वाह क्या सब्जी बनी है…. आज माँ की याद आ गई…. परवल की सब्जी भी इतनी शानदार बन सकती है… ये तो मुझे माँ के हाथों से बनी परवल की सब्जी खा कर ही पता चला था….!! वरना मुझे तो परवल बिल्कुल भी पसंद नहीं थी….। अनजाने में ही सब्जी की तारीफ करते करते नकुल ने पत्नी नव्या से अपनी माँ भी तारीफ कर डाली….!
हाँ पापा… वाकई में सब्जी बहुत स्वादिष्ट बनी है वंश ने भी थम्सअप दिखाकर पापा का समर्थन और मम्मी द्वारा बनाई सब्जी की तारीफ की…..!!
सासू माँ का नाम आते ही नव्या की होठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई… और कुछ अतीत की स्मृतियां हिलोरे मारने लगी …..! आज नव्या को संयुक्त परिवार की खूबियों के मध्य कुछ कड़वे पल भी याद आ ही गए …! जो उसने संयुक्त परिवार में रहते हुए सहन किया था…। वास्तव में परिवार के लिए जितना समझौता नव्या ने किया…. उतना सम्मान उसे कभी नहीं मिला और आज भी सब्जी उसने अच्छी बनाई है और तारीफ सासु माँ की ही हो रही है … ।
अतः बिना रुके ही नव्या ने कहा…. अरे भाई ठीक है …माना माँ जी सब्जी बहुत अच्छा बनाती थी… पर कितने दिन…? वो बनाती ही कहाँ थी…? एकाद दिन ….वो भी कभी इमरजेंसी में … …कभी कभार …..और एक दिन बनाने की बात अलग होती है नकुल …. एक दिन लोग खास तैयारी से बनाते हैं… जब रोज -रोज बनाना होता ना ….तब पता चलता कि कितना स्वादिष्ट सब्जी बनातीं हैं …। नव्या की बातों से साफ झलक रहा था कि वो खुद की तारीफ सुनना चाहती थी सासु माँ की नहीं…!
एक तरह से नव्या ठीक ही बोल रही थी ..संयुक्त परिवार में हजारों काम होते थे …उस पर खाना बनाने की ज्यादा जिम्मेदारी नव्या पर ही थी क्योंकि वो छोटी बहू के साथ-साथ बड़ी कामकाजी बहू थी….। बड़ी जेठानी के बच्चे की तबीयत खराब रहती थी… निमोनिया होने के डर से बच्चे के साथ उन्हें भी आराम करने का मौका मिल जाता था…!!
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नव्या की सासू माँ , सुमित्रा देवी रौबदार व्यक्तित्व की मालकिन थी…! भले ही वह नव्या की सास थी… पर किसी मामले में नव्या से कम नहीं थी…! उनकी इच्छा के बगैर उस परिवार में पत्ता भी नहीं हिलता था….।
कभी-कभी सुमित्रा देवी का सख्त रूप कुछ ज्यादा ही सख्त हो जाता था… अनुशासन प्रिय सुमित्रा देवी कभी भी समझौता करने को तैयार नहीं होती …उन्हें हर काम में निपुणता चाहिए होती थी …हालांकि वो खुद भी घरेलू कामों में , सिलाई कढ़ाई में माहिर थी… पर हर बहू सास के समान ही निपुण हो ,आवश्यक नहीं…
इन्हीं सब कारणों और कुछ कटु अनुभव को नव्या ने आज नकुल के समक्ष खुल कर बोल दिया ….!
अरे सासु माँ की बात छोड़िए …..वो तो हम ही लोग थे जो उनका इतना रौब चल गया… वरना आज की बहू ऐसा बर्दाश्त नहीं करेंगी ….!! हमारे जमाने की बात कुछ और थी …हम लोग कभी – कभी कई मुद्दों पर सही भी होते थे और हमें मालूम भी होता था फिर भी हमारी हिम्मत नहीं होती थी कि हम अपनी बात रख सके….! आज अपने मन के सारे गुबार नव्या निकाल देना चाहती थी ।
नकुल के साथ-साथ वंश भी मम्मी की सारी बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था… शायद अपनी दादी के बारे में कही ये सब बातें सुनना उसे पसंद नहीं आ रहा था… !
नन्हे वंश को लग रहा था जैसे मम्मी उसकी दादी की बुराई कर रही हो…!
बीच में ही वंश ने गुस्से में नकुल से बोला…. ” पापा आप अपनी माँ के बारे में इतनी बुराई कैसे सुन लेते हैं ” ….???
नव्या जो अभी तक बोले जा रही थी …वंश की बात सुनकर स्तब्ध हो गई …!
पहली बार नव्या को एहसास हुआ कि सिर्फ अपनी बात साबित करने के लिए या मन का गुबार निकालने के लिए किसी भी परिस्थिति में बड़ों के लिए अनादर पूर्वक बातें नहीं करना चाहिए ….! बच्चे वही सीखते हैं जो हम व्यवहार करते हैं शायद यही कारण है कि वंश को अपनी दादी की निंदा करना बिल्कुल पसंद नहीं आया …….और उसने तुरंत अपने पापा से ही प्रश्न कर डाला….।
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पर नकुल ने माहौल को समझते हुए… वंश की मानसिक स्थिति पढ़ते हुए… बड़ी समझदारी का परिचय दिया…! उसने सहज होते हुए कहा …
देखो बेटा… जैसे मेरी माँ तुम्हारी दादी थी और तुम्हारी दादी… तुम्हारी मम्मी की माँ रूपी सास थीं….. और तुम्हारी माँ का मैं ….पति ही नहीं….दोस्त , ” हमसफर ” सब कुछ हूँ…… फिर अपने हमसफर से किसी भी मुद्दे पर खुलकर बात तो की जा सकती है ना …. बेटा अपनी बात रखने का हर किसी को हक होना चाहिए और फिर मैं तो तुम्हारी मम्मी का हमसफर हूँ… यदि वो अपने दिल की बात मुझसे नहीं कहेगी तो किसके सामने कहेगी बेटा…हर हमसफर को एक दूसरे की बातों , भावनाओं , एहसास , दुख -सुख सुनने व समझने का भरपूर प्रयास करना चाहिए.. !
मेरी माँ ….ऊपर से एकदम सख्त पर अंदर से मुलायम थी.. यह बात तुम्हारी मम्मी भी अच्छी तरह जानती है…… क्यों नव्या…. ???
और संयुक्त परिवार की मर्यादा रखने में जितना तुम्हारी दादी का योगदान है ना…. उतना ही तुम्हारी मम्मी का भी योगदान है बेटा….।
बड़ों का त्याग और छोटों का धैर्य ही तो हमारे परिवार की विशेषता थी …कभी-कभी विषम परिस्थितियों में मैं भी अपना धैर्य खोने लगता था तब नव्या ने ही मुझे सम्भाल कर संयुक्त परिवार की गरिमा को कायम रखा था बेटा….!
ये होती है हमसफर की ताकत या योग्यता… परिवार को बिखरने नहीं देता… कभी-कभी हमसफर के साथ देने और विवेकपूर्ण निर्णय से जिंदगी आसान हो जाती है बेटा…
फिर तुम्हारी मम्मी का ऐसा कोई इरादा नहीं था कि वो मेरी माँ को अपमानित करें ….!! और हमें आपस में मन की बातें करने का अधिकार तो है ना बेटा…।
बाप बेटे की आपस की बातें नव्या एकदम शांत और धैर्य से सुन रही थी… उसे लग रहा था मैंने कुछ गलत तो नहीं बोल दिया….! कहीं वंश ये तो नहीं समझ रहा कि… सासू माँ के प्रति मेरी धारणा ही नकारात्मक है…!
अरे नहीं नहीं …ऐसा तो बिल्कुल नहीं है….सासू माँ को तो मैं बहुत मानती थी …उनसे बहुत कुछ सीखा भी है… घर को सुचारू रूप से चलाने के लिए कुछ अनुशासन आवश्यक भी है …कहीं मेरी बातें अन्यथा तो नहीं ली गई…!
इसी कशमकश में नव्या फंसी थी तभी…
हाँ -हाँ पापा ….मैं समझ गया ….अगर आज दादी होतीं तो मम्मी की बोलती बंद हो जाती ….
मुझे तो बड़ा मजा आता …. जैसे मम्मी मुझे डाँटती है ना उन्हें भी कोई डाँटने वाला होता….. और तीनों हँस पड़े …..।
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सच में साथियों… बच्चों के सामने बातें कैसे रखनी है , इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए …..हम जो व्यवहार अपने बड़ों के लिए करते हैं वही बच्चे आगे चलकर हमारे साथ भी करेंगे….. ये बातें हमें कभी नहीं भूलनी चाहिए ….!! जिंदगी के कुछ वास्तविक तथ्य बच्चों को बोलकर… या कागज में लिखकर नहीं सिखाया जा सकता वो देखकर , अनुभव कर ही सीखते हैं…..!!!
( स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित और अप्रकाशित रचना )
साप्ताहिक विषय –
# हमसफर
संध्या त्रिपाठी