आज निशा ने कई दिनों ,या यूँ कहैं ,कि कई वर्षों के बाद घर से बाहर कदम रखा था |जब से ब्याह कर आई ,उसकी दुनियाँ इस चार दिवारी में सिमट कर रह गई थी |उसनें अपनी खुशियाँ अपने परिवार में ढूंढी |सबकी ख्वाइशें पूरी करने में उसे सुकून मिलता |माँ(सास) की दवाइयों का,भोजन का ध्यान रखना और समय-समय पर उन्हें देना ,पति और बच्चों की छोटी- बड़ी आवश्यकताओं को पूरा करना |बचे समय में बाबूजी (ससुर जी ) के हिसाब- किताब की डायरी भरना ,पेपर टाइप करना |इन सब कामों में उसे आनन्द आने लगा |वह खुश थी, समझ रही थी ,कि यही जिन्दगी है |वह हँसी – खुशी सारे कार्य करती |सुकून से सोती ,और नये उत्साह से उठती, नये दिवस का स्वागत करती |उसे लगता सब उससे प्यार करते हैं, और इस प्यार की दौलत को ,अपनें दामन में समेटे लहकी-महकी पूरे घर में घूमती |
मगर आज सवेरे काम करते समय, उसका पैर फिसल गया |एक चीख निकली…….सब दौड़ कर आए ,देखा तो ,निशा जमीन पर गिरी पड़ी है|
बाबूजी बोले- ‘ कैसे काम चलेगा ? मुझे ऑफिस जाना है | ‘माँ बोली-‘ मैं दवाइयाँ कैसे लूंगी?’ पतिदेव बोले- ‘आज ऑफिस में मिटिंग है |’
रोहन जो ५ साल का है,बोला-‘माँ,क्या हो गया ? दर्द हो रहा है ? पापा ! मम्मी से उठते नहीं बन रहा है ,इन्हें उठाओ ना ,डॉक्टर को दिखाओ |’ रोहन की बात से ,सब हरकत में आए,अविनाश ने निशा को उठाकर कुर्सी पर बिठाया|निशा कभी अविनाश को, कभी माँ को, कभी बाबूजी को ,देख रही थी |सोच रही थी -क्या ,यही प्यार है ? क्या ,मेंरा कोई वजूद नहीं ? सबको सिर्फ अपनी चिन्ता है |मेंरी परवाह किसी को नहीं | बस सबको मेंरे काम से प्यार है |वह बोली कुछ नहीं |दर्द से कराह उठी
बाबूजी बोले – ‘अविनाश इसे डॉक्टर के पास ले जा, मुझे जाना है , मैं शर्मा भोजनालय में खाना खा लूंगा |चलता हूँ |’ माँ बोली ‘बेटा! मेंरी दवा और पानी मेंरे बिस्तर के पास रख देना |’
अविनाश ने रिक्षा बुलवाई और निशा को लेकर, अस्पताल गया |निशा के पैर की हड्डी में फ्रेक्चर हो गया था |पैर पर दो महिने का पट्टा चढ़ा |निशा बहुत परेशान हुई | अविनाश कुछ बोला नहीं, मगर उसके चेहरे पर गुस्सा और परेशानी दोनों नजर आ रहे थे |
निशा के घर आने पर एक कमरे में एक पलंग पर उसकी व्यवस्था की गई |निशा ने देखा कि सबके चेहरे लटके हुए हैं | कोई किसी से बात नहीं कर रहा, घर की रोनक जैसे खो गई थी |निशा को लग रहा था जैसे,उसनें कोई अपराध कर दिया हो,और वह कटघरे में खड़ी हो| सबकी नजरें ,उसे ऐसे अपराध का बोध करवा रही थी, जो उसनें किया ही नहीं |उसका पैर फिसलना तो मात्र एक घटना थी |
खैर, दूसरे दिन से झाड़ू, पोछा,बरतन सभी के लिए नौकरानी रखी गई | भोजन बनाने के लिए ,एक बाई की व्यवस्था की गई, जो बड़ी मुश्किल से दो समय भोजन बनाने के लिए तैयार हुई | नाश्ता तो बाजार से ही आता ,और चाय अविनाश को बनानी पड़ती |
जब से निशा इस घर में आई ,तबसे किसी को कोई काम करना ही नहीं पड़ता,सबके काम अपने आप ही हो जाते| सब कुछ अच्छा चल रहा था |आज जब सबको अपने हाथों से काम करना पड़ रहा था, तो उन्हें एक दूसरे पर झल्लाहट होती, एक दूसरे पर दोषारोपण करते |घर में मायूसी छा गई थी | हँसते खिलखिलाते घर को जैसे ग्रहण लग गया था |
सबको परेशान देखकर निशा को दु:ख होता ,मगर,वह कुछ नहीं कर पा रही थी |बैठे-बैठे निशा के कानों में कुछ ऐसी बातें पड़ जाती,जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी |
सास नें कहॉ-‘जरा देखकर नहीं चल सकती थी, इतनी क्या जल्दी थी ? ससुर जी बोले-‘और क्या, सबको कितनी परेशानी हो रही है |महारानी तो आराम कर रही है |’
निशा ने सोचा-कोई बात नहीं, सब परेशान है,परेशानी में कह दिया होगा |उसनें अपने मन को समझाया |सोचा मैं ठीक हो जाऊँगी, तो सब ठीक हो जाएगा |
दो महिने जैसे-तैसे निकल गए ,निशा के पैर का प्लास्टर खोल दिया गया था |डॉक्टर ने सावधानी रखने को कहॉ |निशा को कमजोरी भी आ गई थी |वह धीरे -धीरे घर का काम सम्हालने लगी थी |भोजन बनाने वाली बाई को छोड़ दिया था |उसके हाथ का बना भोजन सबको पसन्द भी नहीं आ रहा था | माँ की दवाई ,खाने का समय ,सब कुछ व्यवस्थित हो गया था.एक दिन माँ को, बुखार था |निशा बुखार नापने लगी तो उसके हाथ से थर्मामीटर गिर कर टूट गया | अविनाश भड़क गया – ‘क्या हो गया है निशा ? नुकसान कर दिया ना ! पहले ही बहुत खर्चा हो गया है तुम्हारे इलाज में ,और इन काम वाली बाइयों में |तुम्हें क्या मालुम,कितनी मुश्किल से कमाकर लाते हैं |तुम्हें कमाना पड़े ,तो मालुम हो |’
निशा स्तब्ध रह गई | उसनें, टूटे हुए थर्मामीटर को समेटा |आँखों की कोरों में जो अश्रु आ गये थे,उन्हें सबसे छुपाने के लिए वह अपने कमरे में चली गई |
कुछ देर पलंग पर निस्तब्ध बैठी रही ,कानों में ये शब्द गूंजते रहै -‘तुम्हें कमाना पड़े तो मालुम हो |’ इन शब्दों ने ,निशा के मन में एक संकल्प को जन्म दिया – “वह कमा कर दिखाएगी |” पर कैसे ?उसनें सोचा- इतने वर्षों तक तो इस घरोंदे को सजाती रही, बड़ा बेटा सागर १० वीं कक्षा में पढ़ता है |१५ साल से इस घरोंदे को सवांरते-सवांरते ,मैं यह भी भूल गई, कि मेंरे भी पंख थे उड़ने के लिये | वह सोचे जा रही थी | आज इतने वर्षों के बाद,उसे ,अतीत के वे पल याद आए, जब उसने स्नातक की डिग्री प्रथम श्रेणी में प्राप्त की थी | उसे महाविध्यालय में सर्वाधिक नंबर आए थे, और पुरस्कार भी मिला था |
पिताजी शांत हो गए थे | माँ ने अच्छा रिश्ता देखकर शादी कर दी | निशा के घर में टाइपराइटर था ,निशा नें टाइप करना सीख रखा था |बाबूजी का कार्य करते रहनें से ,इसका अभ्यास वह भूली नहीं थी |
उसके मन में आशा की एक किरण जगी| उसनें आलमारी से अपनी अंकसूची निकाली और कुछ जरूरी कागज निकाल कर अपने पर्स में रखे ,और प्रण कर लिया ,कि वह अपनें पंखो को फैलाएगी और उड़कर दिखाएगी |दूसरे दिन निशा बड़े उत्साह से उठी,उसनें सारे कार्य जल्दी-जल्दी निपटाये |बच्चों को स्कूल भेजा ,सबको भोजन कराया |दोपहर में माँ को दवाई देने के बाद बोली- ‘माँ मुझे आ झूठेशीर्वाद दो, मुझे उसकी आवश्यकता है ,मैं कुछ करना चाहती हूँ |मैं बाहर जा रही हूँ ,जल्दी आ जाऊँगी.|’उसने माँ के पैर छुए | माँ ने सर पर हाथ रखा, कुछ पूछना चाह रही थी ,मगर मौन रही |
निशा ने घर के बाहर कदम रखा |उसनें कल अखबार में एक विज्ञप्ति पढ़ी थी ,जिसमें टाइपिस्ट के पद के लिए आवेदन पत्र आमन्त्रित किए गयेे थे | उसनें आवेदन पत्र जमा किया, एक,दो विध्यालय मे भी आवेदन दिया ,और घर आ गई |उसे उम्मीद थी ,कि कहीं से जवाब जरूर आएगा |
अविनाश को अपनी गलती का एहसास हो गया था |उसे पश्चाताप हो रहा था |वह सोच रहा था, कि आज मैंने निशा का मन दु:खाया है, उससे नजरें कैसै मिलाऊँगा |
कम्पनी से घर जाते समय उसने एक थर्मामीटर खरीदा,और घर की ओर चल दिया |थर्मामीटर उसनें निशा को दिया, संकोचवश नजरें ऊपर नहीं हो रही थी |वह धीमे स्वर में बोला-‘ निशा! आज मैं कुछ ज्यादा बोल गया, निशा मुझे…… ‘
निशा उसकी स्थिति समझ रही थी |अविनाश को ग्लानि का अनुभव न हो ,इसलिए बात को बीच में रोकते हुए, सहजता से बोली- ‘आप हाथ मुंह धो लें मैं भोजन परोसती हूँ |’निशा की सहजता भी,अविनाश को अपराधी होने का बोध करा रही थी|
अविनाश नें हाथ मुंह धोकर भोजन किया | उसे लगा निशा कुछ कहेगी,मगर वह अपना काम निपटा कर सोने चली गई | अविनाश ने कुछ देर टी. वी. देखी ,और वह भी सोने चली गया |
निशा सुबह फिर उसी उत्साह से उठी,और अपने कार्य में लग गई |सुबह की चाय,नाश्ता,भोजन. सभी उसने बनाया |
बाहर दरवाजे पर घण्टी बजी |अविनाश ने दरवाजा खोला ,एक कॉल लेटर आया था,निशा के नाम | निशा को टाइपिस्ट की नौकरी के लिए ,बुलाया गया था |पत्र अविनाश के हाथ में था, और वह सोच रहा था |क्या मेंरी बात का निशा को इतना बुरा लग गया कि वह……..|
उसनें निशा को आवाज दी ,और पत्र निशा को दे दिया ,वह निशा के चेहरे के भाव को पढ़ना चाह रहा था ,मगर ,उसकी नजरें नीची गड़ी जा रही थी |
निशा के चेहरे पर चमक आ गई थी,वह प्रसन्न थी | वह अविनाश की स्थिति समझ रही थी,बोली- ‘आप परेशान मत हो |’ अविनाश को अपराध बोध न हो, इसलिए एक चुटकी लेते हुए बोली -‘और ज्यादा खुश भी मत हो |मेंरी जरूरते आप पूरी करते आए हैं, और आप ही करेंगे |एक छोटी सी खुशी, जो इस पत्र के माध्यम से मिली है,उसे पाना चाहती हूँ | मुझे आपका साथ चाहिये ,मेंरा हाथ थाम लो,आप मेंरी शक्ति हो |’उसने,पूरे विश्वास के साथ अविनाश की ओर देखा |
अविनाश ने निशा के हाथों को थामकर कहॉ -‘ निशा! मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ |तुम्हारी हर परेशानी में, संकट में ,खुशी में ,प्रगति में, मैं तुम्हारे साथ खड़ा हूँ |’
निशा ने माँ बाबूजी की तरफ देखा, वे कुछ परेशान नजर आए |निशा ने कहॉ- ‘ माँ, बाबूजी आप जरा भी परेशान न हो |आपके प्रति मेंरे फर्ज मुझे याद हैं , उसमें कमी नहीं होगी |’
निशा ने दोनों के पैर छूकर कहॉ- ‘आप आशीर्वाद दीजिये ,कि मै घर और बाहर अपने दायित्वों को सफलता से निभा सकूं |आपका आशीर्वाद मेंरी ताकत है |’ दोनों ने प्रसन्न मन से आशीर्वाद दिया |
पूरे घर में खुशी की लहर दौड़ गई |उदासी के बादल छट गए ,और घर खुशियों से महकने लगा.
#5 वां _ जन्मोत्सव
बेटियॉं जन्मोत्सव कहानी प्रतियोगिता
कहानी नंबर.५प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित