पंगु – मंगला श्रीवास्तव

राघव आज एक बड़ी कम्पनी सिप्ला में इंटरव्यू देने जा रहा था।

माँ मैं जा रहा हूँ, कहकर पैर छुए फिर पिता जिनको पेरेलिसिस था उनके बिस्तर के पास आकर उनके भी पैर छूकर बाहर निकल आया था।आज उसको इस जॉब की बहुत जरूरत थी।

राघव ने कभी नही सोचा था कि  कभी जो खुद इतने बड़े बिजनेस का मालिक था और दूसरों को नौकरी देता था।आज वो खुद ही जॉब की तलाश में इतने दिनों से भटक रहा था।

पिता के अचानक पेरेलिसिस होने से वो बिस्तर पर जा लगे।

उसने खुद कभी पिता के काम मे इंटरेस्ट नही लिया ।बस यार-दोस्त के साथ मटरगस्ती व पार्टियों में समय बिताता रहा।

काम का नॉलेज नही होने से पिता के बीमार होने से उनका लगा हुआ रुपया उधारी सब डूबती चली गयी।खुद उनके अपने लोगों ने जिन पर उनको भरोसा था धोका दे दिया। इसकारण कम्पनी ठप हो गई, कर्ज होने के कारण आज सब कुछ बिक चुका था।

कम्पनी के गार्ड को अपना परिचय पत्र दिखा वो अंदर आया बहुत सारे कैंडिडेट वहा पहले से ही मौजूद थे जो कि, इंटरव्यू देने आये थे।वो मन ही मन प्रार्थना करने लगा कि आज वो सफल हो जाये। उसका नम्बर आते ही वो पूछ कर अंदर आया और सभी को गुडमॉर्निंग बोल कर  अपनी सीट पर बैठ गया।उसका इंटरव्यू ठीक ठीक रहा पर भी उसको लग रहा था कि उससे भी अच्छा अन्य लोगों का हुआ है। वो बाहर निकल आया था।

पर जैसे ही उसने बाइक स्टार्ट की ही थी कि एक गार्ड उसके पास आया ओर बोला क्या आप राघव जी है ?

वो बोला जी हाँ ,चलिए आपको सर् ने अंदर बुलाया है।

उसने कहां सर् पाँचवे फ्लोर पर आपका इंतजार कर रहे है।

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वो जैसे ही पाँचवे फ्लोर पर पहुँचा पसीने में तर हो गया घबराहट के मारे।

अंदर आने का पूछने जैसे उसने दरवाजे को छुआ पर उसके पहले ही आवाज आई राघव अंदर आ जाओ। वो आश्चर्य में पड़ गया था।

अंदर पहुँचा तो देख कर हैरान हो गया वहां व्हीलचेयर पर उसके बचपन का साथी समीर बैठा था। राघव ये रहा तुम्हारा ज्वाइनिंग लेटर आज से तुम मेरी कम्पनी के मैनेजर हो राघव।

राघव के हाथ कांप उठे लेते वक्त पर समीर ने उसके हाथ को अपने हाथों में ले लिया।

राघव नजरें झुक कर रो पड़ा।

बचपन मे वो और उसके सारे दोस्त बचपन से लकवे से ग्रस्त

समीर को पंगू कहकर हंसी उड़ाते थे। उसकी बैसाखी छीन कर उसको गिरा देते थे खेलने के बहाने।अक्सर जब वो पढ़ता तो पीछे से उसको कह कर चिढ़ाते की पंगू साला माँ बाप पर बोझ बनेगा बड़ा होकर। क्या कर पायेगा ये ?और सारे दोस्त हँसने लगते थे उस पर।

आज वो ही समीर इतनी बड़ी कम्पनी का मालिक था। और

इतना विनम्र ।

राघव उसके पास जाकर उसके पैरों को छूने झुका तो समीर ने उसको उठा कर अपने गले लगा लिया।और बोला नही राघव तुम्हारी जगह मेरे दिल में है  दोस्त। आ जाओ गले लग जाओ यार और उसको गले लगा लिया।

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आज राघव  समीर के आगे खुद को पंगू समझ रहा था और बचपन में किये अपने दुर्व्यवहार को याद कर लज्जित हो रहा था।

मंगला श्रीवास्तव इंदौर

स्वरचित मौलिक कहानी

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