* परिवार का सुख* – पुष्पा जोशी   : Moral Stories in Hindi

मोहन बाबू गॉंव में खेती किसानी का काम करते थे। अच्छी खासी फसल होती थी। खेत पर ट्यूब वेल था। पानी का संकट नहीं था। खेतों के पास  दो कमरे भी बने हुए थे ,जहाँ खेतों में काम करते समय  तेज ऑंधी पानी आ जाने पर मोहन बाबू और उनके बेटे वहाँ रूक जाते थे।

पुश्तैनी मकान था रहने के लिए। ज्यादा बड़ा नहीं था मगर सब आराम से रहते थे।उनके तीन बेटे थे रमेश, सोमेश और रूपेश । रूपेश सबसे छोटा था और उसकी शादी नहीं हुई थी। वह अपने बड़े भाइयों का लाड़ला था और शहर में पढ़ाई कर रहा था।

स्नातक कि डिग्री लेने के बाद वह भी गॉंव में आ गया था। वह भी  अपने भाइयों के साथ काम करना चाहता था। उसने कुछ खेतों में जैविक खेती करना शुरू की मुनाफा बढ़ गया था।वह पढ़ा -लिखा था अत:समय-समय पर सरकार द्वारा चलाई जाने वाली खेती की नई

नई योजनाओं का भी उसे ज्ञान था। पूरा परिवार खुशी से रहता था। रमेश और सोमेश की पत्नियों की उनकी सास मनोरमा देवी से बनती नहीं थी। कारण यही था कि उन्होंने अपनी गृहस्थी बड़ी मेहनत से बसाई थी, घर में अन्न का अपव्यय उन्हे बर्दाश्त नहीं होता था

और वे दोनों बहुओं पर नाराज होती थी। वे बहुओं को प्यार भी बहुत करती थी। वे हर तीज त्यौहार पर बहुओं के लिए नये  कपड़े मंगवाती, उनकी सारी आवश्यकताओं का ध्यान रखती। मगर बहुओं के पास उनके प्यार की कदर नहीं थी, उन्हें बस यही बुरा लगता था

कि उनकी सास उन्हें इतना टोकती क्यों है?उनके पति हर काम माँ से पूछकर क्यों करते हैं ?वे सोचती थी कि सासुजी कहीं चली जाए तो वे आराम से रहै। रूपेश का भी रिश्ता तय हो गया था, मिताली पढ़ी लिखी लड़की थी,वह माता- पिता की इकलौती संतान थी

और उसकी हमेशा यही इच्छा रहती थी कि उसे भरा पूरा ससुराल मिले। वह यहाँ आकर बहुत खुश थी। वह अपनी सासुजी, और जैठानियों के साथ बहुत प्रेम से रहती थी। रूपेश की शादी के बाद घर कुछ छोटा पढ़ने लगा था। सास ससुर अब बाहर हॉल में सोने लगे

उनके कमरे में रूपेश और मिताली के सोने की व्यवस्था की। मिताली को दु:ख होता था कि उनकी वजह से सास -ससुर को तकलीफ हो रही है । उसने रूपेश से कहा भी कि जल्दी एक कमरा मकान के पास जो खाली जगह है वहाँ बनवा लेते हैं। हमारे कारण माँ-पापा को परेशानी हो रही है,

उसने भी कहा कि तुम ठीक कह रही हो मैं,दोनों भाइयों से बात करता हूँ। यह बात दोनों बड़ी बहुओं ने सुनी तो वे मिताली से कहने लगी अभी कमरा बनवाने की क्या जरूरत है। माँ और पापा खेत पर बने मकान में सोने चले जाए। माँ तो हमेशा कहती है कि घर का आंगन बहू से सजता है।

‘ उन्होंने मिताली को सुनाते हुए इतनी जोर से कहा कि सासुजी भी सुन ले। मनोरमा जी सुनकर सन्न रह गई, उन्होंने अपने ऑंसू पर मुश्किल से नियंत्रण किया और बोली -‘अगर तुम तीनों यही चाहती हो तो मैं और तुम्हारे पापा खेत वाले मकान पर चले जाऐंगे।

मैं आज भी यही कहती हूँ कि घर का आंगन बहू से सजता है।’ मिताली जो अब तक मौन थी वह बोली -‘यह सच है माँ कि “घर का ऑंगन बहू से सजता है, तो ससुराल भी तो सासु के बिना फीका लगता है।”

आप और पापा कहीं नहीं जाऐंगे माँ। हम जल्दी ही कोई इन्तजाम कर लेंगे। आप दोनों का आशीर्वाद हम सब पर बना रहै, हम बस यही चाहते है। दोनों बड़ी बहुओं को अपनी गलती का एहसास हो गया था, उन्होंने मनोरमा जी से माफी मांगी तो उन्होंने तीनों बहुओं को अपने सीने से लगा लिया। यह देखकर मोहन बाबू की ऑंखों में खुशी के ऑंसू आ गए।

प्रेषक

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

#घर का आंगन बहू से सजता है तो ससुराल भी तो सासु के बिना फीका लगता है

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