सुनो ना निशांत… तुम्हारी यह मीटिंग कोई और नहीं कर सकता हमें यहां आए हुए अभी 2 ही महीने हुए हैं और तुम मुझे छोड़कर 2 दिन के लिए मीटिंग करने के लिए मुंबई जा रहे हो, मैं कैसे रहूंगी यहां और खासतौर से बिट्टू के साथ जो अभी पूरी साल भर की भी नहीं हुई है पीछे से कुछ हो गया तो..?
पूजा.. इतनी डरपोक कब से हो गई तुम और तुम्हें तो पता ही है ना मेरी नौकरी तो है ही ऐसी कि मुझे कई बार बाहर जाना ही पड़ता है पहले भी तो मैं जाता था तब तो तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होती थी! हां पहले मुझे दिक्कत नहीं होती थी क्योंकि पहले हम संयुक्त परिवार में रहते थे जहां सभी लोग मेरा इतना ध्यान रखते थे
कि मुझे पता भी नहीं चलता 2 दिन कब निकल गए और बिट्टू तो कब बड़ी हो गई इसका एहसास ही नहीं हुआ, तुम्हें पता है बिट्टू कितनी परेशान करती है वहां तो सारे घर वाले इसे अपने हाथ ही हाथों में रखते थे तो मुझे कुछ पता ही नहीं चलता था !इसीलिए तो पूजा मैंने यहां सोसाइटी में फ्लैट लिया है यहां इतने सारे लोग हैं
और नीचे गार्ड भी 24 घंटे रहता है तो तुम्हें डरने की कोई जरूरत ही नहीं है! फिर भी निशांत मैं पहली बार अकेली कैसे रहूंगी, निशांत मैंने तुमसे कहा भी था की “संयुक्त परिवार में रोक टोक जरूर है पर एक सुरक्षा और परवाह भी है” छोटी-मोटी लड़ाई झगड़े तो हर घर में होते रहते हैं पर तुम पर तो अलग से रहने का भूत सवार हो गया था,
हां मैं मानती हूं मुझे भी उनका रोकना पसंद नहीं था ना तुम्हें, पर मुझसे ज्यादा तुम्हें परेशानी होती थी, मुझे केवल सर पर पल्लू रखने से परेशानी होती थी बाकी नहीं किंतु तुम्हें तो वहां हर बात में परेशानी थी तुम्हें शांति चाहिए थी तुम्हें लगता था भैया के बच्चे तुम्हारे कामों में तुमको डिस्टर्ब करते हैं पर सोचो जब बच्चे दिन भर चाचा चाचा करते हैं
हमारे आगे पीछे घूमते तो कितनी खुशी होती है, बड़े भैया भाभी भी तो वहां रहते हैं उनके दो-दो बच्चे हैं दिनभर कितना शोर शराब रहता था और पापा ने तुमसे ऐसा क्या कह दिया कि जो तुम अलग घर लेने पर उतारू हो गए ,पापा ने सिर्फ यही तो कहा था कि अभी तुम अपने ट्रांसफर के बारे में मत सोचो जब तक की तुम्हारी छोटी बहन रजनी की शादी ना हो जाए
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उसकी भी सगाई तो हो ही चुकी थी अब शादी में भी कितने दिन बाकी हैं अब बाहर से बार-बार हमारा आना संभव भी तो नहीं हो पाता, पर तुम्हें लगता था वह सब तुम्हारी तरक्की में बाधा बन रहे हैं तुम्हें पता है होली के दिन भाभी तुम्हारे चेहरे पर गुलाल से दाढ़ी मूछ बना देती थी और फिर हम सब परिवार वाले कितना खुश होते थे,
दीपावली पर साथ में दीपक जलाना रोशनी करना पटाखे चलाना, रक्षाबंधन पर बिट्टू का अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधना क्या-क्या नहीं था वहां, सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए हम यहां आ गए,तुम्हें ऊंचाइयां छूने का शौक था पापा ने कभी मना नहीं किया किंतु घर वालों से दूर रहकर कैसी ऊंचाई? हम घर वालों के साथ में रहते हैं
तो सुरक्षित हैं तुम जब ऑफिस चले जाते थे तो तुम्हें मेरी और बिट्टू की चिंता करने की जरूरत नहीं होती थी किंतु अब तुम हर समय हमारी चिंता करते हो, एक अनजाना सा डर तुम्हारे और मेरे दोनों के दिमाग में हरदम चलता रहता है अगर बिट्टू को कुछ हो गया तो, तुम्हें कुछ हो गया तो मेरा मन हमेशा ऐसा आसंकित रहता है,
हां मैं मानती हूं पापा जी मम्मी जी हमें देर रात मूवी देखने की इजाजत नहीं देते, न हीं घर में देर रात की पार्टी करने देते हैं तो क्या हुआ इन सब का समाधान भी तो है, हम मूवी दिन में भी देख सकते हैं और पार्टी हम बाहर जाकर भी कर सकते हैं पर तुमने इसी शहर में अपना अलग फ्लैट ले लिया वह भी इतना दूर,
,मम्मी पापा जी को कितना बुरा लगता होगा कितना दुख होता होगा, भाई साहब भाभी जी और उनके दोनों बेटे बिट्टू को कैसे पलकों पर बिठाकर रखते थे मुझे तो उसकी भूख प्यास तबीयत की कोई चिंता ही नहीं रहती थी, कब दिन और रात निकल जाते पता ही नहीं चलता छोटी-मोटी अनबन के बाद जो प्यार मिलता है
वह मैं भूल नहीं सकती प्लीज निशांत.. मुझे वहां ले चलो मुझे यहां नहीं रहना! नहीं पूजा.. तुम बिल्कुल सही कह रही हो मैं जब भी बाहर जाता हूं मुझे तुम्हारे और बिट्टू के लिए डर सा लगा रहता है जबकि वहां तो मुझे तुम लोगों की चिंता करने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं पड़ती,
गलतियां मुझसे भी तो हुई थी जिसे उन्होंने कितनी ही बार माफ किया होगा पर मुझे तो हमेशा उनमें ही गलतियां नजर आई, तुम सही कह रही हो पूजा हम जल्दी ही अपने परिवार में लौटेंगे मेरा वादा है तुमसे और वाकई में कुछ दिन बाद निशांत और पूजा अपनी बच्ची के साथ अपने परिवार में वापस आ गए घर वालों से अलग रहकर हम आराम की जिंदगी जी सकते हैं पर सुखी जिंदगी नहीं!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
“संयुक्त परिवार में रोक-टोक जरूर है पर सुरक्षा और परवाह भी है”