दीप्ति के शादी के अभी एक सप्ताह भी नहीं बीता था। उसके हाथों की मेहंदी भी ठीक से छुटा नहीं था कि पूरे ससुराल की जिम्मेदारियों का बोझ डाल दिया गया था।
एक दिन सुबह होते ही दीप्ति के सास सुनीता जी ने उसे अपने कमरे में बुलाया और दीप्ति को अपने पास बैठने को कहा और बोला बहू आज से याद रखना कि यह तुम्हारा मायका नहीं है बल्कि तुम्हारा ससुराल है यहां पर तुम्हारी कोई भी मर्जी नहीं चलेगी।
मैं जैसा बोलूंगी वैसा ही तुम्हें करना होगा आज तुम्हें पहली और आखरी बार समझा रही हूं यह बात गांठ बांध लो कि आज के बाद मुझे तुम्हें कुछ भी समझाना ना पड़े। सुनीता जी ने रोब झाड़ते हुए दीप्ति से कहा। बहु जाओ एक डायरी और पेन लेकर आओ दीप्ति बिना पूछे ही डायरी और पेन लेकर आ गई।
सुनीता जी ने पूरे घर के लोगों के खाना की पसंद और नापसंद लिखवाना शुरु कर दिया था। सबसे अपने अविनाश का नाम लिखो और उसको सप्ताह में क्या-क्या खाना पसंद है सारा कुछ नोट करो ऐसे ही करके घर के सभी सदस्यों के पसंद और नापसंद के बारे में दीप्ति को डायरी में नोट करवा दिया था। दीप्ति बिना कुछ सवाल किए यह सब कुछ कर दिया उसके बाद सुनीता जी ने बोला अब तुम जा सकती हो।
और हां याद रखना कोई भी शिकायत का मौका नहीं मिलना चाहिए ऐसे किया या तुम वैसे किया दीप्ति ने हाँ मे सर हिलाते हुए चुपचाप से चली गई।
अगले दिन सुबह होते ही डायरी में से सबके पसंद के नाश्ता बना दिया था नाश्ता बनाने के बाद अपने कमरे में बैठ के सोच रही थी।
कहां मैं अपने मायके में एक चाय भी मां से बनवाकर पीती थी और यहां पर पूरे घर का पसंद का खाना बनाओ ऐसा लग रहा है जैसे मैं शादी करके नहीं बल्कि एक नौकरानी बन कर आई हूं। अभी जैसे ही यह सोच ही रही थी तभी उसका हस्बैंड अविनाश बाथरूम से निकला और बोला दीप्ति जल्दी से नाश्ता लगाओ देर हो रहा है ऑफिस के लिए दीप्ति किचन से नाश्ता लेकर आ गई।
नाश्ते में आज ब्रेड टोस्ट बना था यह देख कर अविनाश बोला अरे वाह तुम्हें कैसे पता है कि आज के दिन में ब्रेड टोस्ट नाश्ते में खाता हूं।
दीप्ति ने मुस्कुराते हुए बोला कैसे नहीं पता रहेगा आखिर में हूँ तो आपकी पत्नी अब आप की पसंद और नापसंद के बारे में मुझे नहीं पता होगा तो किसे पता होगा।
अविनाश बोला वेरी स्मार्ट गर्ल लगता है माँ ने तुम्हें सब कुछ बता दिया है चलो अच्छा है क्योंकि यह एक पत्नी का कर्तव्य होता है कि वह अपने पति के पसंद और नापसंद को जाने।
नाश्ता करते हुए अविनाश बोला जल्दी से मेरा लंच भी पैक कर दो। दीप्ति लंच बॉक्स पकड़ाते हुए बोली यह लो जी आपका लंच तैयार है अब तो अविनाश बहुत ही खुश हो गया बीवी हो तो ऐसी। लंच उठाकर अविनाश ऑफिस के लिए निकल गया।
दीप्ति ने सोचा थोड़ी देर आराम कर लेती हूं फिर ब्रश कर लूंगी थोड़ी देर बाद तो सारे घरवालों की फरमाइशी शुरू हो गई उसकी ननद ने आवाज लगाई भाभी मेरा नाश्ता जल्दी से लगा दो मुझे कॉलेज जाना है।
उसका छोटा देवर भाभी जल्दी से मेरा भी नाश्ता लगा लो मुझे भी ऑफिस जाना है और उसके ससुर जी बेटा मेरा भी नाश्ता लगा दो मुझे भी दुकान पर जाना है।
दीप्ति को सब की फरमाइश पूरी करते-करते 12:00 बज चुका था। उसे भी अब भूख लगने लगा था सोचा कि मैं भी नाश्ता कर लेती हूं उसके बाद लंच बनाने का भी टाइम हो जाएगा।
दीप्ति किचन में नाश्ता करने के लिए जाती हैं देखती हैं कि एक भी रोटी तो बचा ही नहीं है बस थोड़ी सी सब्जी बची हुई है दीप्ति ने सोचा चलो अब क्या रोटी बनाती हूं अब तो लंच बनाने का टाइम हो जाएगा उसी समय खाना खा लूंगी ।
दीप्ति ने सोचा चलो लंच बनाने से पहले नहां लेती हूं। तभी उसके सास सुनीता जी ने आवाज लगाई बहू आज खाना दो आदमी के लिए ज्यादा बनाना क्योंकि आज अविनाश की बुआ और फूफा जी भी आ रहे हैं।
साथ में ही लांच करेंगे और हां उनके खाने में नमक थोड़ा कम डालना क्योंकि फूफाजी नमक बहुत कम खाते हैं खाने में।
दीप्ति ने बोला जी माँ जी बना दूंगी। दीप्ति जल्दी से नहा कर लंच बनाने में जुट गई लंच बनाते-बनाते अविनाश के बुआ फूफा घर में आ चुके थे।
दीप्ति के सास ने आवाज लगाई बहू जल्दी से इनके लिए कुछ मीठा पानी लेकर आओ।
कुछ देर के बाद सारे लोग लंच करने के लिए टेबल पर बैठ गए थे सुनीता जी ने दीप्ति को खाने परोसने के लिए कहा लेकिन कोई भी व्यक्ति खाना निकालने में मदद नहीं कर रहा था बल्कि सब ऐसे बैठे हुए थे कि वह कहीं रेस्टोरेंट में खाना खाने के लिए बैठे हैं। और दीप्ति कोई वेटर हो तो सब की फरमाइश से पूछ पूछ कर परोस रही हो।
आज खाने में राजमा चावल बना हुआ था तो बुआ जी ने पूछ लिया भाभी आपकी बहू तो बहुत ही लाजबाब खाना बनाती है क्या टेस्टी राजमा बना हुआ है।
खाना खाने के बाद बुआ और फूफा जी ने सुनीता जी से बोला भाभी अब हम चलते हैं फिर कभी मिलेंगे और इस बार हम सिर्फ खानेने पर नहीं आएंगे कुछ दिन के लिए यहीं पर रहेंगे।
सुनीता जी ने बोला हां हां क्यों नहीं मैंने कब मना किया है आपको ही कभी टाइम नहीं है रुकने का आते हैं हवाई जहाज की तरह और जाते भी हैं हवाई जहाज की तरह।
जिंदगी ऐसे ही रोज चलती रही कब शाम हो जाती उसे पता भी नहीं चलता। दीप्ति ने जैसे अपनी जिंदगी जीना भूल ही गई थी सुबह हुआ नहीं सब की फरमाइश शुरू हो जाती थी अगर कभी दीप्ति की मां का फोन भी आ जाता था तो वह फोन पर बोलती थी मैं अभी करती हूं थोड़ी देर में लेकिन वह थोड़ी देर कभी आता ही नहीं था।
आज सोचा मैं अपनी मां से बात करूंगी। दीप्ति ने फोन लगाया अपनी मां के पास उसकी मां ने जैसे ही फोन उठाया दीप्ति जोर जोर से रोना शुरु कर दी दीप्ति की मां ने बोला क्या हो गया मेरी बच्ची क्यों रो रही है। तू तो इतनी बिजी हो गई है अपनी ससुराल में कि तू अपनी मां को भी भूल गई है बस बोलती है मैं थोड़ी देर में कॉल करती हो लेकिन तुम्हारा कॉल आता ही नहीं है। दीप्ति बोली मां यहां जो सुबह मैं सोकर उठती हूं रात के 12:00 बज जाता कम करते करते।
मुझे टाइम ही नहीं मिलता है आपको तो पता ही था कि मैं आपके यहां रहती थी एक चाय भी बना कर नहीं पीती थी और यहां पर सुबह से शाम हो जाता है मां मैं थक जाती हूं बिल्कुल ही। उसकी मां बोली बेटी क्या करोगी ससुराल है करना तो पड़ेगा ही।
आज मन भर के अपनी मां से बातें की। ऐसा लग रहा था कि उसके ऊपर से कितने बोझ हल्के हो गए हो।
बात करते-करते ही अविनाश ऑफिस से घर आ गया था और कपड़ा खोलते ही बोला दीप्ति जल्दी से एक कड़क चाय बनाओ।
आज सर में बहुत तेज दर्द हो रहा है ऑफिस का काम भी आज बहुत ज्यादा था दीप्ति ने अपनी मां से बोला मां मैं फोन रखती हूं फिर बात करूंगी।
अविनाश के लिए चाय बनाने को चल देती है
तभी अविनाश ने दीप्ति को पकड़ कर अपनी बाहों में ले लेता है और बोलता है महारानी थोड़ी देर बाद भी चाय बनाने जा सकती हो तुम तो इतनी बिजी रहती हो कि तुम्हारे पास मेरे लिए बिल्कुल ही टाइम ही नहीं होता है।
आज हमारे शादी के एक महीना बितने वाले हैं लेकिन मुझे कभी भी एहसास नहीं हुआ कि तुम मेरी पत्नी हो ऐसा लगता है कि तुम एक घर की नौकरानी हो दिन भर अपने काम में बिजी रहती हो। दीप्ति ने अविनाश की बात काटते हुए कहा अविनाश कैसी बातें करते हो अपना काम तो करना पड़ेगा ना कोई दूसरा तो नहीं आएगा करने अविनाश ने बोला हां बाबा हां चाय बना कर लाओ।
अविनाश बोला दीप्ति आज मैं रात के खाने में कुछ नहीं खाऊंगा क्योंकि मेरा सर में बहुत तेज दर्द हो रहा है और मैं जा रहा हूं अब सोने।
दीप्ति रात के खाना बनाने की तैयारी में जुट गई थी खाना बनाने के बाद सब लोगों को आवाज दे दी सब लोग अपने-अपने जगह पर आकर बैठ गए थे दीप्ति ने खाना परोस दिया था आज खाने में दीप्ति ने मटर पनीर और पुलाव बनाए थे मटर पनीर चखने के साथ सुनीता जी गुस्से में हो गई यह क्या बनाई हो इस में नमक कितना ज्यादा है। दीप्ति बहुत डर गई थी। सोचने लगी क्या करें कि नमक कम हो जाए।
उसी समय दीप्ति के ननद ने भी मटर पनीर चखा था तो उसको नमक बिल्कुल भी ज्यादा नहीं लगा और अपनी मां से बोली मां नमक कहां ज्यादा है आप दोबारा से चख कर देखो। सुनीता ने अपनी बेटी को डांट दिया तुम्हें ज्यादा पता है। दीप्ति के ससुर बहुत भले इंसान थे उन्होने बोला’ सुनीता क्यो बहू को परेशान करती रहती हो क्या तुम्हें अच्छा लगता है यह सब करना।
अगर तुम्हारी बेटी की शादी हो जाए और उसके सास ने उसे ऐसे ही परेशान करे तो क्या तुम्हें अच्छा लगेगा। दीप्ति भी तो किसी की बेटी है.
सुनीता ने बोला आप को किसने बोला है बीच में बोलने के लिए मई जैसा करती हूं ठीक करती हूं कभी भी बहु को सिर पर चढ़ा कर नहीं रखना चाहिए नहीं तो बिगड़ जाती है।
सुनीता के आगे किसी की भी घर में नहीं चलती थी सब चुपचाप बैठ कर देखते रहे उसके बाद सुनीता ने बोला चलो रहने दो कोई बात नहीं हम सब ऐसे ही खा लेते हैं। सब को खिलाने के बाद सुनीता ने भी खाना खाया उसे बिल्कुल भी नमक ज्यादा नहीं लगा उस दिन समझ गई थी उसकी सास उसे जान बूझकर परेशान करती रहती है।
लेकिन वह फिर भी कुछ नहीं बोलती थी जो वह बोलती थी वह चुपचाप करती जाती थी।
एक दिन सुनीता जी छत पर कपड़े सुखा कर नीचे उतर रही थी तभी उनका पैर सीढ़ियों पर फिसल गया और उनके दोनों पैर फ्रैक्चर हो गया।
अब सुनीता जी चल फिर नहीं सकती थी क्योंकि उनके पैर में प्लास्टर हो गया था अब वह बेड पर रहने लगी। दीप्ति उनकी सेवा तब भी दिन-रात करती थी। सुनीता ने एक दिन अपनी बेटी से एक गिलास पानी मांगा तो उनकी बेटी ने बोला मां भाभी से पानी मांग लो मैं स्कूल जा रही हूं मुझे लेट हो रहा है और उसने पानी नहीं दिया और यह बात सुनिता को बहुत बुरी लगी थी। दीप्ति एक गिलास पानी ले कर आई और अपने ननद को बुलाया और उसको खूब डांटा तुम्हारे पढ़ने का क्या फायदा जब तुम अपने मां-बाप की सेवा नहीं कर सकती हो। ऐसी पढ़ाई से तो नहीं पढ़ना ही बेहतर है।
दीप्ति आज बहुत ज्यादा गुस्से में थी। सुनीता जी को आज दीप्ति का एक अलग ही चेहरा नजर आ रहा था।
आज सुनीता जी सोचने लगी जिस बहू को मैं इतने दिनों से सताती रहती हूँ। वो ऐसी स्थिति में भी मेरी सेवा करती है वह चाहती तो पानी नहीं देती और मेरी बातों को अनसुना कर सकती थी लेकिन उसने मुझे पानी भी दिया और एक मेरी बेटी है जिससे मैं पानी मांगने पर भी उसने मना कर दिया।
उस दिन के बाद से सुनीता जी अपनी बेटी को बहुत ज्यादा ही प्यार करने लगी बल्कि अपनी बेटी से भी ज्यादा।
सुनीता जी ने दीप्ति को बुलाया और बोला बेटी वह जो मैंने डायरी लिखवाया था वह लेकर आओ दीप्ति डायरी लेकर आई और सुनीता जी ने उस डायरी के सारे पन्ने फाड़ दिए थे। और बोला कि आज के बाद तुम्हें जो अच्छा लगेगा वह खाना बनाना। जिसको खाना है खाएंगे नहीं खाना है वह खुद बनाएंगे।
आज से तुम किसी की नौकरानी नहीं हो आज से तुम इस घर की महारानी हो।
सचमुच में आज दीप्ति अपने आप को स्वतंत्र समझ रही थी ऐसा लग रहा था कि आज वह एक खुले आकाश में पंछी कि तरह उड़ रही है और पंछी जेल से आजाद हो गया था।