Moral stories in hindi : देवांश-गीता कभी ख़ुद को आईने में देखा है, 30 की हो पर लगती 50 से कम नहीं। दिन भर बस बच्चों और मेरी हर चीज़ का ध्यान रखना। नाश्ता करोगी तो लंच नहीं, लंच किया तो डिनर नहीं। वेट भी इतना कम हो गया है।
गीता-आप क्या जानो, मेरे जैसे फिगर के लिये पड़ोस की मिसेज़ अग्निहोत्री और मिसेज़ मिश्रा जिम जाती है, डाइट चार्ट फॉलो करती है, मैं जब चाहे बाहर का खा सकती हो, वो अगर बाहर का खाले तो दो बार का ख़ाना स्किप करती है। तुम्हारा इतना पैसा बचा रही हूँ।
देवांश-तुम्हारी ये बातें सुनकर तिलमिला जाता हूँ कि तुमको कितना भी समझा लूँ पर तुमपे कोई असर ना होगा। आँखों के नीचे डार्क सर्किल हो गये है, ना जाने कब पार्लर गई थी। ऐसा करोगी तो मैं दूसरी शादी कर लूँगा।
गीता-आप ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि आपको और आपके बच्चों को तो सिर्फ़ मैं ही सम्भाल सकती हूँ।
देवांश (हाथ जोड़ते हुए)-तुमसे तो कोई नहीं जीत सकता। मैं ही चला जाता हूँ यहाँ से।
देवांश के जाने के बाद गीता अपने आपको आईने में निहारती है और कहती है वाक़ई मैं तो बुढ़िया होती जा रही हूँ, अगर इन्होंने सच में दूसरी शादी कर की तो….. नहीं…. ऐसा नहीं हो सकता। तुरंत फ़ोन उठा पार्लर की 12 बजे की अपॉइंटमेंट लेती है और काम निपटाने में लग जाती है।
आज पिंक रंग की कुर्ती के साथ जीन्स कैरी करती है और स्कूटी दौड़ाती हुई पार्लर की ओर निकल पड़ती है। पार्लर के बाद वही से बच्चों को लेने स्कूल पहुँच जाती है। बच्चे भी मम्मी को देखकर दौड़कर आते है और कहते है आज हमारी मम्मी को फ़ुरसत कैसे मिल गई हमें लाने की।
गीता-अच्छा बस ज़्यादा चौधरी मत बनो तुम दोनों, फटाफट स्कूटी में बैठो। वहाँ से घर लौटकर बढ़िया सा फ़्राइड राइस बनाती है वो और बच्चे साथ मिलकर खाते है। ये सब देख बच्चे एक दूसरे को टोहनी मारकर हँस पड़ते है।
शाम को सब काम निपटाकर बढ़िया सा ग्रीन सूट पहनकर बालों में क्ल्चर लगा तैयार होती है। घर की बेल बजते ही तुरंत दौड़कर दरवाज़ा खोलने जाती है।
देवांश उसे देख अचंभित होकर कहता है-सॉरी मैडम, लगता है मैं किसी दूसरे के घर में आ गया हूँ।
गीता उसका हाथ पकड़कर कहती है यही आपका घर है पति परमेश्वर, बस आपकी मल्लिका का नया अवतरण हुआ है।
देवांश-ओ मेरी हसीना, कहा गया तेरे माथे का पसीना।
दोनों ज़ोरों से हँस पड़ते है।
आदरणीय पाठकों,
एक स्त्री के जीवन में परिवार और बच्चे का बहुत महत्व है और वो उसकी देख रेख के लिये अपना सब कुछ न्योछावर कर देती है, पर परिवार और बच्चों को भी उसकी ख़ुशी, उसके अरमान, उसकी आशाओं का ध्यान रखना चाहिये और स्वयं स्त्री को भी अपने लिए समय निकालना चाहिए क्योंकि गृहस्थी मकड़ी का जाल है, इसके काम कभी ख़त्म नहीं होंगे, तो आज से आप सभी स्त्रियों से अनुरोध है अपने लिये समय निकाले, रोज़ ना सही हफ़्ते में एक बार अपने चेहरे पर मुल्तानी मिट्टी या संतरे के छिलके का फेसपेक लगाए, ख़ाना बनाते समय ईयरफ़ोन लगाकर गुनगुनाये, कभी कभी बच्चों के साथ बैडमिंटन और कैरम खेलें, कभी कभी पतिदेव के साथ किसी रोमांटिक गाने पर नाच लें। साथ ही पुरुषों से भी अनुरोध है कभी कभी उनके खाने की तारीफ़ कर दें, कभी कभी बाहर खाने की योजना बनाए, छुट्टी वाले दिन उनके काम में हाथ बटाएँ, कभी कभी बिना कहे ही उनकी पसंदीदा चॉकलेट या कुछ चीज़ ले आए, फिर देखिए आपको अपनी दुनिया सबसे खूबसूरत लगेगी, किसी से तुलना करने का मन ही नहीं करेगा।
आशा करती हूँ कि सभी पाठकों को मेरी रचना द्वारा दिया गया संदेश समझ आया होगा, तो रचना को लाइक, शेयर और कमेंट कर अपना समर्थन दें।
धन्यवाद।
स्वरचित एवं अप्रकाशित।
रश्मि सिंह
नवाबों की नगरी (लखनऊ)
Mera to yahi kahena rahta h.. But mere pati nahi sudhrate wo bilkul opposite geeta di ki tarah ho gaye h kya karu mein..
Bahut badhiya har ghar ki kahaani hei.jindgi ki sachchai hai 🙏🙏