पंछी को उड़ जाने दो – सुषमा यादव

कभी खुशी कभी ग़म,जनाब, जिंदगी भी है एक तरह का जंग।

यही सिलसिला चलता रहता है हरदम।

हमको भी कभी खुशियां मिली थी बेशुमार,।पर हमें भी लग गई जमाने की नजर। अचानक खुशियों के मंज़र बदल गये ग़म में।

हम फिर से तन्हां हो गये इस सफ़र में।

वो कहते हैं ना,हर रात की सुबह होती है।

अंधेरे के बाद उजाले भी दस्तक देते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ हमारी भी जिंदगी में। और फिर एक दिन हम सबकी जिंदगी में आई एक प्यारी सी नन्हीं परी।

हो के बादलों के रथ पर सवार,

हमारे अंगना में आई एक नन्हीं परी,,

उस मुस्कुराती कली के आने से हम सब जुड़ गए एक नये रिश्ते में। हम बन गये नातिन की नानी, ,

पापा, मम्मी, मौसी,दादा,दादी बुआ फूफा तमाम रिश्तों से जुड़ गई वो अनजानी।

छट गये बादल ग़म के। खुशियां बरसने लगी आंगन में।

समय हमेशा एक सा नहीं रहता।

फिर एक बार एक साथ आए खुशी और ग़म।

 




खुशी इस बात की कि बेटी नया मुकाम हासिल करने चली परदेश। हो गई उसकी भी मनोकामना पूरी। 

हमने भी कहा,,,हम सबके भविष्य का सुनहरा सपना हो तुम। आकाश की अनंत ऊंचाईयों को छू लेने का हौसला रखती हो तुम। एक ऊंचा उड़ान भरने वाली परिंदा हो तुम।

तुम्हें वो सब मिले जो चाहत है तुम्हारी। लबों पर यूं ही मुस्कराहट बनी रहे तुम्हारी।

आज़ तुमने अपने सपनों को साकार कर दिखाया है।

पर ग़म इस बात का है कि हम फिर हो गये अकेले।अब फिर तन्हां तन्हां जिंदगी कटेगी।

पर उन्मुक्त गगन भी तो चाहिए बेटी को जीवन में।

तुम उड़ो गगन को छुओ,दिन रात चौगुनी तरक्की करो।

हमारा क्या है,हम तो जी लेंगे तुम सबकी यादों में।आंख रो रही है,पर होंठ मुस्करा रहें हैं,

जो थी दिल के बहुत क़रीब, वो दूर जा रही है।

 

जाते जाते बिटिया बोल गई, चिंता मत करो, मम्मी, जल्दी ही आपको फिर एक खुशखबरी मिलेगी,,बस फिर क्या था, ये मन बावरा मन झूम उठा। 

 

यही तो जिंदगी की रीति है,

हार के बाद ही जीत है।

जिंदगी के हर मोड़ पर कभी खुशी मिलती है तो कभी ग़म।

इन दोनों के बीच का हमें तो तय करना है सफर। 

ये सुख दुःख,धूप छांव का कारवां चलता रहेगा हरदम।

इसलिए ऐ दिल किसी की उड़ान पर मत लगा तू रोक।

** बस नीलगगन में पंछी को उड़ जाने दो*** अपना जीवन खुल कर जीने दो,,,।।

#कभी_खुशी_कभी_ग़म 

 

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ,प्र

स्वरचित मौलिक 

 

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