रात के 2:00 बजे थे, लेकिन जबसे अवधेश ने अपने बेटे का फोन पर टूटी फूटी भाषा में आया पत्र पढ़ा है कि पापा जल्दी आ जाना,अवधेश की आंखों से नींद कोसों दूर थी। सब कुछ ठीक-ठाक ही तो चल रहा था दोनों की जिंदगी में पर, पता नहीं किसकी नजर लग गई, ना जाने उस दिन उस पर कैसा भूत सवार हुआ जो उसका हाथ पूरे परिवार के सामने अपनी पत्नी अनु पर उठ गया।
एक एक स्त्री चाहे अकेले में एक बारगी अपने पति के द्वारा किया गया अपमान बर्दाश्त कर सकती है लेकिन समाज के सामने किया गया अपमान शायद किसी भी स्त्री के स्वाभिमान को ठेस पहुंचा सकता है ,और वही हुआ छोटी छोटी सी हर बात को हर बार नजरअंदाज करने वाली अनु का इस बार सब्र का बांध टूट गया।
रही सही कसर इस बात ने पूरी कर दी कि पूरे परिवार में से किसी ने भी इस पर उस समय कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, एक सिर्फ अनु के ससुरजी ही थे जिन्होंने अवधेश को रोकना चाहा पर अवधेश के गुस्से के आगे वह भी दो कदम पीछे हट गए।
वे अवधेश को समझाना चाह रहे थे कि रिश्तो की डोर बहुत नाजुक होती है कि जरा सी ठेस लगी नहीं की डोर टूटने पर गृहस्थी बिखर सकती है ।फिर बात भी तो कोई खास नहीं थी, समय का फेर कह दो या कुछ अपनों की बिछाई बिसात जिस पर अवधेश को पासा बनाकर खेला जा रहा था।
अवधेश की भाभी निशा को अनु का हर काम में परिवार की तारीफ पाना,और सब की नजरों में चढ़ना पसंद नहीं था । वह जब तब कुछ ना कुछ ऐसा करती कि अवधेश की नजरों में ना चाहते हुए भी अनु का काम उसे गलत लगने लगता । उस दिन भी अनु छत से सूखे कपड़े लेकर आ रही थी।
तभी उसकी जेठानी निशा ने जीने में एक बाल्टी बीच में रख दी, ढेर सारे कपड़े लेकर सीढियां उतरते समय अनु को वह बाल्टी नजर नहीं और आई और पैर से नीचे गिर गई। निशा ने बाल्टी रखी तो अनु को चोट लगाने के लिए थी पर उल्टा वही बाल्टी लुढ़कते लुढ़कते खुद उसके पांव पर गिर गई और वो तो लगी अनु पर चिल्लाने। उसने पूरा घर सर पर उठा लिया।
पैर में कुछ खास नहीं लगी थी लेकिन उसे तो अनु को गलत साबित करना था, अवधेश के सामने उसको नीचे दिखाना था।
इस पर अनु ने कहा भाभी मेरी गलती नहीं है, जब अभी मैं ऊपर गई थी तो बाल्टी यहां नहीं थी पता नहीं कहां से आ गई। इस पर निशा कहने लगी अच्छा तो तुम कहती हो मैं झूठ बोल रही हूं क्या बाल्टी मैंने रख दी ,इस पर अनु ने कहा मुझे क्या पता हो भी सकता है। उसका बस इतना कहना था कि निशा ने राई का पहाड़ बना दिया।
उस दिन अवधेश ऑफिस का काम घर से ही कर रहा था अवधेश के पिता और अवधेश दोनों ही शोर सुनकर बाहर आ गए। निशा ने और चार बातें लगाकर अवधेश को बताई तो अनु से रहा नहीं गया ,अनु ने कहा मेरी गृहस्थी में आग क्यों लग रही हो भाभी।
अवधेश को कुछ अपने काम का प्रेशर था और कुछ घर के झगड़ों से वह परेशान हो चुका था। उसने अनु को चुप करना चाहा,बस उस समय उसका हाथ अनु पर उठ गया। इस एक बात से अनु सन्न रह गई उसके स्वाभिमान को बहुत ठेस पहुंची थी।
उसने तभी एक निर्णय लिया कि अब वह इस घर में नहीं रहेगी जहां उसका पति ही उसका सम्मान नहीं करता तो उस घर में उसका सम्मान कोई और क्या करेगा, यह सोचकर उसने अपने 6 वर्ष के बेटे रघु को अपने साथ लिया और अपने मायके आ गई।
इस वाक्या को लगभग 5 महीने बीत चुके हैं पर दोनों ही अपनी जिद पर अड़े हैं। लेकिन आज अवधेश बेटे रघु का एक मैसेज पढ़ कर इस बात पर सोचने पर मजबूर हो गया। रघु ने ये पत्र अपनी अपनी भाषा में लिखकर फोटो खींचकर अवधेश के फोन पर भेजा था, जिसमें लिखा था पापा जल्दी आ जाना…..
मेरा यहां अब मन नहीं लगता। पापा अब मैं कभी मामा के घर आने की जिद नहीं करूंगा बस आप हमें अब घर ले जाओ मां भी बहुत उदास रहती है ,ना पहले की तरह मुझे कहानी सुनाती है ना खुद अच्छे कपड़े पहनती है, ना कहीं बाहर जाती है ,बस पूरा दिन कमरे में रहती है, ज्यादा बोलती नहीं है। घर वापस जाने की कहता हूं तो मुझे गले लगा कर रोने लगती है ,बस पापा आप जल्दी आ जाना।
कल मामा मामी और मिनी फिल्म देखने जा रहे थे उन्होंने मां और मुझे भी चलने को कहा पर मां ने मना कर दिया और मुझे भी आपके बिना जाने का मन नहीं हुआ। मेरा अब पढ़ने में भी मन नहीं लगता है पापा और मां भी मुझे अब पहले जैसा मन से पढ़ाना चाहती है,बस उदास रहती है।आप ही बताओ पापा मैं कैसे पढ़ पाऊंगा।
नानी भी कई बार मां को समझती हैं कि बेटा कभी-कभी गृहस्थी में ऐसा हो जाता है और तेरे छोटा होने से तू छोटी तो नहीं हो जाएगी। इस पर मां कहती है मां जब मेरी गलती ही नहीं है तो मैं क्यों मानूं।
पर पापा आप ही बताओ क्या इस सब में मेरी कोई गलती है ,मैं आप दोनों के साथ रहना चाहता हूं। सभी तो अपने-अपने पापा मम्मी के साथ खुश हैं फिर मैं ही क्यों अकेला रहूं, आप दोनों के साथ रहना मेरा हक है पापा।
इतना पढ़ना था कि अवधेश की आंखों से आंसू बहने लगे उसे ऐसा लगा कि नन्हे रघु ने सच ही तो लिखा है । आज किसी को हमारी चिंता नहीं है। सब अपने-अपने में मस्त है।
उस समय तो मेरे भैया भाभी ने भी मुझे अनु को भेजने से नहीं रोका, और ना ही अनु के भैया भाभी ने यह कहा कि दीदी आप गलत कर रही हो। पर आज देखो तो किसका क्या गया, हमारा ही अपना परिवार बिखर गया। वही भाभी जिसकी वजह से अनु मुझसे अलग हो गई आज एक कप चाय बनाने में भी कतराती है और एक अनु थी जो दौड़ दौड़ कर घर भर की सेवा कर रही थी और कभी मुंह से उफ ना करती थी।
मैं अपनी अनु और रघु को कल सुबह ही जाकर लेकर आऊंगा। और पिताजी भी तो कहते हैं की बेटा तेज आंधी में जो पेड़ झुक जाया करते हैं वही बिखरने और टूटने से बच जाते हैं।
अपने घर परिवार की खुशियों के लिए यदि मैं अनु से माफी मांग लूंगा तो इसमें कोई हर्ज नहीं।
सोचते सोचते सुबह की बेला हो गई , सूर्य देव की नन्ही नन्ही रश्मियों ने कमरे में खिड़की के रास्ते दस्तक दे दी थी। अवधेश को लगा आज मेरे जीवन में एक नया सूर्य उदय हुआ है और वह जल्दी नहा धोकर तैयार होकर अपनी अनु और रघु को लेने पहुंच गया।
उसे देखते ही अनु रोने लगी तब अवधेश ने उसे गले लगाते हुए कहा और नहीं अनु ,हमे दोनों को कोई हक नहीं अपनी लड़ाई में अपने बेटे रघु से उसका बचपन छीनने का, उसे मां-बाप का प्यार टुकड़ों में मिले ऐसा अब नहीं होगा ।बस फिर क्या था दोनों तैयार होकर घर की ओर निकल पड़े रास्ते में मोगरे का गजरा लेकर अवधेश ने अनु के बालों में सजा दिया
जो उनके रिश्ते में एक नई मधुर सुगंध फैला रहा था और नन्हाज्ञरघु अपने पिता की गोद में अब निश्चिंत होकर सो रहा था क्योंकि उसका हक उसे मिल चुका था।
ऋतु गुप्ता
खुर्जा बुलन्दशहर
उत्तर प्रदेश
#हक