छः माह पूर्व गरिमा के भाई का विवाह हुआ था और भाई के विवाह के पश्चात गरिमा पहली बार मायके जा रही थी। छुट्टी न मिल पाने की वजह से उसके पति अभी तो उनके साथ नहीं आए थे, हां बच्चों की छुट्टियां खत्म होते ही उनकी वापसी पर उन्हें लेने आकर सबसे मिलने का उनका प्रोग्राम था। बच्चों में अपनी मामी से मिलने का एक अलग ही उत्साह था।
मामा संग तो वे हर साल छुट्टियां बिताया करते हैं। मामा भी बच्चों की छुट्टियों में बच्चों संग स्वयं भी बच्चे ही बन जाते हैं। आफिस से आते ही कभी लूडो,कभी कैरम और कभी ताश के पत्तों के रमी और तीन-दो-पांच जैसे खेलों से एक बार पुनः अपना बचपन जीने लगते हैं।किंतु इस बार मामा-मामी दोनों संग छुट्टियां बिताने का उनमें एक अलग ही आकर्षण था।
गरिमा भी बहुत उत्साहित थी।लेकिन इस उत्साह में भाई के विवाह से स्वाभाविक रूप में ही घर के माहौल में आने वाले परिवर्तन के प्रति तनिक चिंता भी थी। भैया-भाभी की परस्पर एडजस्टमेंट,भाभी का माँ-पापा के साथ व्यवहार,घर के वातावरण को समझने का उसका नजरिया और अब उन लोगों के साथ उसका रवैया, सभी बातों का भान उसे अब ही होने वाला था। पर बच्चे इससे बेखबर ननिहाल में की जाने ली मस्ती में डूबे थे।
घर पहुंचने पर भैया-भाभी ने अत्यंत गर्मजोशी से उन सबका स्वागत किया। रात होते तक गरिमा की सारी चिंताएं दूर हो चुकी थीं। भैया और मां- पापा के खिले-खिले चेहरे देखकर उसे लगा कि वह तो व्यर्थ ही चिंता कर रही थी। भाभी तो पूरी तरह से घर में घुल-मिल गई हैं।
अपने बच्चों के साथ उनकी मामी को हंसी-मजाक करते देखकर वह उनके प्रति भी आश्वस्त हो गई थी। घर भी चमक रहा था।भाभी ने इसे बड़े करीने से सजाया-संवारा था। संभवतः माँ से पूछकर लंच एवं शाम का नाश्ता भी उसकी तथा बच्चों की पसंद का ही था।
किंतु इन सबके बीच न जाने क्यों हँसती- मुस्कुराती माँ की आंखों में समाए एक अकेलेपन को भी वह अनदेखा नहीं कर पा रही थी। माँ बार-बार उसे अपने समीप बैठाने की चाह में थीं। खैर…
रात को गरिमा द्वारा सबके लिए सोने की व्यवस्था के संबंध में भाभी से पूछते ही वह बोलीं, ‘दीदी,आप माँ के साथ उनके कमरे में सोएंगी या बच्चों के कमरे में?’
उसने भाभी से कहा, ‘पापा तो सुबह बहुत जल्दी उठ जाते हैं। मैं तो आज खूब सोना चाहती हूँ।सो,माँ-पापा के कमरे की बजाय बच्चों के कमरे में ही सो जाऊंगी।’
‘दीदी, लेकिन पापा तो अब ड्राइंग रूम में मेहमानों के आराम के लिए बिछाए गए दीवान पर ही सोते हैं। बच्चों की शरारतें भी आपको जल्दी नहीं सोने देंगी। फिर,जितने दिन आप यहां हैं,माँ के कमरे में सोने से माँ को आपके साथ ज्यादा वक्त बिताने को मिल जाएगा। वैसे आपको जिस कमरे में सुविधाजनक लगे आप वहीं सो सकती हैं।’
गरिमा को एक झटका सा लगा तो क्या मां-पापा अब अलग कमरे में सोते हैं? लेकिन क्यों ? उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें आ गईं किंतु इन लकीरों को छिपाते हुए वह ‘ठीक है भाभी’ कहकर माँ के करने में चली गई।
गरिमा ने दो रातें माँ संग उनके कमरे में बिताईं। माँ देर रात तक उससे गपशप करती रहीं, उसके ससुराल का हालचाल जानती रहीं, भाभी की तारीफों के पुल बांधती रहीं कि कैसे वह बड़ी सरलता से घर की जिम्मेदारियों को संभालने की कोशिश कर रही है। काम करते हुए मेरे साथ गपशप भी करती रहती है और मेरी समझाइशों को भी अन्यथा नहीं लेती है।
बीच-बीच में वे पापा की सदैव अपनी मित्र मंडली,अखबार और किताबों में व्यस्त रहने की शिकायत भी करती जातीं। दरअसल, माँ शुरू से ही बातों की शौकीन रही हैं किंतु पापा मित भाषी हैं और गरिमा अपनी माँ की बेटी कम मित्र अधिक रही है। अतः माँ की अति प्रसन्नता को देखकर इन दो रातों में ही गरिमा को माँ की आंखों में समाए उस अकेलेपन का कारण समझ आने लगा।
आज तीसरा दिन था। दोपहर में गरिमा ने भाभी से इसका कारण जानना चाहा तो वे बोलीं, ‘अच्छा हुआ दीदी! आपने भी यह बात नोटिस की।मैंने आपके भैया के माध्यम से यह बात पापा तक पहुंचाई थी कि उन्हें माँ के कमरे में उनके साथ ही सोना चाहिए। माँ स्वयं को अकेला महसूस करती होंगी। फिर, इससे हम दोनों भी निश्चिंत नहीं रह पाते।
किंतु पापा ने ‘घर के एक ही तले में रह रहे हैं हम सब।इसमें चिंता किस बात की ?’ कहकर हमारी बात नहीं मानी। पापा के रिजर्व स्वभाव के कारण मैं अभी उनसे अधिक खुल नहीं पाई हूँ।अब आप आ गईं हैं तो आप ही उनसे बात करिए।’
शाम की चाय के पश्चात भैया-भाभी ने बच्चों को पार्क में घुमाने का कार्यक्रम बनाया था।गरिमा को इसी अवसर की तलाश थी। कुछ समय तक वह माँ-पापा संग बतियाती रही।बातों-बातों में पापा बोले,’बेटा,तुम्हारे विवाह के पश्चात यह घर अकेला पड़ गया था। अब बहू के आने से रौनक हो गई है। ‘किंतु, मां तो अब भी अकेली हैं, पापा !’ ‘क्या ?’ पापा गरिमा की आवाज से चौंक पड़े।
‘हां जी पापा! मां तो अब भी अकेली हैं।’ फिर गरिमा ने पापा के हाथ को अपने दोनों हाथों में लेते हुए पहले क्षमा मांगी कि पापा मैं आपकी बेटी होते हुए भी आपसे एक व्यक्तिगत सवाल पूछने जा रही हूँ, किंतु इससे माँ भी प्रभावित हो रही हैं। इसलिए मैं रुक नहीं पा रही हूँ। पापा, प्लीज बताइए, आप माँ से अलग दूसरे कमरे में क्यों सोते हैं ?
पापा फिर चौंके। किंतु इस बार हँसते हुए बोले कि चिंता मत करो। मेरा तुम्हारी माँ के साथ कोई झगड़ा नहीं हुआ है। बस,घर में बहू के आ जाने से उस कमरे में सोने में मैं अपने आपको थोड़ा असहज महसूस करने लगा था।मन में एक झिझक सी थी और यह भी कि मेरे वहाँ सोने से संभवतः बहू को मां के पास उस कमरे में आने-जाने में झिझक हो और उसे सहज न लगे।
‘पापा, लेकिन आपने यह कैसे सोच लिया कि आपका यह निर्णय मां को सहज लगेगा ? माँ के खालीपन का क्या ? आप जानते हैं कि माँ मुखर स्वभाव की हैं। रात में भैया-भाभी अपने कमरे में होते हैं। आप भी दूसरे कमरे में चले जाएंगे तो इच्छा होने पर माँ किस से बातचीत करेंगी। दो रातों से मैं माँ संग सो रही हूँ।
माँ कितनी खुश दिख रही हैं। आपका तो अपने मित्रों और अपनी पुस्तकों का भी अपना एक दायरा है।परंतु मां का तो आपसे अलग कोई अन्य दायरा है ही नहीं। अपने मन की कोई बात आपसे शेयर करने के लिए जरूरी एकांत तो मां को रात को ही मिल पाएगा न ? और जहाँ तक आपकी बहू की सहजता का प्रश्न है न पापा तो वह भी आपके इस प्रकार अलग कमरे में सोने पर माँ के प्रति ही चिंतित है।मेरी भाभी से भी बात हुई है इस विषय पर।’
पापा चुपचाप गरिमा को सुन रहे थे और सोच रहे थे कि आजकल बच्चे कितना खुलकर बात करने लगे हैं। जमाना वाकई में कितना बदल गया है और बदलता ही जा रहा है।
क्या इसी को जेनेरेशन गैप कहते हैं ? अगर हां, तो सचमुच यह बहुत सुखद है।
उधर, निकट बैठी माँ अपनी भीगी किंतु गर्वपूर्ण आंखों से अपनी लाड़ली को निहार रही थी।
रात को सोने से पहले जब पापा ने बहू को आवाज दी कि बेटा,मेरे दूध का गिलास मुझे माँ के कमरे में ही पकड़ा देना तो ननद-भाभी एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा पड़ीं।
यह मेरी मौलिक रचना है। यह कटु सच है कि बहुओं के आ जाने पर आज भी कुछ परिवारों में सास-ससुर के रिश्ते में एक झिझक आ जाती है। इसे सामान्य बनाने में आज की युवा पीढ़ी का योगदान अपेक्षित है।
उमा महाजन
कपूरथला
पंजाब