परिचित – सुनीता परसाई : Moral stories in hindi

सुबह का नजारा बड़ा लुभावना था।शुभी को लग रहा था, जैसे आकाश एकदम स्वच्छ है। सूरज का रूप आज ज्यादा सुनहरा हो गया है।

कल ही समीर से मुलाकात हुई थी। समीर ने अस्पताल के दरवाजे पर मिलने पर हाथ जोड़कर “नमस्ते” कहा,शुभि ने जवाब नहीं दिया आगे बढ़ने लगी, समीर की पत्नी रूही बोली “अरे आप इन्हें जानते हैं?” फिर शुचि से कहा “रुकिए बहन जी रुकिए ,आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आपके कारण आज मैं  स्वस्थ होकर घर जा रही हूँ ।आपका एहसान कभी नहीं भूलूंँगी।आप कभी घर आइये।

शुचि ने कहा “जी” व जाने  लगी ।समीर से रुही ने पूछा “आप इन्हें  जानते हो? कौन है?”समीर बोला “हांँ, मेरी पुरानी कंपनी की बाॅस।”

रूही बोली “इन्हीं के कारण आज मैं ठीक हुई हूँ।इन्होंने ही मुझे अपना खून दिया है।मुझे नर्स ने बताया।

समीर चकित हो बोला “क्या?”

रूही बोली”हाँ,..हाँ, यही सच है।

शुभि बिना कुछ  बोले वहाँ से चल दी।

*

शुभि की मांँ उसके ही साथ  रहती थीं।दो दिन पहले उनको लकवा लग गया था।

इसलिए उन्हें इसी अस्पताल में एडमिट किया था।वह आईसीयू के बाहर बैठी थी ।तभी उसे दूर से समीर आता दिखा।वह पेपर उठा कर पढ़ने लगी।समीर परेशान सा सीधा वार्ड में चला गया। बहुत दुबला हो गया है।थोड़ी देर बाद काउंटर के पास समीर गया। वहाँ डाक्टर भी खड़ी थी। उन्होंने  बात करने समीर को बुलवाया था।डा.समीर से बोली “मिस्टर समीर, आपकी पत्नी का ब्लडग्रुप एबी निगेटिव है, यह बड़ी मुश्किल से मिलता है। हमारे अस्पताल के ब्लडबैंक में कल ही खत्म हुआ है।आपकी पत्नी को बहुत आवश्यक है ब्लड चढ़ाना। कल तक आप व्यवस्था कर लीजिए।वरना उसकी जान को खतरा है।हम भी कोशिश कर रहे हैं।” समीर घबरा गया था। इधर-उधर फोन कर रहा था।

शुचि ने सब सुन लिया था।

उसकी माँ की तबियत में सुधार हो रहा था। दोपहर में उन्हें रूम में भेज दिया था।शुचि का भाई भी आ गया था।दो रात से वह सो नहीं पायी थी।शाम को घर जाने से पहले वह ब्लडबैंक में एक यूनिट अपना खून देकर चली गई। क्योंकि वह जानती थी कि उसका भी ब्लडग्रुप एबी निगेटिव है।

समीर सब जगह ब्लडबैंक, अस्पताल रक्तदान ग्रुप आदि को फोन कर के पता कर रहा था।पर कहीं नहीं मिल रहा था एबी निगेटिव ब्लड।

रात को समीर से नर्स ने बताया कि, ब्लड मिल गया है।कोई महिला  रक्तदान कर गयी है।।अभी चढ़ा देते हैं। समीर के जान में जान आयी।

रुही को तुरंत खून चढ़ा दिया गया।धीरे-धीरे वह स्वस्थ होने लगी।

एक दिन शुभि माँ के रूम में जा रही थी,तभी रुही को नर्स बाहर घुमा रही थी।दूर से देखकर बोली रूही जी,वो दीदी जो जा रही हैं उन्हीं का खून चढ़ा है आपको।

रूही बोली अच्छा!उन से मिलना होगा।तभी देखा वह तेजी से बाहर निकल गई, उसके आफिस का समय हो गया था।

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शुभि पढ़ी लिखी संस्कारी लड़की थी।अपनी माँ के कदमों पर चलनेवाली।

नाक नक्श भी सामान्य था, रंग भी सांँवला था।

जो भी देखने आता ,पलट कर जवाब ही न देता।

समीर के पिता सरकारी आफिस में 

लिपिक थे।उनकी दो बेटियां भी थीं शादी लायक। उनका विचार था कि, समीर के दहेज के पैसे से बेटियों का ब्याह कर देंगे।

अतः समीर को बहुत पटाकर उसकी जबरजस्ती शादी कर दी।

समीर शुचि से खिंचा-खिंचा सा रहा।व उसने अपने  मन की बात शुभि को बता दी कि पिता के कहने पर मैंने ये शादी की है ।मैं किसी ओर से प्रेम करता हूँ।

शादी के पंद्रह दिन बाद शुभि मायके चली गई। फिर वह वापस ससुराल नहीं आयी। समीर भी उससे बिना मिले मुंबई चला गया।

कुछ दिनों बाद शुभि के सास-ससुर लेने आये।ससुर जी शुभि से बोले “बेटा शुभि अपने घर चलो।”

 शुभि ने विनम्रतापूर्वक कह दिया कि “ फेरे मैंने समीर के साथ लिए हैं, जब वे लेने आयेंगे तभी घर आऊँगी।”

उसने समीर की कही बातों का किसी से जिक्र भी नहीं किया।

बहुत मनाते रहे सास-ससुर,माता-पिता पर

शुभि नहीं  मानी।बस यही रट लगाती समीर के साथ ही जाऊँगी।उसकी बात सुन सब चुप हो जाते।

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शुभि तो जानती थी कि, समीर नहीं आयेगा।

 शुभि के पिताजी भी अचानक हार्टअटैक में चल बसे।भाई अभी पढ़ रहा था।

तीन महीने में शुचि व समीर का तलाक हो गया था।

शुचि ने बहुत सोच समझ कर, सरकारी लोन लेकर घरेलू उद्योग चालू किया। धीरे-धीरे उसका काम अच्छा चलने लगा ।उसकी यहाँ करीब दो ढाई सौ अनाथ या गरीब महिलाएं काम करती थीं।वह महिलाओं  को ही अपनी फैक्ट्री में रखती थी।

 अपने काम के सिलसिले में वह एक बार मुंबई गयी थी।।वहाँ वह अपने साथियों के साथ माॅल में शापिंग कर रही थी। अचानक ही वहाँ उसको समीर दिखा।  समीर के गोद में बच्ची थी व साथ सजी- धजी जीन्स टाॅप पहने फैशनेबल लड़की उसका हाथ थामें चल रही थी।शुभि अनदेखा कर दूसरे रास्ते से निकल गई।

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शुभि का काम पाँच ही वर्षों में बहुत बढ़ गया था।वह पापड़,मसाले आदि घरेलू  खाद्य सामग्री बड़ी बड़ी मशीनों के द्वारा पैक करके वितरित करती थी।

उसने अब अपनी एक फैक्ट्री  मुंबई में भी खोल ली थी।उसने मुख्यालय मुंबई में ही बना लिया था।

वह अपने भाई व माँ के साथ मुंबई में रहने लगी थी। 

समीर ने उसका जीवन खराब कर दिया था परन्तु शुभि के हृदय में तो मानवता बसी थी। उसे समीर की बेटी का मासूम चेहरा याद आ गया।इसलिए उस दिन डाक्टर की बात सुनकर कर वह रक्तदान करके घर चली गई थी।

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पत्नी को अस्पताल से घर लाकर समीर  ने लिटाया वह दवाई लेकर सो गयी।समीर रात भर सो नहीं पाया।

दूसरे दिन सुबह वह अस्पताल में शुभि की माँ के कमरे के पास जाकर खड़ा हो गया। 

   आफिस जाने के पहले वह अस्पताल आती थी।जैसे ही शुभि आयी, तुरंत उसके सामने जाकर बोला “शुभिजी मुझे क्षमा करें, मैंने आपको समझने की कोशिश भी नहीं की।आप बहुत समझदार हैं।आपने मेरी पत्नी को जीवन दान दिया है, व मेरी मासूम बेटी को उसकी माँ ।रूही को  डेंगू हो गया था। प्लेट रेट कम होते जा रहे थे।आप यदि उस दिन रक्तदान न करती तो जाने क्या हो जाता।आपका एहसान मैं जिंदगी भर नहीं भूलूंँगा।

मैंने तो आपके साथ बहुत ग़लत किया,परन्तु आप का मन बहुत निर्मल है, इसीलिए आपने मानवता को महत्व दिया। समय-चक्र तो चलता रहता है परन्तु ,ईश्वर ने इतनी बड़ी दुनिया के होते हुए भी आपके ही समक्ष मुझे पुनः प्रस्तुत कर आज पश्चाताप का मौका दिया है।मुझे क्षमा करें।

तभी माँ अंदर से बोली “बेटा शुभि कौन है”?

शुभि बोली “कोई नहीं माँ, एक परिचित हैं”।

समीर की आँखें भर आयीं वह सर झुकाए खड़ा रहा।शुभि बिना कुछ बोले माँ के पास चली गयी।

सुनीता परसाई, जबलपुर मप्र।

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