परिवार को जोड़े रखने के लिए, परिवार को तोड़ना जरूरी है – प्रीती वर्मा 

यूं तो ये रचना हमेशा हंसती मुस्कुराती और जिंदादिली से रहती है।पर ऐसी क्या बात है जो ये दो दिनों से पार्क तो आती है पर मन कहीं और रख आती है। आज तो मैं इसके मन की व्यथा जानकर ही रहूंगी।साथ चलते चलते रचना जी की सहेली निर्मला जी ने रचना जी के चेहरे उदासियां को पढ़ते हुए सोचा।

निर्मला जी और रचना जी कोई बचपन की सहेलियां नही हैं, उनकी दोस्ती तो एक ही सोसाइटी में रहते हुए और सुबह शाम पार्क में मिलते हुए हो गई।

क्या हुआ रचना, तू बड़ी उदास लग रही है!और मैंने सुना है आजकल तुम्हारा बीपी भी बढ़ जाता है! ऐसी भी कौन सी बात है, जिसे लेकर तुम टेंशन करती हो…रचना जी की सहेली निर्मला जी ने पूछा!

रचना जी टहलते टहलते अचानक रुक गईं और बेंच पर जाकर बैठ गईं। निर्मला जी भी उनके पीछे पीछे आकर बेंच पर बैठ गईं!

अब बता भी दो रचना,,मन का बोझ हल्का हो जायेगा!और हो सकता है मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूं!

चारों बच्चों के बीच टकराव चल रहा है,चारों बहुओं में काम को लेकर अनबन रहती है, बेटों के बीच खर्च को लेकर तकरार होते रहते हैं! सब हर छोटी छोटी बात पर एक दूसरे से बहस करने लगते हैं!

कोई कहता है मैं ही सारे खर्चे देख रहा हूं, मैं क्यों किसी की बात सुनूं?मैं ही अकेले सबके खर्चे क्यों उठाऊं। कोई कहता है देवरानी बैठी रही मैंने सारा काम कर लिया, कोई कहता है जेठानी ने कुछ नहीं किया मैंने सब अकेले किया, ऐसा लगता है सब अलग रहना चाहते हैं। ये सब देखकर एक चिंता होती है, आखिर कब तक मैं परिवार को बांधे रखूंगी! सोचा था अपने जीते जी कभी परिवार को टूटने नही दूंगी!पूरे परिवार को एक धागे में पिरोए रहूंगी।रचना जी ने उदास होते हुए कहा।

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रचना जी के चार बेटे, चार बहुएं, दो बेटियां, और पोते पोतियों से भरा संयुक्त परिवार है! रचना जी हर कोशिश करती रहती हैं कि परिवार ऐसे ही हमेशा बना रहे,परिवार में कभी बंटवारा न हो!

रचना, कभी-कभी घर को जोड़े रखने के लिए घर को तोड़ना जरूरी हो जाता है! निर्मला जी ने कहा।

क्या मतलब है तुम्हारा, मैं कुछ समझी नहीं! रचना जी हैरानी से निर्मला की तरफ देखने लगीं।

रचना, परिवार के जुड़े रहने का मतलब ये नहीं कि वो एक ही छत के नीचे रहें! परिवार के जुड़े रहने का मतलब है,वो दिल से एक दूसरे से जुड़े हो, दिल में एक दूसरे के प्रति सम्मान हो!

देखो रचना जब चार बर्तन इकट्ठा रखोगी, तो आवाज तो होगी ही न, तो इससे अच्छा है चारों बर्तनों को अलग अलग रखा जाए न!

देखो जब सब एक साथ रहते हैं,आपस में मतभेद होता है,विचारों में मतभेद होता है तो टकराव भी होता है…मन में एक दूसरे के प्रति कड़वाहट होगी! अगर सबको अलग-अलग कर दिया जाए, तो वो एक दूसरे से कभी कभी या त्योहारों में ही मिलेंगे…तो एक दूसरे के प्रति सम्मान रखेंगे! छोटी छोटी बातों को भी इग्नोर करेंगे,,,ये सोच कर कि हमे कौन सा एक साथ रहना है और एक साथ खुश रहेंगे।

और तब न मतभेद होगा,ना टकराव होगा,ना अलगाव होगा! रचना परिवार का एक साथ रहना जरूरी नहीं है, जितना उनका एक साथ होना जरूरी है और एक साथ होने का मतलब है, हमेशा एक दूसरे का सम्मान करें,प्रेम और विश्वास को डोर से बंधे रहें !सुख हो दुख हमेशा एक दूसरे के साथ खड़े रहें।

ऐसे जबरदस्ती उन्हे एक साथ रखा गया, तो कहीं एक दिन उनके मन में एक दूसरे के लिए इतनी कड़वाहट न भर जाए, कि एक दूसरे को देखना ही पसंद न करें।और भाई भाई में बैर हो जाए।समझो रचना यही समय की मांग है।

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और हमारा क्या, हम तो माएं हैं, हमारी खुशी भी तो बच्चों की ही खुशी में है!है ना!निर्मला जी ने रचना जी से कहा!

तुम सही कह रही हो निर्मला,शायद यही समय की मांग है और रिश्तों को दरकने से बचाने का उचित रास्ता! लड़ाई झगड़ा करके अलग होने से अच्छा है सर्वसम्मति से खुशी खुशी अलग हो जाएं!

शायद यही समय है,घर का बंटवारा करके घर को टूटने से बचा लिया जाए!

आज ही मैं सबके सामने बंटवारे की बात रखूंगी और हां जिसमे एक हिस्सा मेरा भी होगा!

रचना जी की बात सुन निर्मला जी मुस्कुराने लगी…ये तुमने सही निर्णय लिया रचना,अपना हिस्सा जरूर लगाना!और रचना जी भी मुस्कुराने लगीं…।।

#परिवार

स्वरचित मौलिक

प्रीती वर्मा 

धन्यवाद

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