अंजली और राजीव की शादी को छह साल हो चुके थे, और दोनों अपने बेटे किट्टू के साथ शहर में एक अच्छी जिंदगी बिता रहे थे। राजीव एक प्रतिष्ठित कंपनी में ऊंचे पद पर कार्यरत था और अंजली गृहिणी होने के साथ-साथ आधुनिक सोच रखने वाली महिला थी। उसे अपनी शहरी जीवनशैली से प्यार था और वह चाहती थी कि उसका परिवार भी इसी तरह से जीवन जिए। अंजली को परंपरागत तौर-तरीकों से चिढ़-सी थी; उसे लगता था कि गांव के पुराने रीति-रिवाज और सादगी उनके स्टाइलिश जीवन में मेल नहीं खाते।
इसी बीच, गांव से राजीव के माता-पिता उनसे मिलने आए। बंसीलाल और सरोजा देवी बहुत ही सरल और सादगी भरा जीवन जीने वाले लोग थे। उनका रहन-सहन साधारण था और आदतें वही, जो गांव में आमतौर पर लोग अपनाते हैं। सुबह-सुबह उठकर पूजा करना, भोजन से पहले हाथ जोड़कर ईश्वर को धन्यवाद देना, और जमीन पर बैठकर खाना उनके जीवन का हिस्सा था। राजीव के माता-पिता की इसी सादगी ने अंजली को थोड़ा असहज कर दिया था।
अंजली हमेशा इस बात का ध्यान रखती कि किट्टू अपने दादा-दादी के संपर्क में ज्यादा न आए, उसे यह डर था कि कहीं उसके बेटे पर गांव के ये ‘पुराने विचार’ हावी न हो जाएं। वह चाहती थी कि किट्टू एक आधुनिक सोच वाला, स्मार्ट और आत्मविश्वासी बच्चा बने, जिसे शहर के ढंग-सलीके आते हों। इसलिए, अंजली जानबूझकर उसे अपने दादा-दादी से थोड़ा दूर रखती थी। बंसीलाल और सरोजा देवी का मन दुखी हो जाता, लेकिन वे अपनी भावनाओं को दबाकर अंजली के इस व्यवहार को समझने की कोशिश करते थे।
बंसीलाल जी, जो किट्टू के साथ समय बिताना चाहते थे, अक्सर उसे अपने पास बुलाने की कोशिश करते, लेकिन अंजली का रवैया देखकर उन्हें अपनी भावनाओं को रोकना पड़ता। पांच साल का किट्टू, जो अपने दादा-दादी के पास जाने की जिद करता, उनकी गोद में बैठकर कहानियां सुनना चाहता, मगर मां की बंदिशों के कारण ऐसा कर नहीं पाता। एक दिन जब किट्टू जोर-जोर से रोने लगा और दादी के पास जाने की जिद करने लगा, तब अंजली चाहकर भी उसे रोक नहीं पाई। मजबूरन, उसे दादा-दादी के पास छोड़ना पड़ा।
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अंजली के लिए बंसीलाल और सरोजा देवी का हर साधारण व्यवहार असहजता का कारण बन जाता। जब वे जमीन पर बैठकर भोजन करते, तो अंजली को यह बात गंवारपन लगती। वह सोचती, “क्या इन्हें आधुनिक ढंग से रहना नहीं आता?” एक बार, उसने राजीव को ताना देते हुए कहा, “तुम्हारे माता-पिता को कुछ सिखाओ। यह पुराने ढंग और रीति-रिवाज अब यहां फिट नहीं होते।”
राजीव ने अंजली की बात को गंभीरता से सुना और फिर उसे समझाते हुए बोला, “अंजली, सादगी में जीना कोई गलत बात नहीं है। दिखावा करना जरूरी नहीं। मेरे माता-पिता ने सादगी से रहकर ही मुझे इन ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। हमें उनका सम्मान करना चाहिए, न कि उनके संस्कारों पर सवाल उठाना।”
राजीव की बात सुनकर अंजली चुप हो गई, लेकिन उसने अपने मन की सोच को पूरी तरह नहीं बदला। उसे अब भी लगता था कि गांव के लोग शहरी जीवन में फिट नहीं होते और इसीलिए वह खुद को उनसे दूर रखना बेहतर समझती थी।
एक दिन राजीव ने सोचा कि परिवार को बाहर घुमाने ले जाया जाए। त्योहार का समय था, बाजार रंग-बिरंगी सजावटों से भरा हुआ था। राजीव ने अपने माता-पिता, अंजली और किट्टू को साथ लेकर बाजार का रुख किया। सभी नए कपड़े खरीदने और बाजार घूमने में मशगूल थे। तभी बाजार में राजीव के बॉस, श्री शर्मा, उनसे टकरा गए। शर्मा जी एक बहुत ही प्रतिष्ठित व्यक्ति थे और राजीव की कंपनी में उच्च पद पर थे।
अंजली को अचानक इस बात का डर सताने लगा कि अब राजीव अपने माता-पिता को कैसे मिलवाएंगे? उन्हें यह चिंता हुई कि उनके साधारण कपड़े और पुराने रीति-रिवाजों से कहीं शर्मा जी के सामने उनका मजाक न बन जाए। वह भीतर ही भीतर घबराने लगी कि कहीं उनके बॉस को यह सब अच्छा न लगे और उनके पति की छवि पर असर न पड़े।
शर्मा जी ने हंसते हुए राजीव के माता-पिता से परिचय लिया। राजीव ने अपने माता-पिता का आदरपूर्वक परिचय दिया। शर्मा जी बंसीलाल और सरोजा देवी के सामने आदर के साथ झुके और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया। यह देखकर किट्टू भी बिना किसी झिझक के आगे बढ़ा और शर्मा जी के पैर छू लिए।
शर्मा जी यह देखकर बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने बंसीलाल जी की ओर देखते हुए कहा, “राजीव, आपने बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं अपने बेटे को। आज के दौर में जब बच्चे अपने बड़ों का आदर करना भूलते जा रहे हैं, आपको देखकर बहुत अच्छा लगा। सच कहूं तो, हम जैसे लोग विदेशों की संस्कृति में उलझते जा रहे हैं और अपनी परंपराओं से दूर होते जा रहे हैं। आपके परिवार को देखकर मैं बहुत खुश हूं कि आपने अपनी जड़ों से जुड़कर रहना नहीं छोड़ा है।”
अंजली यह सब सुनकर हैरान रह गई। उसे लगा था कि शर्मा जी उसके सास-ससुर के पुराने रीति-रिवाजों को लेकर कुछ टिप्पणी करेंगे, लेकिन उन्होंने इसके विपरीत उनकी तारीफ की। अंजली ने शर्मा जी की बातों को गहराई से महसूस किया और उसके भीतर एक परिवर्तन आने लगा।
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शर्मा जी के जाने के बाद, राजीव ने मुस्कुराते हुए अंजली की ओर देखा। अंजली शर्मा जी की तारीफ और राजीव की नजरों से खुद को थोड़ा असहज महसूस करने लगी। उसे अपने विचारों पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। उसे एहसास हुआ कि वह बेवजह अपने सास-ससुर की साधारण जीवनशैली को लेकर नकारात्मक सोच रख रही थी।
वह चुपचाप अपने सास-ससुर के पास आई और उनके चेहरे पर वही पुरानी खिलखिलाहट देखी, जो उन्हें हमेशा से अद्वितीय बनाती थी। उन्हें देखकर उसे अपनी सोच पर बहुत अफसोस हुआ और वह समझ गई कि परिवार का असली आधार सादगी और आपसी सम्मान होता है।
अंजली ने धीरे से अपने सास-ससुर के पैर छुए और पहली बार दिल से उन्हें अपनाया। बंसीलाल और सरोजा देवी भी उसकी इस नई सोच को समझ गए और उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया। उस रात, अंजली ने सबके लिए खास पकवान बनाए और परिवार के साथ बैठकर दीवाली का उत्सव मनाया।
इस पूरे अनुभव ने अंजली की सोच को बदल दिया था। उसे समझ में आ गया कि असली खुशी और संस्कार दिखावे में नहीं, बल्कि अपनेपन में होते हैं।
लेखिका : अंजना ठाकुर