पापा,मैं हूं ना – शुभ्रा बैनर्जी   : Moral Stories in Hindi

रवि कुमार उसूलों के बड़े पक्के थे।शशि से शादी से पहले ही बता दिया था “मेरे पास बहुत ज्यादा संपत्ति नहीं है।प्राइवेट जॉब है।रिश्वत मैं लेता नहीं,और दिखावे से मुझे सख्त नफरत है। तुम्हें बहुत सुख -सुविधाएं शायद नहीं दे पाऊं,पर ईमानदारी से पति धर्म निभाने का वादा करता हूं।

“होने वाले पति की साफगोई की कायल हो गई शशि।वह तो शुरू से ही संतोषी थी। बहुत ज्यादा किसे चाहिए?परिवार में सुख तो पति-पत्नी के बीच ईमानदारी के रिश्ते से ही रहता है।शशि और रवि कुमार की शादी हो गई। दिन-रात कड़ी मेहनत करके अपने दोनों बच्चों को अच्छी शिक्षा दी उन्होंने।

बेटी त्रिशा बड़ी थी।एम बी ए करके मल्टी नेशनल कंपनी में नौकरी करने लगी।पिता की सरचढ़ी थी त्रिशला।सारा दिन पापा -पापा करती रहती।ठीक इसके उलट हेमंत(बेटा)का अपने पापा से छत्तीस का आंकड़ा था।जब देखो दोनों में ठनी रहती।दोनों बहुत कम ही किसी बात पर सहमत हो पाते थे।

जब रवि को कुछ कहना होता बेटे से,तो शशि से ही कहते”कहां हैं आपके साहब जादे?बिजली का बिल भरा नहीं होगा अब तक?सारा दिन कान में ठेपी लगाए रहता है।बात करो तो जवाब भी देना नहीं आता।”शशि जी को बहुत बुरा लगता ।कहा भी कितनी बार हेमंत से”क्यों पापा के साथ बैठकर बात नहीं करता?

दीदी को देख,कितनी अच्छी तरह पापा की दोस्त बन गई है।तू दूर-दूर ही रहता है उनसे।बुरा तो लगेगा ही ना उन्हें।”

हेमंत मां से कहता”प्लीज़ मम्मी,पापा के साथ बैठकर वही उनके उसूल और ईमानदारी की कहानियां सुनना अच्छा नहीं लगता अब।ज़माना बदल गया है।ईमानदारी हद से ज्यादा हो जाए ना तो नुकसान पहुंचाने लगती है।पापा के हिसाब से थोड़े दुनिया चलती है।मुझे जो पसंद नहीं,

वही काम करने को कहते हैं।सारे दोस्त जब बाहर जाते हैं पिकनिक पर या पार्टी पर,मुझे मनाही हो जाती है।सब मेरा कितना मजाक उड़ाते हैं।दीदी उनकी लाड़ली है और हमेशा रहेगी।मैं तो उनके लिए नालायक ही रहूंगा।”

ये बाप -बेटे के बीच मनमुटाव कम ही नहीं हो पा रहा था।दोनों के बीच एक लंबी दूरी बनती जा रही थी।हेमंत पापा के प्रति उदासीन होता जा रहा था।रवि जी अपने बेटे का भला ही चाहते थे,पर उनकी सख्त बातें बेटे को अच्छी नहीं लगती।छोटा था तब तो ठीक था,पर अब जवान हो चुका था।

पापा के कहने पर डिप्लोमा किया इलेक्ट्रिकल से। डिग्री के लिए अभी समय था।रवि जी के एक दोस्त थे,जो रिटायरमेंट के बाद प्राइवेट फर्म खोल‌ लिए थे।रायगढ़ में था उनका प्लांट।यहां आने से रवि से जरूर मिलने आते।इस बार बात-बात में उन्होंने हेमंत से कहा”बेटा,

अभी कॉलेज में तो टाइम है।तब तक तुम मेरे साथ क्यों नहीं चलते?वहां मुझे भी एक जान पहचान वाले ईमानदार आदमी की जरूरत है।मेरे साथ ही रहना।कोई दिक्कत नहीं‌ होगी।”रवि जी ने शशि से ही कहा”बोलो अपने बेटे को,समय है अभी काम सीख ले।गिरी सर बहुत अच्छे हैं।

सीखा हुआ काम आगे उसी को लाभ देगा।”शशि समझ रही थी कि पिता अपने बेटे को काम के प्रति गंभीर होना सिखाना चाहते थे।हेमंत से बोलने पर वह तो सीधा ही मना करेगा। अविश्वसनीय रूप से उसने पापा से सीधे ही कहा”ठीक है चला जाऊंगा,अंकल के साथ।यहां रोज-रोज आपकी डांट सुनने से तो अच्छा ही है।”

रवि ने फिर शशि से कहा”सुना तुमने,क्या कहा इसने?मेरी कोई भी बात इसे सही क्यों नहीं लगती?”,

आज शशि ने भी कहा”शायद तुम अपनी सही बात बेटे को सही तरीके से कह नहीं पाते।”रवि जी चुप हो गए।रायगढ़ जाकर हेमंत को सच में खाने की बहुत दिक्कत होने लगी।बहुत सी चीजें वो खाता नहीं था,और खाता भी था तो मां के जैसा बना।राहर की दाल(ज्यादा गली हुई ना हो)जीरे के तड़के(जीरा जला ना हो)और चांवल‌ बस‌ यही शौक था

उसे खाने का।वहां‌ मैस में मिक्स दाल बनती होगी।रोज़ शाम को फोन पर अपनी मां को बताता कि आज ये हुआ ,वो हुआ।रवि फोन स्पीकर पर रखने को कहते।दोनों में संवाद होते तो नहीं थे,पर संप्रेषित जरूर हो जाते थे।कुछ ही दिनों में बेटी(त्रिशा)की शादी थी।हेमंत आया बहन की शादी में एक महीने की छुट्टी पर।

इस बार पिता के सारे काम उसने अपने ऊपर ले लिए।बहन की शादी की पूरी तैयारी व्यवस्थित तरीके से करवाई उसने। रवि जी से तब बोली शशि “जबरदस्ती बेटे से मनमुटाव करते रहते हो तुम।देखो कितना जिम्मेदार हो गया है।”उन्होंने हंसकर कहा”यही जिम्मेदारी समझाने के लिए ही तो गिरी जी के साथ भेजा था।

घर से बाहर रहा ना, दुनिया दारी सीख गया।”शशि मन ही मन सोचती,उफ्फ इन बाप-बेटे के बीच कब सब कुछ सामान्य होगा?

त्रिशा शादी के बाद कनाडा शिफ्ट हो गई अपने पति के पास।वहीं नौकरी भी मिल गई उसे।बेटी के जाने से पिता का मन खाली हो गया था।किससे अपने मन की बात कहते अब?यहां हेमंत का भी काम में मन लगने लगा था।पापा अब बेटे को मिस करते थे।एक दिन हमेशा की तरह हेमंत शशि से बता रहा था

अपनी दिनचर्या।बीच में ही काटकर रवि जी जवाब देने लगे”क्यों मोची के पास क्यों गया था तू?नया जूता ले लेता।मैं पैसे भिजवा देता हूं।”मन दुखी हो गया था रवि का।अपने पापा की आवाज सुनकर हेमंत भी भावुक हो गया और बोला”नहीं पापा,जूते तो चल रहें हैं अभी।बैल्ट ढीली हो गई थी।अलग से नया गैप बनवाने गया था।”

सुनते ही रवि जी तो रोने लगे।शशि से कहा”मैं कल ही जा रहा हूं रायगढ़।मेरे बेटे की कमर इतनी पतली हो गई कि—–बात पूरी भी नहीं कर पाए।फोन में ही बोल दिया बेटे को कि पहली बस पकड़ कर आ जाओ। बेटा,मैं हूं ना।

अगली रात को ही हेमंत घर आ गया।अब बाप-बेटे के बीच रिश्ता सामान्य हो रहा था।शशि ने सोचा ,चलो अच्छा हुआ।शायद पिता जो सबक बेटे को सिखाना चाहते थे ,पूरा हो गया।

हेमंत की डिग्री पूरी होते-होते ही नौकरी भी लग गई।अब बहुत कुछ सामान्य हो रहा था।शादी की बात चलने लगी थी। जान-पहचान वालों ने रिश्ते भी बताए।एक दिन अचानक हेमंत ने आकर अपने पापा से कहा”पापा,मैंने एक लड़की पसंद की है।मेरे साथ ही नौकरी करती है।उसके पिता का देहांत हो गया है।

मां पहले ही नहीं थी।अब वह बिल्कुल अकेली है।सुशील है और सुंदर है।आप एक बार देखेंगे तो आपको भी पसंद आएगी।”

अगले ही दिन नताशा को लेकर आया हेमंत।जैसा उसने बताया था उससे कहीं अच्छी लड़की थी नताशा।ना भाई -बहन थे उसके,ना ही अब पिता या मां।सच में जिस तरह उसने पैर छुए शशि के,किचन में जाकर कॉफी बनाई। कप-प्लेट धोकर जगह में संभाल कर‌ रखा,शशि को उसकी कार्यकुशलता पर कोई संदेह नहीं रहा।

बातों-बातों में अचानक ही जाति की बात सामने आई।वह सजातीय नहीं‌ थी।इस बात पर रवि जी के उसूल आगे आ गए।हेमंत से साफ-साफ कहा उन्होंने “नताशा वास्तव में बहुत अच्छी है।इसमें कोई शक नहीं है।पर हमारे खानदान में किसी ने विजातीय से विवाह नहीं किया है।लोग यही सोचेंगे कि

पापा की मौत का पैसा हड़पने के लिए तुमने इससे शादी की।तुम्हें अगर इसी से शादी करनी है ,तो मेरे घर में नहीं रहोगे।”हेमंत सोच रहा था कि अब पापा बदल रहें हैं।ग़लत था वह।पापा कभी नहीं बदले।हर परिस्थिति को अपने ही चश्में से देखते हैं।शशि गई थी मंदिर में।सारी रस्में निभाई गई।

मंदिर में शादी का निर्णय नताशा का था,जो शशि को उचित लगा।विदाई करा कर कुछ समय के लिए लाई थी शशि अपने घर बहू को। मुंहदिखाई भी दी रवि और शशि ने।हेमंत कुछ घंटों के बाद ही अपने क्वार्टर ले गया उसे।दुख तो शशि को भी हुआ पर समझ नहीं पा रही थी

कि रवि जी के मन में क्या चल रहा है।निजी मकान नहीं था उनका।किराए में रह रहे थे लंबे समय से।बेटे से कभी पैसे मांगना गंवारा नहीं था उन्हें।

हेमंत की शादी को एक साल होने वाला था।रवि जी ने अपनी मोटी जमा पूंजी से बहू के लिए जेवर खरीद कर शशि को रखने दिया।इतना सुंदर सैट देखकर तो शशि की आंखें फटी की फटी रह गईं।रवि जी का अपनी बहू के प्रति प्रेम देख कर बोलने से रोक ना सकी ख़ुद को”इतना महंगा सैट लिया है

नताशा के लिए क्यों?कितने महीनों से थोड़ा-थोड़ा कर बड़ी मुश्किल से जोड़ा था आपने पैसे।मकान मालिक कभी भी डिपोजिट बढ़ाने की बात कर सकता है।बहू के जेवर लेने में वो सारे पैसे चले गए होंगे।”

तब रवि जी बोले”तुम लोग यहीं तो मात खा जाती हो शशि।हम पिता ना बच्चों को दिखाकर प्यार नहीं करते।उनके सामने कठोर बने रहना जरूरी है ,नहीं तो आने वाली पीढ़ी संस्कार जानेगी ही नहीं।मैं इस शादी के खिलाफ था,क्योंकि नताशा सजातीय नहीं।यदि वो दोनों यहां रहते,

हर दूसरे तीसरे दिन रिश्ते दार आते और टोकते नताशा को ,तब हमें बुरा लगता।हेमंत नताशा से शादी ना करके खुश नहीं रह पाता यह मैं उसकी आंखों से जान गया था,इसलिए शादी की मंजूरी दे दी।अब रही बात इन जेवरों की तो हमने अपनी बेटी को तो सब दिया है।

नताशा भी तो अब बेटी ही है ना अपनी।उसके माता-पिता होते तो कितना कुछ देते।वह बिचारी तो बहुत याद करती होगी उन्हें।अब हम बाप-बेटे के बीच वर्षों से चले आ रहे मनमुटाव का हर्जाना वो क्यों भरे।'”शशि ने कहा”तुम पुरुष लोग हमेशा कहते हो ना कि औरतों को भगवान‌ भी नहीं समझ सकता।

मैं तो कहती हूं तुम पुरुषों को कोई नहीं समझ सकता।बेटे से बोलचाल भी कम,पर बेटे की खुशी,शौक,प्यार यह सब पूरा करने में कोई कसर नहीं‌ छोड़ते तुम।”

आज ही आकर रवि ने बताया “शशि हेमंत की शादी की सालगिरह तक हम नहीं रुक पाएंगे इस घर में।गुप्ता जी ने डिपोजिट बढ़ा दिया है। आज ही यह पेपर दिया है।सात दिनों का वक्त है।हम कहीं और चले जाएंगे,जहां किराया भी कम हो और डिपोजिट भी कम।हम दोनों के लिए दो कमरे ही काफी रहेंगे।

ये तो मैंने बच्चों के लिए इतना बड़ा घर ले रखा था।अब बच्चे अपने -अपने‌ घर।हम भी नए घर में चले जाएंगे।तुम पैकिंग शुरू कर दो।गुप्ता जी कुछ आदमी भेजेंगे,मदद के लिए।”शशि ने बोलना चाहा हेमंत,तभी रवि जी ने चुप करा दिया उन्हें।”नहीं शशि यह जो तुम्हारा पति है ना,आज भी अपने उसूलों का पक्का है।

बेटे के सामने कभी हांथ नहीं फैलाएगा।ख़ुद का घर‌ बनवाने के पैसे कभी पूरे हुए ही नहीं।चल गई ना अपनी जिंदगी आराम से इतने साल।अब और ज्यादा समय तो बचा नहीं।हेमंत की नई -नई नौकरी है।चार पैसे बचाएगा तो उसके बच्चों के काम आएंगे ना।एक बात और कहता हूं।अभी तुम उसे फोन मत घनघना देना।

हम शिफ्ट हो जाएं दूसरे घर में तब बताना।वैसे भी घर तो वह आएगा नहीं ,मैंने जाने के लिए कहा तो चला भी गया।अब नहीं आएगा।”

शशि आज अपने आंसू नहीं रोक पा रही थी।ये आंसू अपने पति के लिए भी थे और बेटे के लिए भी।

शाम को गुप्ता जी के आदमी आए तो शशि पैक किया हुआ सामान उन्हें दिखाने लगी कार्टून में ।कुछ उन्होंने भर‌लिया था कुछ गुप्ता जी के आदमियों को भरना था।शशि कार्टून लाने लगी तो उनमें से एक आदमी भरी हुई कार्टून खाली कर जमाने लगा।रवि जी देख रहे थे पूछे”अरे ये क्या कर रहे हो

भाई।आप लोगों को सामान पैक करने के लिए भेजा गया है अनपैक करने नहीं।”वह आदमी बोला”नहीं सर गुप्ता जी ने हमें सारा सामान अनपैक करके फिर अच्छे से जमाने के लिए भेजा है।”,

कहीं कोई गड़बड़ी हुई है।रवि जी ने गुप्ता जी को फोन लगाया,तो उन्होंने कहा”रवि जी आप कहीं और नहीं जा रहें।वहीं रहेंगे।रवि जी ने कहा”लेकिन पिछले छह महीनों का किराया और डिपोजिट कुछ भी जमा नहीं है।तो कैसे ये गलती कर रहें हैं आप।?

गुप्ता जी ने चौंकाने वाली खबर सुनाई”अब आपको कभी किराया नहीं देना पड़ेगा और ना ही डिपोजिट।वह घर आपका हुआ आज से।”

“क्या,कैसे,मगर हमने तो किराया तक नहीं दिया।आप हम पर यह उपकार क्यों कर रहें हैं?”

गुप्ता जी घर के बाहर ही खड़े थे।फोन में बात करते हुए ही अंदर आए।वो अकेले नहीं थे,साथ में था हेमंत अपनी पत्नी के साथ।रवि जी अचंभे से देख रहे थे बेटे को,कभी गुप्ता जी को।

हेमंत ने कहा”सारी ज़िंदगी जिम्मेदारी और ईमानदारी के अलावा और कुछ शौक आपके थे ही नहीं।इस घर में हमने अपना बचपन ,जवानी,आप दोनों की जवानी और अब बुढ़ापा गुजारा है।इस घर को छोड़कर कैसे जा सकतें हैं आप?आज से यह आपका घर हुआ पापा,

आपका और मम्मी का घर।यह मेरी और नताशा की तरफ से एक छोटा सा उपहार है आपके लिए।जब मैं मुसीबत में होता तो आप थे ना हमेशा मेरे लिए यह कहकर कि”,मैं हूं ना”,

आज पहली बार मुझे यह सौभाग्य मिला पापा”मैं हूं ना।”

आज एक लंबे अरसे से चले आ रहे झूठे दंभ का द्वंद समाप्त हुआ।ये जो मनमुटाव दिखाया जाता रहा पापा और बेटे के द्वारा ,वास्तव में वह मन का अटूट प्रेम और विश्वास का बंधन था।

शुभ्रा बैनर्जी 

#मनमुटाव

2 thoughts on “पापा,मैं हूं ना – शुभ्रा बैनर्जी   : Moral Stories in Hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!