Moral Stories in Hindi : पूर्वी ,चौके में जल्दी जल्दी हाथ चला रही थी… सब्जी, दाल, रायता… सब कुछ तैयार था.. बस अब पतिदेव के आने का इंतजार था… उधर फोन की रिंग लगातार बज रही थी… भागकर उठाया तो रश्मि दीदी का फोन था।
अभी व्यस्त हो तो थोड़ी देर बाद बात करूं.. रश्मि दी ने कहा
नहीं अभी करते हैं, मैं अब फ्री हूं,बस उनके आने पर रोटियां सेंक कर खिला दूंगी
रश्मि, पूर्वी की चाची की बेटी थी,उम्र में बड़ी और हमेशा स्नेह से बात, व्यवहार रखती थी, दोनों के पतियों की एक ही शहर में पोस्टिंग थी अतः अक्सर मिलना जुलना और बातचीत होती रहती थी।
पता है तुम्हें मीनू दीदी के बहू, मायके चली गई., वापस आने का नाम ही नहीं ले रही है. कितनी धूमधाम से विवाह किया था उन्होंने .. इतना ही नहीं उन लोगों पर दहेज प्रताड़ना और भी बहुत सताने का मुकदमा दायर कर दिया है…. कैसे सज्जन लोग थे… कितने प्यार से बहू को रखते थे … अब समाज में नाहक ही उनकी बदनामी हो रही है…. किसे किसे, स्पष्टीकरण देते फिरेंगे?….. भलाई का तो ज़माना ही नहीं रहा…. ऐसे भले लोगों को तो अब दुनिया गलत ही समझेगी…..
भले लोग ….. अब क्या जवाब देंगे जमाने को?
पूर्वी ना चाहते हुए भी यादों में कई वर्षों पीछे लौट गई
वैसे मीनू दीदी भी कोई पराई नहीं थी…. थोड़ी दूर के रिश्ते से बुआ की बेटी लगती थीं।
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सिर्फ बहने ही थी,भाई नहीं था। पूर्वी के घर में खूब आना जाना रहता था।
उनके विवाह की तैयारी में भी उसके मम्मी पापा ने बहुत सहयोग किया था… उनके पिता के स्थान पर हर फर्ज निभाया।
रक्षा बंधन पर घर आती थी,भाई पर बहुत स्नेह दर्शाती थी सबसे बढ़कर उपहार लेती
पूर्वी को याद है उनके विवाह में मम्मी ने चेन और बड़ा सा लाल नग लगा टाप्स उठा कर दे दिया था
कभी भी नहीं सोचा कि अपनी सगी बेटियों के लिए बचा लूं
स्वयं पूर्वी उनकी शादी की तैयारियां में फुदकते हुए काम कर रही थी।
सबको लगता कि चलो हम उनके लिए कुछ तो कर पा रहे हैं सिर्फ बहने, थी,भाई नहीं था, और पिता भी लंबी बीमारी से चल बसे थे …. तो चलो हमारे घर में प्यार अपनापन पा जाती हैं।
पूर्वी के अपने भाई के विवाह के समय में मम्मी पापा ने चचेरी, फुफेरी सभी बहनों को एक समान उपहार और दामादों को सम्मान दिया।
पूर्वी की भाभी ने आते ही रंग दिखाना शुरू कर दिया। घर का माहौल ऐसा कर दिया कि उसके माता-पिता चिंता में डूबे रहते कि यदि हम अपने सामने विवाह नहीं कर सके तो जाने क्या होगा?
पूरे परिवार को स्नेह बंधन में बांध कर चलने वाले माता-पिता, अपनी ही बहू के ऐसे व्यवहार और आचरण से घोर शोक में डूबे रहते।
पूर्वी का विवाह संपन्न हुआ, वो अपने सदाचरण और स्नेह भरे,और मेहनती व्यक्तिव के कारण ससुराल में भी सबकी स्नेह की पात्र रही।
मगर मायके जाने पर भाभी के घोर दुर्व्यवहार का शिकार रहती।
मीनू दीदी एक बार उसके घर आई थीं मतलब उसके पति के घर तो कहने लगी थीं
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भाई हम तो जब भी जाते हैं, भैय्या भाभी मेरे साथ बहुत प्यार से व्यवहार करते हैं…. मैं तो ऐसा…. मैं तो वैसा
मेरी तो ममता उस पर हमेशा से रही…
हमेशा तो कहती थीं….. आज अनावश्यक इतराने जैसा क्यूं लग रहा है??
तुम्हारे साथ तो पूर्वी कभी अच्छा व्यवहार नहीं करते…..
मेरे घर आ कर देखो मेरे बच्चे, मतलब भाई बहन कैसे प्रेम से रहते हैं…. अरे अपने से बढ़कर बहू को प्यार से रखना पड़ता है, लोग फिर दुनिया में गाना गाते हैं कि बहू के साथ नहीं पटती… एक बात बताओ… तुमने शादी से पहले अपनी भाभी को सताया – वताया है क्या?.. जो.. ऐसा..?
पूर्वी सन्न खड़ी थी
मीनू दीदी के एक एक शब्द पिघले शीशे की तरह कान में उतर रहे थे।
किसी को एक शब्द भी ग़लत ना बोलने वाले माता-पिता और पूर्वी पर मीनू दीदी कैसे इल्जाम लगा रही हैं?
ये वो ही हैं? जिनको मेरे माता-पिता ने हमेशा हमलोगों से भी बढ़कर स्नेह सम्मान दिया?
किसी के घर की वास्तविक समस्या को कभी कभी मेहमानों की तरह पहुंचने वाले लोग क्या जानें?
धीरे धीरे मीनू दीदी और उनके पति ने पूर्वी के मायके में पूर्ण अधिकार जमा लिया।
वही मीनू दीदी,आज लोगों को बता रही हैं कि कैसे उन जैसे सज्जन लोग अपनी बहू की चालों का शिकार हो गए।
आज उनसे कोई पूछ नहीं रहा कि
अपनी बहू को कभी सताया वताया है क्या?… वरना ऐसे तो नहीं होता
बहू ने कोर्ट कचेहरी में ऐसे ऐसे इल्जाम लगा कर घसीटा है
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पूर्वी नितांत दुखी हो कर फ़ोन बंद करके बैठ गई।
मित्रों यह कहानी मैंने इसीलिए लिखी कि किसी के परिवार की व्यक्तिगत समस्या उसे ही समझ आ सकती है जो उस परिवार का सदस्य होता है, यानि कि जिसका रोज उससे सामना हो रहा है….. ये तथाकथित दूर के रिश्तेदार उन्हें उस तरह नहीं समझ पाते
तो किसी के फटे में अपने पैर अड़ाने से पहले, यह समझ लेना चाहिए कि ऐसी परिस्थिति उनके स्वयं के ऊपर आएगी तब क्या करेंगे
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
जैसे मीनू दीदी जो उस परिवार की सगी बहन बेटियों से ज्यादा सगी बनकर ग़लत को समर्थन देने का कार्य करने लगी ।
अपनी बहू के साथ भी वैसी ही परिस्थितियां बन गई फिर कितना समझ में आया कितना नहीं वो तो नहीं पता, परंतु इस कहानी को पढ़कर कुछ लोग ऐसा करना बंद करेंगे, अथवा दूसरे के प्रति अपने आचरण बोलों का आत्मनिरीक्षण करेंगे तो मैं लिखना धन्य समझूंगी।
ममता सिर्फ अंध समर्थन करने को नहीं कहते, किसी बुरी बात को सुधारने के लिए उठाए गए कठोर कदम को भी कहते हैं,।
मुझे तो बड़ी ममता है… सबसे अधिक, ऐसा कह कर गलतियों को बढ़ावा देने वाले अपने ऊपर वही समस्या आने पर निरूत्तर हो जाते हैं।
क्योंकि ऐसा करके आप वास्तव में किसी का भला कर रहे होते हैं अथवा बुराई को अंधसमर्थन??
क्या आपका भी ऐसे तथाकथित हितैषी (?) रिश्तेदारों से पाला पड़ा है… अपने कमेंट में अवश्य बताइएगा।
सर्वाधिक सुरक्षित
पूर्णिमा सोनी
साप्ताहिक कहानी प्रतियोगिता ममता
जल कर लकड़ी पीछे आती है दूसरों की तरफ उंगली उठाना आसान है बहुत-बहुत अच्छी कहानी