पंख – संजय मृदुल : Moral Stories in Hindi

“जिस दिन मेरे पंख आयेंगे न देखना मैं आसमान में उड़ जाऊंगी।” नन्हीं बच्ची ने एक चिड़िया को बालकनी में बैठे देखकर मां से कहा।

मां मुस्कुराई। उसकी पीठ पर हाथ फेरा और कहा–”हम लड़कियों के पंख आते नहीं है बेटा, हमें खुद बनाने पड़ते हैं। अपने छुपे हुए आत्मविश्वास, अपनी दबी हुई ताकत, और हिम्मत को इकट्ठा कर, अपनी पहचान को सबके सामने दृढ़ता से रखकर।”

“इतना कर लूंगी तो क्या मेरे पंख बन जायेंगे?” मासूम सा सवाल हवा में तैर गया।

“हां शायद! फिर उन्हें जमाने की बुरी नज़र से बचाना पड़ेगा। गलत हाथ न छुएं ये ध्यान रखना पड़ेगा, कोई शिकारी नोच न ले इतनी सावधानी रखनी पड़ेगी। सुंदर पंख देखकर कुछ लोगों की नीयत ख़राब हो जाती है।”

बच्ची के चेहरे पर तनिक आश्चर्य के भाव आए। “जैसे मैं तितली पकड़ने के लिए जिद करती हूं वैसे? तितली के पंख के रंग उंगली में कितने सुंदर लगते हैं न मां?”

“हां बेटा! ऐसे ही हमारे पंख के रंग कुछ लोगों को अच्छे लग जाते हैं तो वे उसे नोच देते हैं।” मां के चेहरे पर एक रंग आकर गुजर गया।

“फिर तो मुझे नहीं चाहिए पंख मुझे मां। टूटे हुए पंख कितने गंदे दिखते हैं, फिर तितली मर भी जाती है थोड़ी देर में।” बच्ची ने उदास स्वर में कहा।

मां ने कसकर उसे अपने अंक में छुपा लिया। उसकी आंखों में नमी पसर गई जिसे उसने पल्लू से चुपचाप पोंछ लिया। ज़मीन पर फैली हुई उनकी परछाई में दोनों के पंख दूर तक फैले हुए थे।

©संजय मृदुल

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!