पराँठे रहने दीजिए …. – रश्मि प्रकाश

“ निशिता मेरे कपड़े प्रेस वाले के पास से आ गए हैं क्या….नहीं आए है तो प्लीज़ फोन कर के मँगवा लेना दो दिन बाद एक मीटिंग  केसिलसिले में राँची जाना है ।” रितेश ऑफिस के लिए तैयार होते हुए बोला 

“ हाँ मँगवा लूँगी… बता दोगे तो पैकिंग भी कर दूँगी नहीं तो खुद कर लेना।”बाहर मेज पर नाश्ता निकालती निशिता ने कहा 

“ कौन कहाँ जा रहा है बहू ?” पूजा कर हॉल में पहुँच बातें सुन सुमिता जी ने पूछा 

निशिता ने रितेश से हुई बातें बता दिया 

“ बेटा तेरी छोटी चाची भी वही रहती है…. जा ही रहा है तो मिल आना… घर परिवार का हाल समाचार मिलता रहे तो अच्छा है ।” सुमिता जी नाश्ते की मेज़ पर रितेश से बोली 

“ माँ ऽऽऽ चाची से मिलने जाऊँ… कभी नहीं…. मुझे आज भी उनकी एक एक बात याद है… जेहन से नहीं निकलती … जब भी बोलतीथी लगता जहर उगल रही है ।” पराँठे खाते हुए रितेश ने कहा और हाथ में पकड़ा पराठा उलट पलट कर देखने लगा

“ याद है माँ इन पराठों ने तुम्हारी आँखों मे कितने आँसू दिए और मुझे कितना जलील…।” रितेश ने कौर मुँह में लेते कुछ पुरानी बातें यादकर बोला 

“ सब याद है बेटा पर… अब उन बातों को याद कर रखने का क्या मतलब… कितना समय बीत गया… तब की और अब की हमारीपरिस्थितियाँ भी बदल गई… इसलिए कह रही हूँ… जाकर मिल लेना हो सकता है अब वो बदल गई हो वैसे भी हम शादी ब्याह में हीमिलते रहे वो भी घर पर कभी नहीं… जाएगा तो उनके लिए अनरसा मिठाई लेते जाना… उनको बहुत पसंद है।” सुमिता जी प्यार सेबोली 

इस कहानी को भी पढ़ें: 

स्वाद के खातिर सेहत से समझौता नही – निशा जैन : Moral Stories in Hindi

रितेश अपनी माँ को आश्चर्य से आँखें फाड़कर देख रहा था… माँ कैसे उन सब बातों को भूलकर आगे बढ़ने को कह रही है जबकि जिसनेये सब किया कहा उसे तो शायद कोई पछतावा भी नहीं हुआ हो ।

खैर माँ के कहने पर रितेश अपनी चाची के घर मीटिंग ख़त्म कर मिलने चला गया…. सोचकर तो यही गया था जाते ही राम सलाम करपाँच दस मिनट बैठ माँ के कहे पर मिठाई देकर निकल लेगा पर यहाँ पर जब आया चाची के चेहरे पर उसे देखते जो चमक आई वोबयान करना मुश्किल हो रहा था 




“ अरे रितेश बेटा … आओ..आओ यहाँ कैसे आना हुआ…और घर में सब ठीक…?” प्यार दुलार दिखाते हुए चाची ने कितने ही सवालकर डाले

रितेश को बैठा कर खुद उसके लिए चाय नाश्ता ले आई…रितेश ना ना करता रहा फिर भी ज़बरदस्ती बिठाकर बातें करने लगी …. चाचातो पहले भी कम बोलते थे आज भी कम बोल रहे थे पर रितेश को देख चेहरा उनका भी खिल गया था 

“ भाभी को आज भी याद है मुझे अनरसा कितना पसंद है देखो भिजवा दिया…।” कहते हुए डिब्बे में से निकाल एक अनरसा मुँह में रखलिए

बीस मिनट तक रितेश को लगा ही नहीं ये वही चाचा चाची है जो एक समय पर उसकी माँ और उसे कितना जलील कर चुके थे … वोसब याद आते मन कड़वाहट से भर गया और रितेश ने जाने की अनुमति माँग जैसे ही खड़ा हुआ चाची ने कहा,“ बेटा खाना खा करजाना…और होटल में रूका होगा तो ….यही रूक जाओ… हमें दोनों को भी अच्छा लगेगा ।” चाची के ये मीठे बोल रितेश को हज़म नहींहो रहे थे 

फिर भी संस्कारी रितेश चाची के आग्रह को नकार ना सका और चाचा के साथ खाने की मेज पर बैठ गया

चाची चाचा के लिए रोटियाँ परोस कर लाई और रितेश की थाली में पराँठे….

इस कहानी को भी पढ़ें: 

उम्र के आखिरी पड़ाव की कीमत – दिक्षा बागदरे : Moral Stories in Hindi

“ चाची मैं रोटी खा लूँगा…. पराँठे बनाने की ज़रूरत नहीं है।” रितेश पराँठे हटाते हुए बोला 

“ अपनी चाची को माफ़ नहीं करेगा बेटा… आज भी तुम्हें वो पराँठे वाली बात याद है…अक्ल पर परदा पड़ा था मेरे… नहीं जानती थीजिनको पराँठे खिला रही थी वो तो सगे हो कर भी सगे ना रहे,… और तुम जिन पराँठों के लिए उनकी तरफ़ ललचाई नज़रों से देखते थे मैंधिक्कार देती थी… बहुत पछतावा होता है बेटा …उस वक्त को याद कर ग्लानि से भर जाती हूँ…..बिन पिता के बच्चे की लाचारी समझना सकी और कहती रही बड़ा आया पराँठे खाने वाला ये रोटी मिल रहा वही बहुत है और देखो ना आज वही सुमिता दीदी का लायकबेटा बन कर उनकी कितनी देखभाल करता है और मेरे दोनों बेटे अपनी दुनिया में मग्न है माँ बाप से जैसे कोई वास्ता ही नहीं ।” कहतेकहते चाची की आँखें पनीली हो गई




रितेश कुछ ना बोला पर आज भी उसे उन पराँठों में वही तिरस्कार नजर आ रहा था ….पर जब चाची की तरफ़ देखा तो उसे लगा शायदआज पराँठों में चाची का प्यार पछतावा बन कर घी में चुपड़ गया हो….क्योंकि सालों पहले की कही बात कही ना कही धुंधली हो गई थीऔर आज चाची को अपने बच्चों से ज़्यादा रितेश पर प्यार आ रहा था जो उनसे मिलने आ पहुँचा था।

जब रितेश जाने को हुआ तो चाची रोते हुए बोली,“ अब कभी आओ तो घर पर रूकना बेटा… अच्छा लगा जो तुम आए … सुमिता दीदीको हमारा प्रणाम कहना और कहना अपनी छोटी बहन को माफ कर दे… अब उम्र ही कितनी रह गई है … सब इतने दूर हो गए है किमिलना भी नहीं होता … बस अब जब आओ यही आना यहाँ हम है ना।”

रितेश हाँ में सिर हिला निकल गया ।

कार में बैठकर वो सोच रहा था कितने मजबूर थे ना उस वक्त जब पिता के अचानक देहांत के बाद कुछ समय चाचा चाची के साथ रहनेको मजबूर हो कर गए थे… 

तब रितेश छोटा ही था और चाची के बेटे भी …पर चाची रितेश को कभी ढंग से खाना ना देती रितेश को पराँठे बहुत पसंद थे जब उसकेदोनों भाइयों को पराँठे मिलते तो वो भी कह देता ,“ चाची मुझे भी पराँठे दीजिए ना… ।”

“ बड़ा आया पराँठे खाने वाला चुपचाप रोटी खा लो… ये घी वाले पराँठे मेरे बेटों के लिए है… बाप तो चला गया… पर जीभ पर स्वादवही छोड़ गया… ।”चाची तंज कसते हुए कहती 

इस कहानी को भी पढ़ें: 

अंतिम पड़ाव.. – विनोद सिन्हा “सुदामा” : Moral Stories in Hindi

ये सब सुन कर सुमिता जी खूब रोती बेटे को भींच कर कहती बस बेटा जैसे ही कहीं नौकरी लगती हैं तुम्हें पराँठों के लिए तरसने ना दूँगीबस यहाँ चुपचाप रोटी खा ले।

उसके बाद रितेश ने पराँठे खाने कम कर दिए थे… उसे चाची की बात बहुत गहरे लग गई थी और आज वही चाची उसे देख पराँठे खिलारही थी वो भी अपने मन से शायद ये उनका पछतावा ही था जो उन्होंने कभी रितेश के साथ बुरा सलूक किया था उसे इस रूप में उतारनेकी कोशिश कर रही थी ।

दोस्तों कभी सोचा है किसी बच्चे के साथ कोई ऐसा सलूक भी कर सकता है … जी जब बच्चे के सिर पर पिता का साया नहीं हो तो लोगबहुत कुछ कहते भी हैं और सुनाने से बाज भी नहीं आते… कोई बच्चा जिसकी ज़िंदगी सुगम और खुशहाल हो जिसे किसी चीज़ की कभीकमी ना कही हो वो भी छोटा बच्चा उसे क्या समझ पिता के नहीं रहने पर कितना कुछ गुजर जाता है और ज़िन्दगी पहले जैसी जरा नारहती ।

मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा पसंद आये तो कृपया उसे लाइक करे और कमेंट्स करे ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#पछतावा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!