देखो बेटी,तुम इस घर की बडी बहू हो,इसलिये तुम्हे अपने मायके के बचपने को छोड़ना होगा।तुम्हारी ननद, तुम्हारे होने वाली देवरानी सब तुम्हे ही देख कर आचार विचार रखेंगे।
जी-माँ जी।
रीता की रितेश से शादी अभी दो माह ही पूर्व हुई थी।रितेश अपने घर मे अपने भाई व बहन से बड़ा था,इस कारण रीता स्वाभाविक रूप से घर की बड़ी बहू हुई।बड़ी बहू होने के कारण पुराने ख्यालों की सासू माँ की समस्त इंस्ट्रक्शन रीता से ही होती।रीता की उम्र कुल 22 वर्ष की ही थी
,वह इन सब संस्कार भरी बातों से ऊब जाती,उसे लग रहा था कि यह शादी नही जेल की सजा हुई है।सासू माँ का कभी कहना बहू सिर से पल्ला क्यों हटता है,ये ठीक नही।हमारे जमाने मे तो लंबा घूंघट काढ़ कर सब काम करना पड़ता है, हमने तो तुमसे घूंघट के लिये नही बोला है तो कम से कम सिर पर तो पल्ला रखना चाहिये।
जी,माँ जी आगे से पूरा ध्यान रखूंगी।रीता उत्तर दे अनमनी हो अपने कमरे में आकर बिस्तर पर पसर गयी।काम करते करते जरा सा सिर से पल्लू क्या हट गया,सासू माँ ने पूरा भाषण ही दे डाला। कल मन किया तो सलवार सूट पहन लिया था,तो तुरंत निर्देश जारी हो गया, बहू तुम बड़ी हो थोड़ा तो ध्यान रखना चाहिये क्या ये भेष ससुराल में उचित है जाओ साड़ी पहनो। इतनी टोका टाकी देख सुन रीता को लगने लगता कि कैसे जीवन कटेगा।रीता की आँखे सोचते सोचते नम हो गयी।
चार भाई बहनों में रीता अपने घर मे सबसे छोटी थी।यही कारण था,सब की लाडली थी,सब उसे कंधे पर उठाए रखते,उसकी हर शरारत का सब आनंद लेते।अपने पापा के कंधों पर चढ़ कर वह उतरने का नाम ही नही लेती।पापा उसे अपनी परी कहते।हिरणी की तरह कुलाचे भरती रहती
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रीता कब शादी योग्य हो गयी पता ही नही चला।रीता के लिये रिश्ते की खोज प्रारम्भ हो गयी,रितेश जब रीता को परिवार सहित देखने आया तो उसे एक ही नजर में रीता भा गयी,जब उन्हें अलग से बात चीत को भेजा गया तो रितेश तो उसकी चुलबुली,शरारती और मोहक बातों से ऐसा आकर्षित हुआ कि तुरंत शादी को हामी भर दी,रीता को भी रितेश अच्छा लगा।दोनो की पसंद के आधार पर दोनो की शादी सम्पन्न करा दी गयी।
मोबाइल पर घण्टी की आवाज आने पर ही उसकी तंत्रा भंग हुई।पापा का फोन था।पापा कह रहे थे,मेरी परी कैसी है?रीता चुप रही,मन की व्यथा को कैसे कहे?पापा की आवाज फिर आयी मेरी परी शायद मुझसे नाराज है,मैं आ नही पाया ना।मेरी बच्ची सुन मैं कल ही तुझसे मिलने आ रहा हूं।अब तो बोल मेरी परी तू कैसी है?पापा तुम्हारी परी बिल्कुल ठीक है,बिल्कुल वैसी ही जैसी आपके पास थी,बस अब उसके पंख नही है।
पापा जैसे ही घर आये तो सामने रीता ही पड़ी,उसे देखते ही वे चिल्ला पड़े अरे मेरी परी-आ ना मेरे पास।दौड़ती सी रीता आकर अपने पापा से चिपट गयी और इतने दिनों बाद मिलने के कारण सिसकने भी लगी।पापा ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा,बेटा अब हमारा मोह छोड़,अब तो ऐसे ही कभी कभार मिलना होगा।अरे घर मे क्या कोई और नही है?रीता बोली माँ जी जरा बाजार गयी है,बस आती होगी।
कोई बात नही,चल तू और मैं बैठते हैं, अपनी परी से बात किये भी तो काफी दिन हो गये।रीता अपने आंतरिक द्वंद के कारण चुप सी थी।पापा ने रितेश के बारे में और अन्य परिवार के सदस्यों के बारे में उससे पूछा।रीता ने बताया सब अच्छे स्वभाव वाले है,बस पापा मैं अब यहां आकर बड़ी हो गयी हूँ।
पापा पूरी बात इस वाक्य से ही समझ गये।रीता से पानी मंगा कर पिया और बोले बेटी सुन बड़ा होना और बड़े पन को निभाने में बहुत अंतर होता है।बेटी बड़ा हो जाना एक जिम्मेदारी होती है,घर प्रबंधन को देखना और घर मे संस्कारित वातावरण देना उसका दायित्व होता है।अब इस बड़े पन को कोई गर्व समझता है
तो कोई बोझ।मेरी बच्ची तू बोझ मत समझना, दायित्व समझना,अपने पर गर्व करना मेरी परी।तेरी सासू माँ ने तूझे बड़ी कह कर अपना दायित्व तूझे सौंपा है,मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है,मेरी बच्ची तू बिल्कुल खरी उतरेगी।
दरवाजे के पास खड़ी सासू माँ बाप बेटी की वार्ता सुनकर अपने को धन्य मान रही थी कि उन्हें ऐसी रिश्ते दारी मिली।साथ ही एक सबक खुद को भी मिल गया कि आधुनिक समय को देखते हुए बहू को पुराने परिवेश में भी न दखेला जावे।
अरे भाई साहब कब आये कहते कहते सासू माँ रीता के पापा से अभिवादन कर बैठ गयी और बोली भाईसाहब हमारी रीता ने तो सच मे हमारा घर पूरा ही संभाल लिया है। आपके दिये संस्कार अब हमारे घर को भी संस्कारित कर रहे हैं।चल रीता बेटी चाय तो ला।
परी के पर फिर उग आये थे,आज वह प्रसन्न मुद्रा में सिर पर पल्लू रख कर किचन की ओर बढ़ गयी।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित
*#पापा मैं छोटी से बड़ी हो गयी क्यूँ* वाक्य पर आधारित कहानी: