Moral stories in hindi : खुशी से बिछे से जा रहे थे पिता उनकी मुंह मांगी मुराद आज पूरी हो गई थी कब से यही स्वप्न संजोए बैठे थे कि उनकी बेटी इसी कॉलेज में लेक्चरर हो जाए … अपनी होनहार बेटी के लिए यही सम्मानजनक करियर सोचकर रखा था उन्होंने ।उनकी नजर में लड़कियों के लिए शिक्षा की लाइन से बेहतर कोई और लाइन नहीं है शांति सुकून भी है और परिवार के लिए समय भी काम का ज्यादा बोझ या फील्ड वर्क भी नही रहता विद्यार्थियों की नींव मजबूत करते रहो ..!
अन्वी उनकी इकलौती बेटी थी अपने ही कॉलेज में प्रवेश दिलाया था उन्होंनेऔर हमेशा उसका ध्यान भी रखते थे कॉलेज में भी उनका बहुत दबदबा था किसी की क्या मजाल जो अन्वी से अनर्गल व्यवहार कर सके…! आजकल के माहौल को मद्देनजर रखते हुए वह अपनी बेटी के प्रति कुछ ज्यादा ही संवेदनशील थे।
इसीलिए जब उन्हीं के कॉलेज में लेक्चरर होने की बात उठी तो उन्होंने भी अपना पूरा प्रयास किया था कि यह पोस्ट उनकी बेटी को ही मिले। इसमें गलत क्या किया उन्होंने !!वह यही सोच रहे थे एक पिता होने के नाते अपनी ही बेटी वो भी इतनी मेधावी बेटी के लिए राह आसान ही तो की है अपना दायित्व ही तो निभाया है पर अन्वी ऐसा महसूस कर रही है जैसे वह अयोग्य है और मेरे रुतबे के कारण उसका रिजल्ट और नौकरी सब मिल रही है!!
नहीं पापा मुझे नहीं करनी ये नौकरी जो इसी कॉलेज में मुझे आपके प्रभाव के कारण ही मिली है अन्वी अक्रोशित थी।मैने तो कुछ किया ही नहीं है सबकी नजरों में मैं तो अयोग्य हूं प्रतिभाहीन हूं ये तो आपका प्रदीप्त आभामंडल है जिसने मुझे किंचित योग्य बना दिया है …. अगर आपकी बेटी ना होती तो मैं टॉप कर ही नही सकती थी ऐसा सबका दृढ़ विश्वास है सब आपके कारण है मेरा कुछ योगदान नहीं है … मेरी खुद की कोई पहचान नहीं है सिवाय इसके कि मैं प्रोफेसर निशांत की बेटी हूं ….आवेश से विव्हल अन्वी रोने लग गई थी।
पिता चकित थे और मां दुखी।
अपनी इकलौती पुत्री को पिता ने लाख समझाया अरे बेटा इतनी किस्मत से यहीं के यहीं नौकरी मिल रही है इसे ठुकराना गलत है कोई कहता है तो कान मत दो इतनी अच्छी कोई दूसरी नौकरी अन्यत्र मिलनी बहुत कठिन है यहीं हम लोगो के साथ घर में रहो और ये नौकरी कर के अपनी अलग पहचान बना लो ….
मां ने भी पुरजोर उत्साह दिलाया लेकिन अन्वी का युवा होता हुआ मन मस्तिष्क विद्रोह कर चुका था अब वह अपनी खुद की पहचान अपने बूते बनाने को दृढसंकल्पित हो उठी थी जहां उसके प्रसिद्ध पिता के नाम का टैग उसके नाम के साथ ना लगा हो जो यहां इसी कॉलेज में रहते संभव ही नहीं था।
माता पिता के मोह और पिता के बेहद लुभावने कॉलेज लेक्चरर के नियुक्ति पत्र को दरकिनार करती वह अपनी एक सहेली के पास दूसरे शहर चली गई जहां ना ही उसको ना उसके पिता को कोई जानता था।
पिता अपनी बेटी की कुंठा और क्षोभ समझ गए थे और उसका समाधान करना चाहते थे ताकि बेटी खुद पर विश्वास कर सके और आत्मसम्मान भरी जिंदगी जी सके इसीलिए अब अपनी बेटी की इच्छा में ही अपनी इच्छा मिला दिया था उन्होंने.. ले बेटी ये मेरा लैपटॉप लेती जा अपने साथ …समझ लेना मैं ही हूं तेरे साथ ये लैपटॉप मुझे तब मिला था जब इस कॉलेज का बेस्ट प्रोफेसर मुझे चुना गया था उस दिन मेरी एक अलग खास पहचान बनी थी ..
मुझे तेरी प्रतिभा और काबिलियत पर पूरा भरोसा है पर मैं ये भी चाहता हूं कि तुझे खुद को साबित करने का खुद की अपने बलबूते अपनी पहचान बनाने का एक मौका मिलना ही चाहिए । तेरी जिंदगी में वह दिन अतिशीघ्र आएगा तब इस लैपटॉप का उपयोग करना यही आशीर्वाद देता हूं तुझे.. घर से पहली बार अकेले बाहर जाती हुई अपनी लाडली नाजों पली बेटी को ट्रेन में बिठाते हुए अपना लैपटॉप देते हुए उन्होंने कहा था।
पराए शहर में अपनी पहचान बनाना कितना दुष्कर कार्य है अन्वी समझ चुकी थी…काफी प्रयास के बाद एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में पढाने लगी .. । मेधावी अन्वी को अपनी शिक्षण प्रतिभा का लोहा मनवाने में ज्यादा समय नहीं लगा था शीघ्र ही अन्वी का नाम कोचिंग इंस्टीट्यूट का पर्याय बन गया।
आज उसकी कोचिंग के बीस विद्यार्थियो का प्रतियोगी परीक्षा में चयन हुआ था सारे शहर में ही नही प्रदेश में धूम मच गई थी अन्वी और उसके कोचिंग इंस्टीट्यूट की।दिल्ली के प्रतिष्ठित प्रमुख समाचार पत्र द्वारा विशेष इंटरव्यू था उसका …ऑनलाइन इंटरव्यू होना था आज उसका राज्य के प्रमुख समाचार पत्र के द्वारा ..!!
ऑनलाइन इंटरव्यू की लिंक सबसे पहले उसने अपने पिता को ही भेजी थी इस मैसेज के साथ कि “पापा आज आपका लैपटॉप उपयोग करने जा रही हूं आपका आशीर्वाद सिर आंखों पर इसी की वजह से अपनी अलग पहचान बना पाने में आज मैं कामयाब हो सकी..!!
दुनिया के सामने अपनी प्रतिभा साबित कर अलग पहचान बना चुकी आत्मविश्वास से भरी अपनी बेटी का ऑनलाइन इंटरव्यू सुनते देखते पिता का दिल गर्व से ओतप्रोत हो रहा था और मां की आंखों में अपनी बेटी के लिए गर्व के साथ साथ खुशी के आंसू झिलमिला उठे थे।
लतिका श्रीवास्तव