पराजित – बिंदेश्वरी त्यागी : Moral Stories in Hindi

रामकिशन जी आज फिर मकान को सुरुचि पूर्ण ढंग से सजा रहे थे l रंगीन और सुंदर परदे , नई-नई कलाकृतियां और सोफे को अलग तरीके से व्यवस्थित कर रहे थे l

नाश्ते में मिठाई नमकीन बिस्कुट के साथ घर की बनी हुई चीजों को भी रखा था l भोजन भी स्वादिष्ट और अच्छा हो ऐसी व्यवस्था की थी l

सबसे बढ़कर बेटी रागिनी को सजाने के लिए पार्लर वाली को पहले से बुलाया हुआ था l और अपनी बड़ी बेटी मीनाक्षी को भी बुला लिया था l रागिनी वैसे तो बहुत सुंदर थी लेकिन सजाने के बाद उसकी सुंदरता में और भी निखार आ गया l

रामकिशन जी के एक मित्र थे मिश्रा जी लड़के के पिता उनके साथ नौकरी करते थे l उन्होंने रामकिशन जी को पूरा विश्वास दिला रखा था कि रमेश जी आज जरूर आएंगे l क्योंकि जो मैं चाहूंगा वे वही करेंगे l और मैं तेरे साथ हूं l

मिश्रा जी बहुत अच्छे आदमी थे स्वभाव से भी हंसमुख और बात के पक्के l उनके संबंध हर जगह अच्छे ही थे l इसी बात को ध्यान में रखते हुए रामकिशन जी काफी हद तक विश्वास किए थे कि यह संबंध होकर रहेगा l और सोच रहे थे कि यह शादी तय हो गई तो रिटायरमेंट के पहले ही रागिनी का विवाह हो जाएगा वह निश्चित जीवन बिता सकेंगे l

सभी व्यवस्थाएं पूरी हो चुकी थी रागिनी भी तैयार हो चुकी थी l मिश्रा जी भी आ गए थे l लेकिन अभी लड़के वालों का आगमन नहीं हुआ था जबकि वह ज्यादा दूर से नहीं आ रहे थे l यह प्रश्न रामकिशन जी के दिमाग में बार-बार घूम रहा था और उन्हें चिंतित कर रहा था l

मिश्रा जी बोले यार रमेश जी की पत्नी को तुम नहीं जानते हो इसलिए ऐसा सोच रहे हो l सही मायने में वही घर की मालकिन है उनकी मर्जी के बिना रमेश एक कदम भी नहीं चल सकता और वह आगे नहीं चल सकता है l और वह अपनी बेटी को साथ लिए बिना तो आने से रहे और

 लड़कियों का सजना तो सभी जानते हैं कितना समय लेता है l

हां , इसके सिवा रामकिशन जी के मुंह से कुछ ना निकला क्योंकि वह चिंतित थे बेटी के आप जो ठहरे l फिर रागिनी को देखकर कुछ निश्चित से हुए और उसे भी विश्वास दिला रहे थे की चिंता मत करो सब ठीक ही होगा l

रागिनी सोच रही थी कि मैं चिंता करती ही कहां हूं l हर बार मेरी नुमाइश और लड़के वालों का तरह-तरह से बहाना बनाकर अस्वीकार करना मेरा क्या हर भारतीय लड़की की नियति बन गई है l

इसमें चिंता कैसी l रागिनी अपने पिता की हैसियत और दहेज के बाजार भावों से भली भांति परिचित है l पर उसे कुछ संयोग और कुछ अपने व्यक्तित्व तथा शिक्षा पर भी विश्वास था l वैसे लड़के राह चलते लड़कियों की जूतियां उठाने को तैयार रहते हैं परंतु शादी के नाम पर बहुत महत्वपूर्ण बन जाते हैं l

रागिनी का ध्यान भंग हुआ जब दरवाजे पर टैक्सी आकर रुकी l टैक्सी से रमेश जी उनकी पत्नी एक बेटी और लड़का राजीव भी आया l रामकिशन जी बोले रहा देखते-देखते आंखें थक गई l

रमेश जी बोले भाई यह शिकायत तो अपनी भाभी से करो मैं तो इनका आज्ञाकारी पति हूं l

रमेश जी की पत्नी पहनावे से बहुत सलीके वाली और संपन्न लग रही थी बोली हां हां आप मेरी ही आज्ञा का पालन करते हैं l

एक हल्के से मजाक से वातावरण हल्का हो गया l सभी सोफे पर बैठ गए l राजीव के बगल में उसकी बहन बैठ गई l नाश्ता लगाया गया रागिनी चाय लेकर आई तो राजीव से उसकी बहन ने धीमे से कहा की भैया राजा बहुत खुश नसीब हो दिन में ही आसमान से चांद उतर आया है l

राजीव की मां तक बात स्पष्ट नहीं पहुंची तो उन्होंने उसे तरफ देखा तो दोनों भाई बहन चुप हो गए l

रामकिशन जी की दशा कुछ अजीब सी हो रही थी क्योंकि उन्हें राजीव की मां का चेहरा कुछ-कुछ हा परिचित सा लग रहा था l और यही उनकी उदासी का कारण भी था l वे सोच रहे थे कहीं यह आशा तो नहीं है जिसके साथ कुछ दिन उनका प्रेम प्रसंग भी चला था और जीवन भर साथ रहने की कसमें खाने के बाद अपने पिता के सामने दहेज के प्रश्न पर लाचार हो गए थे l फिर उनके पिताजी का ट्रांसफर हो जाने की वजह से प्रेम प्रसंग पीछे छूट गया l

किंतु आज वह प्रसंग पूरी आशंका के साथ सामने उपस्थित है l अगर यह आशा ही है तो यह संबंध होना बहुत कठिन है l वह चेहरे के भाव से तो प्रकट नहीं कर रही है पर यह मन की गंभीरता भी तो हो सकती है l वह कुछ सोच रहे थे की राजीव की मां ने प्रश्न किया, तो आपकी बेटी ने b.Ed कर रखा है 

जी हां आगे पढ़ने का भी इरादा है l 

रागिनी तुमने पढ़ाई के साथ कुछ और भी सीखा है उन्होंने रागिनी पर निगाह जमा कर कहा l रागिनी संकोच में पड़ गई l तभी रामकिशन जी बोले की हां यह सभी पेंटिंग्स इसी ने बनाई है और कढ़ाई भी कर लेती है l

तो यह बहुत कुछ कर लेती है सपाट स्वर में आशा जी ने कहा l

रामकिशन जी कुछ अच्छा जवाब देते लेकिन बेटी के बाप की पीड़ा झेलते हुए वे चुप हो गए l

बात करने के ढंग और गालों पर जो गड्ढे पड़ जाते उससे वह पहचान गए कि यह आशा ही है l

आशा जी बोली चाय भी रागिनी ने ही बनाई होगी l रागिनी घबरा गई l रामकिशन जी ने धीरे से पूछा कोई कमी रह गई क्या l

वह बोली चाय अच्छी बनी है वह मेरी पसंद की चीनी जान गई है l

चाय नाश्ते के बाद भोजन तैयार किया गया l थोड़ी देर बाद सभी ने भोजन किया l उसके बाद रामकिशन जी ने मिश्रा जी से धीरे से पूछा क्या निर्णय रहा पूछ लीजिए l

मिश्रा जी बोले मेरा दोस्त है निर्णय मेरा रहेगा l तभी रमेश जी बोले नहीं यार मिश्रा यह निर्णय मेरा ना तुम्हारा तुम्हारी भाभी जी का रहेगा l दहेज भी वही तय करेगी l घर से चलते वक्त उन्होंने मुझे यह वादा लिया है l

रामकिशन जी हताश हो गए फिर उन्हें पुणे शंका हुई की आशा ने उन्हें पहचान लिया है यह संबंध तय होने से रहा l

तभी सब बाहर चले गए और आशा जी ने एकांत में मैं रामकिशन जी से कहा की पहचान मुझे l

कुछ याद आ रहा है रामकिशन जी आंखें चुराते हुए बोले l

आशा जी बोली कुछ कुछ याद आ रहा है सब कुछ क्यों नहीं मैं आशा हूं वह उनकी आंखों में देखते हुए बोली l

पर रामकिशन जी घबराएं नहीं वे शांत कर में बोले जानता हूं l

तो यह भी जानते होंगे कि मेरा निर्णय क्या होगा l आशा जी की दृष्टि प्रश्न वाचक चिन्ह बन गई l

वह बोल अच्छी तरह से l तुम दहेज का ही अस्त्र उठाओगी l रामकिशन जी ने नाटक का अंत करने के उद्देश्य से कहा l

आशा जी बोली नहीं तुमने जो बरसों पहले किया वह मैं नहीं करूंगी l रंग रूप से मैं भी उसे समय विशेष बुरी नहीं थी l

हां राम किशन जी धीरे से बोले l

आशा जी बोली लेकिन मैं यह संबंध करना चाहूंगी l मैं नहीं चाहती कि मेरी तरह ही कोई लड़की अपमान झेल और उसका बाप चिंता में घुट घुट कर मरने को मजबूर हो l राजीव को रागिनी पसंद है और मनपसंद संबंध न होने पर जो धक्का लगता है मैं नहीं चाहूंगी कि हम दोनों की संतान उसे झेलें l यह शादी होगी बिना एक पैसा दहेज लिए हुए होगी आशा जी ने कहा l

रामकिशन जी खुद को पराजित सा महसूस कर रहे थे l भी बोले कितनी अच्छी है आप यह कहते हुए उनका मन हुआ की आशा जी के पैर पकड़ ले 

और आप क्या अच्छे नहीं जो इतनी प्यारी सी बेटी हमें दे रहे हैं l हम दोनों ना सही हमारी संतान उसे संबंध को जीएगी जिसे जीने की हमारी इच्छा मन में ही रह गई कहकर आशा जी बैठक में चली गई l

रामकिशन जी खुद को बड़ा छोटा महसूस कर रहे थे l वे सोच रहे थे की आशा का स्थान तभी ऊंचा था और अब भी ऊंचा है जैसे शिकायत के लिए नहीं वह भलाई के लिए ही मेरे घर आई है l आशा जी जैसी स्त्रियां अगर समाज में हो तो दहेज का तो रोल ही खत्म हो जाएगा l

बिंदेश्वरी त्यागी बरहन आगरा 

स्वरचित 

अप्रकाशित

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