सीमा के घर से रोने – चिल्लाने की आवाजें बहुत जोर से आ रही थीं जिसके कारण सारा मोहल्ला ही रात के एक बजे वहां एकत्रित हो गया था। अरे…… अरे ये क्या हो गया, और कैसे हुआ, का समवेत स्वर चारों ओर सुनाई दे रहा था। उनकी मात्र छह माह पुरानी पुत्रवधु सुनंदा अर्धजली अवस्था में तड़प रही थी और बेटा रोहित भी अपने दोनों हाथ जलाये, लोगों के सामने थे।
” चलो….. चलो जल्दी इन दोनों को हस्पताल लेकर चलो ” हर तरफ से यही शोर सुनाई दे रहा था तथा रसोईघर से निकलने वाली गैस की बदबू और धुएं ने लोगों का वहां खड़ा रहना मुश्किल कर दिया था । रातों – रात उन दोनों को हस्पताल लेकर जाया गया।
अगली सुबह हर ओर सीमा और सतीश की बहु आग में जल मरी की खबर आग की तरह फ़ैल गई जबकि अभी सुनंदा जीवित थी, और उपचाराधीन थी । पर लोगों का क्या है, एक सुनकर चार बनाते उन्हें देर नहीं लगती। “अरे अभी तो छह माह ही हुए थे रोहित के विवाह को, ऐसा क्या हो गया जो बहु को जलाकर मार दिया इन ससुरालवालों ने । लगता है दहेज़ चाहिए होगा, जब शादी हुई थी, तब तो बड़ा कहते थे कि हमने एक रुपया भी दहेज़ के नाम पर नहीं लिया है लड़की के माता-पिता से, अब उतर गया मुखौटा……दिखा दी ना अपनी औकात ।” जितने मुंह उतनी बातें । फिर क्या था ये खबर शहर के महिला – संगठनों तक भी पहुंच गयी और उनका तो #आक्रोश ही फूट पड़ा । सीमा और सतीश के घर के बाहर हाय —— हाय के नारे लगने लगे । “बहु के हत्यारों को फांसी दो, इनका मुंह काला करो ” । लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी, इतना कि सीमा और सतीश जी अपने बहु -बेटे को देखने हस्पताल तक नहीं जा पा रहे थे। कल तक जिस संभ्रांत परिवार की लोग मिसाल देते थे, आज उन्हीं की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही थीं ।
उधर टी.वी.चैनलों में भी यही खबर हर जगह दिखाई जा रही थी। मीडिया को तो चटपटा मसाला मिल गया था । रोहित की कोई गर्लफ्रेंड भी है, ये इन मीडिया वालों ने पैदा कर दी थी तथा सीमा को क्रूर सास और सतीश जी को एक वहशी ससुर के रूप में हर चैनल पर खूब उछाला जा रहा था।
जबकि वास्तविकता कुछ और ही थी । दरअसल सुनंदा एक उग्र स्वभाव की व घमंडी लड़की थी। वह अपने सास-ससुर के साथ नहीं रहना चाहती थी और विवाह के तुरंत बाद से ही रोहित पर अलग रहने का दबाव डाल रही थी, जिसे अपने माता-पिता का एकमात्र पुत्र होने के कारण रोहित अस्वीकार कर रहा था । इसलिए स्वयं सुनंदा ने ही अपने सास-ससुर और पति को सबक सिखाने की खातिर खुद के कपड़ों में आग लगाई । उसकी कोशिश तो ये थी कि थोड़ा सा स्वयं को जलाकर वह इन तीनों को फंसा देगी, पर उसका ये दांव उल्टा पड़ गया। उसकी सिल्क की नाईटी ने तेज़ी से आग पकड़ ली और वह गंभीर रूप से जल गई ।
इधर शहर भर का आक्रोश सतीश जी के परिवार पर निकल रहा था । बेचारा रोहित, जो खुद भी सुनंदा को बचाने के प्रयत्न में घायल हुआ था, उसकी ओर किसी की भी सहानुभूति नहीं थी । लोगों ने उसके हाथों को जला देखकर यही कहा कि आग ही रोहित ने लगाई थी जबकि चाहें आग लगाने वाला हो या बचाने वाला हाथ तो दोनों ही परिस्थितियों में जलते हैं ।
हम कभी ये क्यों नहीं सोचते कि हो सकता है कि इस सिक्के का दूसरा पहलू भी हो । कैसा होता है ये जनाक्रोश जो कई बार ग़लत जगह पर बिना कुछ सोचे-समझे फट पड़ता है और इस आक्रोश की बलि चढ़कर कितने ही निर्दोष लोग अपनी पूरी जिंदगी हार जाते हैं । यही रोहित के साथ हुआ। उसने अपने माता-पिता को बचाने के लिए सारा झूठा इल्जाम खुद के सर ले लिया व जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गया, जहां उसका भविष्य पूर्णतया अंधकारमय था ।
दूसरी ओर सुनंदा भी जो अपने ही परिवार जनों को फंसाकर अपनी मनमानी करना चाहती थी, वह भी नहीं बच पाई। और इस तरह से एक पूरा परिवार ही तबाह और बर्बाद हो गया।
हमें हमेशा अपने आक्रोश को काबू में रखना आना चाहिए । यदि सुनंदा ही इतना अधिक आवेश में नहीं आती और ये खतरनाक रास्ता नहीं चुनती तो शायद थोड़ी समझ-बूझ के साथ अपनी अलग गृहस्थी बसा सकती थी और तब वह खुद भी अपनी जान से हाथ नहीं धोती और ना ही एक परिवार उजड़ता ।।
#आक्रोश
नूतन सक्सेना