“मम्मी, हमें भी होली खेलने जाना है ।” ऋषभ और सौरभ, हमारे जुड़वाँ बेटे इसरार करने लगे ।
किसी भी माँ-बाप को जिस बात का डर लगता है, इस साल भी वही हुआ । धुलेंडी के दूसरे दिन ही बच्चों की एक्ज़ाम शुरू होनेवाली थीं । बच्चों की बात सुनकर मुझे उनपर और खुदपर तरस आया और परीक्षा प्रणाली पर गुस्सा भी । ऋषभ और सौरभ 5 वीं में थे, सोसायटी के अन्य कई बच्चे बड़ी कक्षाओं के भी थे ।
“वो त्योहार ही कैसे जो मनाए ही न जा सकें । बच्चों का दिल तोड़ना पड़ता है । बड़ा बुरा लगता है । और यदि उन्हें जाने दूँ तो सालभर की मेहनत पर पानी फिर सकता है । पानी में खेलेंगे, धूप में घूमेंगे, गीले कपड़ों पर हवा लगेगी तो ज़ुकाम हो सकता है, बुखार भी आ सकता है ।”
मैंने अपने पति विशाल से कहा ।
“तुम्हारी बात सही है । हर माँ इस समय इसी दुविधा में पड़ी है । कुछ तो हल निकालना पड़ेगा ,,,,,,,,, सुनो तुम पूजा की तैयारी कर लो । मैं अभी आता हूँ ।” कहकर विशाल बाहर निकल गए ।
जब से हम लोग अहमदाबाद शिफ्ट हुए, वीरभूमि सोसाइटी में ही रह रहे थे । कुछ महीने रेंट के घर में रहने के बाद हमने यहाँ 3 बी.एच.के. फ्लैट खरीद लिया । विशाल के मम्मी पापा और मेरे मम्मी पापा अलट पलटकर अहमदाबाद आते रहते । सबने एक तरह से अपनी ड्यूटी बना ली थी । हमें अच्छा लगता और बच्चों को भी कभी दादा दादी तो कभी नाना नानी के साथ रहने का अवसर मिल जाता ।
पड़ौस में रहनेवाले शर्मा अंकल आंटी मुझे अपनी बेटी जैसा ही मानने लगे । अंकल में मुझे हमेशा पापा का अक्स नज़र आता । करीब छः महीने पूर्व पापा की डेथ के बाद अंकल आंटी एक बहुत बड़ा भावनात्मक सहारा बनकर आए थे।
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मैंने नहाकर पूजा की । सभी देवताओं और कान्हा जी को गुलाल लगाया , गुजिया का भोग लगाया । फिर प्रणाम करने पड़ौस के अंकल आंटी के घर चली गई ।
आंटी को प्रणाम किया तो उन्होंने आशीष की झड़ी लगाते हुए मुझे गले लगा लिया ।
तभी अंकल ने “हैप्पी होली” कहते हुए घर में प्रवेश किया । मैंने उन्हें प्रणाम किया और उन्होंने आशीष दिया । अंकल की छवि देखकर पापा की याद आ गई ।
मेरी आँखों के कोर गीले देखकर अंकल बोले, “हम हैं न बिटिया, तुम चिंता क्यों करती हो ,,,,,,,?
मैंने आदर से हाथ जोड़ लिए ।
“अच्छा चलो तुम्हारी परेशानी का हल भी हमने निकाल लिया है । अभी सोसाइटी की मीटिंग में तय हुआ है कि इस बार अपने कैम्पस में होली सिर्फ गुलाल से खेली जाएगी । रंगों और पानी पर बैन रहेगा । अधिकतर बच्चों की परीक्षा चल रही है और हम नहीं चाहते कि बच्चे बीमार पड़ें ।” अंकल ने आश्वस्त करते हुए कहा ।
तभी विशाल भी बच्चों को लेकर आ गए । दोस्तों के साथ होली मनाने की कल्पना से ही बच्चे ख़ुशी से उछल रहे थे ।
ऋषभ, सौरभ दोनों ने पहला टीका पड़ौस के शर्मा दादा दादी को लगाया फिर हमें गुलाल लगाकर किलकारी सी मारते हुए बोले, “मम्मी पापा, हम जाएँ खेलने ?”
“हाँ हाँ जाओ । टाइम से वापस आ जाना ” खिलखिलाहट की फुहार के साथ हम दोनों एकसाथ बोल पड़े । परीक्षा वाली होली और रंगीन हो गई थी ।
– स्मिता टोके ‘पारिजात’
इंदौर
मौलिक एवं स्वरचित
# बेटियाँ जन्मोत्सव कहानी 4