पापा गुडबाय मत बोलो ना – सुषमा यादव   : Moral stories in hindi

मैं मेडिकल कॉलेज मैसूर से एम बी बी एस प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रही थी। कुछ दिनों से मेरी रीढ़ की हड्डी में बहुत दर्द हो रहा था। मैंने अपनी मम्मी को बताया तो मम्मी और दीदी तुरंत ही दिल्ली से फ्लाइट में आ गईं। पापा को अवकाश नहीं मिला था।

मम्मी और दीदी ने मुझे बिस्तर पर देखा तो बहुत दुखी हुईं , मेरी सहेलियां ही मेरी देखभाल कर रही थीं। मुझे फौरन डॉक्टर के पास ले गईं। सारे चेकअप हुए। डाक्टर ने कहा, इनके रीढ़ की हड्डी में समस्या है, यदि हम आपरेशन करते हैं तो गांरटी नहीं है कि ये ठीक ही हो जाएं। इन्हें हमेशा के लिए बिस्तर पर ही रहना पड़े।

मम्मी ने घबराकर पापा को फोन किया, पापा तुरंत आये। चूंकि मैं गर्ल्स हॉस्टल में थी तो पापा को केवल आधे घंटे के लिए मिलने की इजाजत दी गई।

पापा आये तो मुझे देख कर उनकी आंखों से आंसू बहने लगे।

मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर बस मेरे सिर पर हाथ फेरते रहे। वापस होटल जाते समय पापा मुझसे बोले, गुडबाय बेटा। मैंने कहा, पापा, गुडबाय नहीं,बाय,बाय बोलिए।

वो जितनी बार आते बस गुडबाय बोलते और आंसू पोंछते हुए निकल जाते।

मम्मी, दीदी के साथ मेरे लिए चामुंडा मंदिर में प्रार्थना करने गये, मां, मेरी बेटी को स्वस्थ कर दो, मेरी बेटी का जीवन बर्बाद हो जाएगा। उसके बदले मैं अपने जीवन रूपी फूल को आपके चरणों में समर्पित करता हूं। 

जिस दिन उन्हें वापस जाना था, मुझसे मिलने आये, फिर उन्होंने गुडबाय कहा, मैंने भी हंसते हुए कहा,पापा गुडबाय मत कहो ना।

चलते समय गुडबाय नहीं कहते।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

देवी-आराधना – रश्मि स्थापक

पापा कुछ नहीं बोले और दीदी को लेकर चले गए। मम्मी मेरे पास ही रह गईं ।

वहां से पापा ने मम्मी को फोन पर बताया कि मुंबई के बड़े अस्पतालों में उन्होंने फोन करके पता किया, सबने कहा, नहीं, आपरेशन सफल नहीं हो सकता है। उसकी एक हड्डी बढ़ गई है।

हम कुछ नहीं कर सकते हैं।

मेरे पैरो में बालू की बोरी बांध दी गई थी, असहनीय दर्द था।

मम्मी ने बताया,पापा महाकाल मंदिर उज्जैन में तुम्हारे लिए महामृत्युंजय जाप करवा रहे हैं।

मम्मी मुझे डाक्टर के पास ले गईं तो वो आश्चर्य चकित हो कर बोले, अरे, ये तो खड़ी हो गई। अब धीरे धीरे पीछे एक कुशन लगा कर ऑटो रिक्शा में बिठा कर आप कालेज भेजना शुरू कर दीजिए।

हम सब बहुत खुश हुए,पापा को मम्मी और मैं फ़ोन लगा रहे थे,पर वो उठा ही नहीं रहे थे।

  उसी शाम को मम्मी को फोन आया और मम्मी ने मुझसे कहा,पापा के आफिस से फोन है, मैं जा रही हूं, ये बच्चियां तुम्हें देखेंगी , पापा की तबीयत ठीक नहीं है, मैं दो दिन में वापस आ जाऊंगी।

मम्मी चली गईं, मैं कहते-कहते थक गई कि पापा से बात करा दो, मम्मी हमेशा कोई न कोई बहाना बना देती थी।

आखिर एक दिन मैं मम्मी,पापा को सरप्राइज देने फ्लाइट से घर पहुंची, खिलखिलाते हुए, पापा , मम्मी, मैं आ गई। मैं बिल्कुल ठीक हो गई हूं। 

अचानक मेरे फैले हाथ रूक गये,पापा जमीन पर फ़ूल माला लपेटे सफेद कपड़ों में ढके हुए बेजान से पड़े थे। 

उनके चारों तरफ लोग खड़े थे, मम्मी, दीदी मुझे देख कर फूट कर रोने लगी। मैं इस ह्रदय विदारक दृश्य देखकर पछाड़ खा कर गिरने ही वाली थी कि सबने मुझे थाम लिया,बेटा, अपने पापा को फूल माला चढ़ाओ,चरण स्पर्श करो। अंतिम दर्शन करो।  मैं तो पत्थर बन गई थी,मेरा हाथ पकड़ कर सब करवाया गया।

विस्फारित नेत्रों से सब देखती रही, नहीं पापा नहीं,आप मुझे ऐसे छोड़ कर नहीं जा सकते।

मैं कहती थी ना, पापा गुडबाय मत कहा करो। आखिर आपने अलविदा कह ही दिया।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

जीने की कला – आभा अदीब राज़दान

मैं अभी जी भर कर देख भी नहीं पाई और सब लोग पापा को उठा कर चल दिए,उनकी अंतिम यात्रा को मुकम्मल करने के लिए।

सब बिलखते हुए कह रहे थे, भगवान ऐसा दुःख किसी को ना दे।

बाद में पापा के आफिस वालों ने बताया,साहब बहुत दुखी थे, महाकाल मंदिर में महामृत्युंजय मंत्र के जप का अनुष्ठान किया, बेटी की सलामती के लिए और संकल्प में अपनी बेटी के जीवन के बदले अपने प्राणों की आहुति का संकल्प लिया, अपनी जिंदगी आपके चरणों में समर्पित करता  हूं।

इधर महाकाल मंदिर में दस दिन बाद पूर्णाहुति दी जा रही थी और उधर साहब के प्राणों की पूर्णाहुति से अनुष्ठान का समापन हो रहा था।

मैं यह सब सुनकर सन्न रह गई,पापा आपने मुझे जीवन दान दिया। क्यों पापा क्यों ? आपने ऐसा क्यों किया ??

मैं खामोश हो कर अपने प्यारे पापा को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित कर रही थी।

पापा आप बहुत याद आते हो।।

सुषमा यादव

#छठवां बेटियां जन्मोत्सव

error: Content is Copyright protected !!