पारिवारिक अदालत – विनोद प्रसाद

मेरी सिगरेट की डिब्बी कहां है? कोई भी चीज ढूंढो तो मिलती नहीं है।” निखिल ने झंझलाते हुए पूनम से कहा।

“सिगरेट तो मैं पीती नहीं। आपने ही कहीं रखी होगी”- पूनम ने शांत लहजे में जवाब दिया।

“जुबान लड़ाना तो तुम खूब जानती हो”

और छोटी सी बात ने आज फिर उग्र रूप धारण कर लिया। पूनम की लाख कोशिशों के बावजूद, बहस रोज की तरह कमरे के बाहर आ ही गई। घर वाले आज फिर दोनों की लड़ाई के साक्षी बन गए। निखिल और पूनम की शादी को मात्र दो साल ही हुए थे। इन दो सालों में शायद ही कभी इन दोनों के कमरे से बहस की आवाज नहीं आई होगी। 

आखिर परिवार के सदस्यों ने आज घर में ही पारिवारिक अदालत लगाने का फैसला किया। कामवाली घर के काम निपटाकर जा चुकी थी।

नाश्ते की टेबल पर मम्मी-पापाजी और निखिल बैठे थे। पापाजी ने कहा- “बहू, तुम भी अपना प्लेट लेकर यहां आ जाओ।”

पूनम भी नाश्ते का प्लेट लेकर निखिल के बगल की खाली कुर्सी पर बैठ गई। पापाजी ने कहा- “मैं तुम दोनों से आज कुछ कहना चाहता हूँ। रिश्तों के बंधन में बंध जाना एक बात है और रिश्ते को ईमानदारी से जीना दूसरी बात। पति-पत्नी कोई मानव निर्मित रिश्ता नहीं होता है बल्कि ईश्वरीय गठबंधन होता है। हम तो निमित्त मात्र होते हैं और हमें ईश्वर की व्यवस्था पर ऊंगली उठाने का कोई अधिकार नहीं है। पति-पत्नी के बीच परस्पर सहयोग, समर्पण और विश्वास  बहुत जरूरी होता है। रिश्तों को भी भूख लगती है और इसका मुख्य आहार प्रेम और एक दूसरे के प्रति भरोसा एवं सम्मान है।”

उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए आगे  कहा -” हर पति-पत्नी के बीच छोटे -मोटे झगड़े होते हैं, लेकिन समझदारी इसी में है कि मतभेदों को आपस में मिल-बैठकर सुलझा लिया जाए ताकि बाहर वालों को झगड़े की भनक तक न लगे। एक-दूसरे की छोटी छोटी ग़ल्तियों को नज़र अंदाज़ कर देना चाहिए और यदि आवश्यक हो तो प्रेम से बताना चाहिए न कि ताने देकर। अपनी ग़लती को स्वीकार कर उसमें अपेक्षित सुधार करने से आदमी छोटा नहीं हो जाता है बल्कि और महान बन जाता है। दोनों को रिश्तों की अहमियत समझते हुए एक दूसरे को यथोचित सम्मान देना चाहिए। तुम दोनों पढ़े-लिखे और समझदार हो। रोज तुम लोगों में झगड़ा होना, न सिर्फ तुम दोनों के जीवन के लिए बल्कि इस घर के लिए भी ठीक नहीं है। इसलिए हमने आज तुम दोनों को अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए बुलाया है।”

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निखिल की ओर मुखातिब होकर उन्होंने पूछा -“बेटे पहले तुम बताओ, क्या परेशानी है।”

निखिल आज दिल की भड़ास निकाल देना चाहता था। उसने कहना शुरू किया- “पापाजी, मेरी हर बात को काटना इसकी आदत है। कभी ढंग से जवाब नहीं देती है। कभी मान-सम्मान से बात नहीं करती है। बात-बात पर लड़ने को आमादा हो जाती है।” और निखिल ने पूनम के खिलाफ सारा जहर उड़ेल दिया। पूनम चुपचाप सारे आरोप सुनती रही। नाश्ता समाप्त होने पर उसने पूछा- “पापाजी, मैैं चाय बनाकर लाती हूँ।”

“ठीक है जाओ पर जल्दी आ जाना”- पापाजी ने इजाजत देते हुए कहा। पूनम उठकर किचन में चली गई।

“अच्छा निखिल , पुरानी बातों को छोड़ो। आज किस बात पर बहस हुई ?” -पापाजी ने पूछा।

निखिल घबरा गया, हकलाते हुए बोला -“मेरी एक चीज नहीं मिल रही थी। बस उसी के बारे में पूछा था।”

“तो बहू ने क्या जवाब दिया ?”

“उसने कहा कि वो चीज वह इस्तेमाल नहीं करती, मैंने ही कहीं रख दी होगी”

“इसका मतलब जो चीज तुम ढूंढ रहे थे उसका इस्तेमाल तुम और सिर्फ तुम करते हो”




“जी….”

तब तक पूनम सभी के लिए चाय लेकर आ गई। कुर्सी पर बैठते ही मम्मी ने कहा- “बहू रानी, अब तुम अपनी परेशानी  बताओ। जो भी हो खुलकर बताना। तुम दोनों हमारी दो आंखों के समान हो। मैं तुम दोनों में कोई फर्क नहीं महसूस करती।”

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पूनम के आरोपों का सामना करने के लिए निखिल स्वयं को तैयार कर रहा था। पता नहीं कितना सच कितना झूठ बोलेगी। कहीं पापाजी के सामने सिगरेट वाली बात बताकर उसे जलील न कर दे।

“मम्मी जी, मुझे इनके बारे में कुछ नहीं कहना है। ये जैसे भी हैं मेरे लिए देवता तुल्य हैं। इनका सम्मान मैं हमेशा करती रही हूँ और करती रहूंगी। माना कि मुझमें भी कुछ कमियां और कमजोरियां होंगी, जिन्हें स्वीकार करते हुए अपेक्षित सुधार करने का वचन देती हूँ। इनकी सोच और इनके व्यवहार को मैं बदल तो नहीं सकती पर कोशिश करूंगी इन्हें भी रिश्तों की अहमियत का अहसास हो जाए।”

पूनम की सफाई पर निखिल पानी-पानी हो गया। उस पर बिना कोई आरोप लगाए उसने बड़ी सहजता से मम्मी-पापा का दिल जीत लिया। निखिल ने महसूस किया कि जो कुछ वह बोल रही है, सच्चे और दुर्भावना रहित दिल से बोल रही थी। निखिल मन ही मन अपनी पिछली भूलों और ज्यादतियों के लिए पश्चाताप करने लगा।

मम्मी जी बोलीं- “बहू, तुम भी पढ़ी-लिखी हो। मनोविज्ञान में तुमने मास्टर डिग्री हासिल किया है। इंसान को परखना और उससे तदनुरूप व्यवहार करने के बारे में तुम अच्छी तरह जानती हो। तुमसे कैसे चूक हो जाती है।”

“मम्मी जी, मैं इनके हर प्रश्न का जवाब प्यार और सम्मान से देती हूँ। मेरी भूल शायद यही है कि मैं अपने प्यार को इनके दिल में नहीं उतार सकी या इन्होंने मेरे प्रेम को महसूस ही नहीं किया। लेकिन मैं वचन देती हूँ कि भविष्य में आप लोगों को शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।”




“वाह बहू, हमें तुमसे यही उम्मीद है”- मम्मी जी ने पूनम को सीने से लगाते हुए कहा, “रही बात इस नालायक की, तो इसे भी सुधारने की जिम्मेवारी तुम्हारी।”

पापाजी ने गंभीर स्वर में निखिल से पूछा – “हाँ तो बरखुरदार, आपका क्या कहना है।”

अब तक निखिल के सारे गिले-शिकवे दूर हो चुके थे। इतने सुलझे हुए विचारों वाली पत्नी पर जरा-जरा ही बात को लेकर हंगामा खड़ा करने की घटनाओं से उसे आत्मग्लानि हो गई।

“पापाजी…मम्मी जी, मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं भी वादा करता हूँ कि आगे से मैं पूनम पर कभी अत्याचार नहीं करूंगा। हम कभी झगड़ा नहीं करेंगे और आपसी मतभेदों को हम मिल-बैठ कर सुलझाएंगे। आप लोगों को मुझसे कोई शिक़ायत का मौका नहीं मिलेगा।”

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“युग-युग जिओ मेरे लाल” पापाजी नेे निखिल का कंधा थपथपाते हुए कहा- ईश्वर तुम दोनों की जोड़ी बनाए रखें। खूब फलो-फूलो और तुम लोगों का जीवन हमेशा  खुशियों से भरा रहे, यही हम दोनों का आशीर्वाद है। अब तुम लोग अपने कमरे में जा सकते हो।”

निखिल और पूनम उठकर अपने कमरे में आ गए। 

“पूनम, मैंने तुम पर बहुत ज्यादतियां की हैं, इसके बावजूद पापाजी के सामने तुमने मुझे जलील नहीं होने दिया। यदि हो सके तो मुझे माफ़ कर दो।”

पूनम ने देखा, निखिल की आँखों में आंसू थे, शायद पश्चाताप के। निखिल के सीने से लगकर पूनम ने उसके आंसू पोंछे।

“कैसी बातें करते हो, आप तो सर्वस्व हो मेरे लिए। आपके बिना मैं तो बिल्कुल अधूरी हूँ। आइए आज से हम अपनी नई दुनिया बसाएं जिसमें सिर्फ भरोसा हो, प्यार हो और खुशियां ही खुशियां हों….

 

(समाप्त)

#भरोसा

-विनोद प्रसाद

  पटना 

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