पापा चलो ना आज सैर करा लाऊँ आपको -मीनाक्षी सिंह। Moral stories in hindi

जबसे लाठी पकड़ी है हाथ में तबसे बस घर में ही कैद हो गये है आप….. चलिये बैठ जाईये पीछे…… मुझे कसके पकड़ लीजियेगा …… गिरेंगे नहीं…..

नहीं नहीं मैँ नहीं जा रहा… तू जा…. एक समस्या हो तो सुलझा लूँ…. पेशाब भी इतनी जोर से आती है हर आधे घंटे में… कपड़े में ही हो जाती है …

राहुल के 80 वर्षीय पिता गुलमोहर जी बोले…..

पापा आप भी… ये देखो मैँ बड़े लोगों वाले डायपर ले आया हूँ… इसे पहन लीजिये …. और चलिये……

डायपर को गुलमोहर जी के हाथ में  देते हुए राहुल बोला….

नहीं नहीं मुन्ना लगाता है ये….. वो क्या सोचेगा कि मेरा बाबा मेरे डायपर पहनता है … मैँ तो घर पर ही सही हूँ… तू जा….

जाऊँगा तो आपको लेकर ही…. मुन्ना कुछ नहीं सोच रहा…. 11 महीने का बच्चा ज़रूर ये सब समझता है ….. आप भी ना….

जाईये पहनकर आईये…..

तू नहीं मानेगा….

नहीं….

औलाद तो मेरी ही है …. ठीक है रुक… आता हूँ….

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गुलमोहर जी आ गये….

ये तो बड़ा अजीब है रे ….

तो क्या हुआ… अब आप टेंशन फ्री होके चलिये….

गुलमोहर जी राहुल की बाइक के पीछे बैठ गये…..

उनकी छड़ी को उसने आगे रख लिया….

कितनी जोर से चला रहा है गाड़ी …. रुक जा मुझे डर लग रहा…..

क्यूँ मेरी उमर में क्या आप खाली सड़क पर 20 की स्पीड में चलाते थे……

गुलमोहर जी को मज़ा तो बहुत आ रहा था …. ठंडी ठंडी हवा… चारों ओर पक्षी बोल रहे थे … साफ सूनी सड़के …..

पता है रे तेरी माँ को जब विक्की से बैठाकर ले जाता था इन सड़को पर तो उसे इतना मज़ा आता था  कि कहती थोड़ी देर और रुको ना……मैँ भी ज़ितेन्द्र की स्टाईल में स्पीड बढ़ा देता था …. तेरी माँ डर जाती थी …… फिर तो सीधा घर जाने को बोलती थी …. जाने कहां चले गये रे वो दिन ….. शायद इस जन्म में तो लौटकर ना आ रहे…… और ना तेरी माँ….

यह बोलते हुए गुलमोहर जी की आँखें नम हो गयी…..

अरे पापा… जी लो फिर से वो ज़िन्दगी…… किसने रोका है ….. माँ नहीं है तो क्या हुआ उनकी यादें है …. और संगी साथी बनाईये …. पार्क जाईये…….

दोनों बाप बेटे तब तक पार्क पहुँच चुके थे ….

वहां का नजारा देख गुलमोहर जी दंग रह गये…..

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उनसे भी उम्रदराज लोग कई कामों में व्यस्त थे….कोई वहां व्यायाम कर रहा था ….. कोई सायकिल चला रहा था … कोई अपने पालतू जानवर के पीछे भाग रहा था … उसके साथ खेल रहा था ….. कोई दौड़ रहा था तो कोई टहल रहा था …. कई लोग थकने के बाद बेंच पर बैठे गप्पे मार रहे थे ……

पार्क के बाहर एक ठेल वाला चाय और पोहे दे रहा था ….. सब उसका आनन्द ले रहे थे…….

गुलमोहर जी भी सबको देख टहलने लगे… एक दो लोगों से परिचय भी हुआ… जब थक गये तो बेटा  राहुल उन्हे नाश्ता कराने बाहर ले आया….

वाह क्या चाय है ……

अपनी जीभ से चाय की चुस्की लेते हुए गुलमोहर जी बोले….

मज़ा आया ना पापा….  अब चले घर ….. मुझे ऑफिस जाना है ….

राहुल बोला….

हां चल फिर…….

बेमन से गुलमोहर जी बोले……

अगले दिन गुलमोहर जी कुर्ते पैजामे की जगह टी शर्ट लोवर पहन कर तैयार हो गये….

जब काफी देर तक राहुल नहीं आया तो…..

बाहर आंगन में आयेँ….

कहां गया रे ??

क्या हुआ पापा…. क्यूँ आवाज लगा रहे हो??

जम्हाई लेते हुए राहुल बोला….

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आज नहीं चल रहा पार्क ???

गुलमोहर जी गुस्से में बोले….

वो तो कल मूड था तो चला गया….. अब रोज रोज नहीं जा रहा मैं ….. और ये आपने अपना हुलिया कैसे बदल लिया…..

रहने दे तू मेरी सायकिल निकालकर कपड़ा मार दे….. मैँ खुद चला जाऊंगा…..

और हां बहू मेरी चाय मत बनाया कर इतनी जल्दी सुबह उठकर…. सुबह की चाय पार्क में पी लिया करूँगा …..

गुलमोहर जी बोले…

लाठी लेकर चलते है …. सायकिल से ज़ायेंगे…. हाथ पैर टूट ज़ायेंगे ….

राहुल बोला…..

वहां देखा  मुझसे भी बड़े बूढ़े कैसे सायकिल चला रहे थे…. मैँ भी चला लूँगा…. तू निकाल बस….. है ही कितना एक किलोमीटर …..

गुलमोहर जी की बात सुन राहुल और बहू के चेहरे पर मुस्कान आ गयी…..

राहुल ने उनकी सायकिल चमका दी……

गुलमोहर जी का एक बार तो बैलेंस बिगड़ा …. पर अगली बार में सायकिल चल दी…..

गुलमोहर जी मन में प्रफुल्लित होते हुए पार्क की ओर निकल लिए….

उन्होने एक बार पीछे मुड़कर देखा तो राहुल भी हांफता हुआ चला आ रहा था …..

उसे देख गुलमोहर जी मुस्कुरा दिये….

कुछ दिन राहुल उनके पीछे पीछे गया…..

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अब तो खुद ही ज़ाते हैं …. इतने ट्रेंड हो गये है कि किसी को पीछे बैठाकर भी चला ले…..

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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