये सब बातें उन्हें मत बताना, उन्हें बहुत दुख होगा और तुम्हें उनके सामने लज्जित होना पड़ेगा | कह देना मेरा बेटा तुम्हारा दोस्त है |” शंकर बाबू ने समझाया |
” ओह अंकल आप कितने अच्छे है ंं| आपने तो मेरा दिल जीत लिया | ” रौनक हंसते हुए बोला |
” क्या तुम्हारी उस प्रेमिका की तरह |” शंकर बाबू ने हंसते हुए पूछा | ” उसकी आपसे कोई तुलना नहीं | उसके चलते जान दे रहा था और आपके चलते जान बच गई | आपने मेरी जान बचा ली, मेरी रक्षा की | आप महान हो , ईश्वर की तरह |” रौनक भी जोर से हंसने लगा | वह शंकर बाबू का हाथ थाम आगे चलने लगा | उसे परिवार की अहमियत और परिवार के लिए अपनी अहमियत दोनों समझ आ गया था | दोनों की हंसी वातावरण में गूंज रही थी |
# अहमियत
स्वलिखित और अप्रकाशित
सुभद्रा प्रसाद
पलामू, झारखंड |