पार्वती… जल्दी करो यार… कहां रह गई.. एक पेन लाने को भेजा था.. मानो पेन बना ही रही हो… पार्वती.. पार्वती… शशांक ने चिल्लाते हुए कहा
तभी अंदर कमरे से पार्वती भागती हुई पेन लाकर शशांक को जैसे ही थमाती है… चटाक की एक आवाज से वहां का माहौल गूंज उठता है.. क्योंकि शशांक का गुस्सा अब चांटा बनकर पार्वती की गालो पर अपने छाप छोड़ चुका था… उसका वह गुस्सा देखकर दरवाजे के बाहर खड़ा पिओन भी अपनी नजर झुका लेता है…
वह पिओन तो कोरियर शशांक को देने आया था… उसी पर साइन करने के लिए शशांक ने पार्वती को पेन लाने के लिए कहा था… पर पेन हड़बड़ी में पार्वती को मिलने में देर हो गई.. जिसकी सजा उसे मिली… ऐसा नहीं था कि यह पहली बार था, जब शशांक ने पार्वती पर हाथ उठाया… वह तो हर छोटी बड़ी बात पर पार्वती पर हाथ उठा देता था और पार्वती को भी अब इसकी आदत हो चुकी थी…
पार्वती जब से ब्याह कर अपने ससुराल आई थी.. उसे बस अपमान ही मिला… कभी सास से तो कभी पति से, तो कभी ननद और देवर से… उस घर में एक उसके ससुर जी ही थे जो उससे बड़ी स्नेह रखते थे और वह उसकी तकलीफ भी समझते थे… पर उनकी भी उसे घर में ज्यादा नहीं चलती थी..
वह जो कभी पार्वती की तरफ से कुछ बोलते भी तो सब उन्हें चुप करा देते.. पार्वती भी सब चुपचाप इसलिए सहती क्योंकि उसके पास और कोई चारा भी नहीं था… मायके में माता-पिता खुद भैया भाभी के तनों को सहकर अपना बुढ़ापा काट रहे थे.. ऐसे में वह अपना दुख किसे बताती..? पढ़ते पढ़ते ही उसकी शादी करवा दी गई ताकि घर में से एक इंसान का खर्च तो बचे… और तभी से पार्वती ने भी अपनी जिंदगी से समझौता कर लिया…
एक दिन की बात है… पार्वती की ननद प्रगति का जन्मदिन आने वाला था… तो उसकी पार्टी की तैयारी चल रही थी… सब उसमें व्यस्त थे… प्रगति की फरमाइशे पूरी की जा रही थी और इन सब में घर का सारा बढ़ता हुआ काम पार्वती के हिस्से आ रहा था… वह दिन भर भाग कर काम करती और सारे बस फरमाईशे…
ऐसे में उसके मायके से फोन आया और उसकी मां ने रोते-रोते उससे कहा… बेटा तेरे भैया भाभी ने हमें वृद्ध आश्रम भेजने का फैसला किया है… वह हमें कल ही वहां भेजने वाले हैं… बेटा एक बार आकर हमसे मिल ले… पता नहीं फिर कब हमारा मिलना नसीब हो… कह रहा था बड़ी दूर है वृद्ध आश्रम…
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पार्वती की मां: असल में हमने ही तेरे भैया से कहा कि हमें वृद्धाश्रम छोड़ दे… रोज के झगड़ों से परेशान हो चुके थे… बेटा इस उम्र में यह सब बर्दाश्त नहीं होता… अब दिन ही कितने बचे हैं हमारे..? तो सोचा बुढ़ापे के यह जो अंतिम दिन है, उसे चैन से बिताए.. वैसे भी जिस परिवार में हमारी कोई जरूरत नहीं, इज्जत नहीं, वहां के लिए क्यों कोई मोह रखना..?
पार्वती: पर मां सिर्फ भैया भाभी ही तो आपका परिवार नहीं है ना..? मैं भी तो हूं… आप दोनों वहां नहीं होंगे तो मैं कहां जाऊंगी..? कभी यह सोचा है..?
पार्वती की मां: बेटा तेरी हालत भी हमसे छुपी नहीं है.. तू चाहे लाख छुपा ले… पर हमें पता है तू भी अपने परिवार में हमारी तरह ही जी रही है घुट घुट कर… पर हमारी हालत को देखते हुए चुपचाप पड़ी है वहां… बेटा हमें माफ कर दे… सब कुछ जानते हुए भी तेरे लिए कुछ नहीं कर पाए, क्योंकि हम भी लाचार है.. काश कि हमने तेरे भैया को उसके पैर पर खड़ा करने के साथ-साथ तेरे लिए भी यही सोचा होता… तो शायद आज का मंजर कुछ और होता… खैर यह सब छोड़.. तू कल एक बार आ सकती है क्या..?
पार्वती खामोशी से बस यही सोचने लगी कि कल तो उसकी ननद प्रगति का जन्मदिन है… ढेरो कम होंगे घर पर, फिर थोड़ी देर चुप रहने के बाद उसने कहा… हां मां आती हूं कल
अगले दिन पार्वती सबके सामने जाकर खड़ी हो जाती है… जहां सभी बैठे हंसी मजाक करते हुए शाम की पार्टी की बातें कर रहे थे… तभी वहां पार्वती को यूं खड़ा देखकर शशांक कहता है… क्या हुआ..? यहां क्यों खड़ी हो..? काम सारे हो गए क्या..? फिर उसकी सास कहती है… इतनी जल्दी..? जरूर काम चोरी की होगी… फिर प्रगति कहती है.. भाभी आज मेरा बर्थडे पार्टी है… कुछ भी कमी हुई ना तो फिर आपकी खैर नहीं और अंत में उसका देवर युवराज कहता है… चिंता मत कर प्रगति… भैया है ना… भाभी की इतनी हिम्मत कहां जो काम में लापरवाही करें…
सब की बातें सुनकर पार्वती के अंदर उबल रहा गुस्सा ज्वालामुखी बनकर फूट पड़ा और उसने कहा… धिक्कार है आप लोगों की सोच और ऐसे परिवार पर… जिसको अपने घर की बहू की बिल्कुल भी इज्जत नहीं… अरे इज्जत तो छोड़ो आप लोग तो मुझे इंसान भी नहीं समझते… मैं तो यहां अपने मां पापा से मिलने के लिए आप लोगों से इजाजत मांगने आई थी, क्योंकि उन्हें भैया भाभी वृद्ध आश्रम भेज रहे हैं.. पर अब तो आप लोगों से अलविदा कहना चाहूंगी… जहां मेरे मां पापा रहेंगे वहां मैं भी रह लूंगी…
हम तीनों की इस दुनिया को कोई जरूरत नहीं, तो अब हम तीनों ही एक दूसरे की जरूर बनेंगे.. अब से आप लोग अपने घर के इस पालतू बहू को हुकुम देने की आदत छोड़ दो और अपना काम खुद करने की आदत डाल लो, क्योंकि अब इस पालतू बहू को भूखो मारना गवारा होगा, पर अपना आत्मसम्मान को रौंधना बिल्कुल भी गवारा नहीं… बहुत सह लिया थप्पड़ और ताने… अब और नहीं… और मम्मी जी आपको मैं उस वृद्ध आश्रम का पता जरूर दे जाऊंगी… क्योंकि आपने जैसे संस्कार अपने बेटों को दिया है ना..?
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उससे तो वह दिन दूर नहीं जब आपको भी वृद्ध आश्रम आना पड़ जाए… पर उस वक्त मैं आपसे बदला नहीं लूंगी बल्कि सहारा बनूंगी… क्योंकि उस वक्त आप एक तानाशाह नहीं, बल्कि एक पीड़ित होंगी… और आप एक लड़की अपने पति की वजह से ही अपने ससुराल से जुड़ती है… धिक्कार हैं ऐसे पति पर जो शादी कर पत्नी नहीं, बल्कि गुलाम लाते हैं और उसे बात बात पर जलील करते हैं… अब से आप लोगों को मुझे छुटकारा मिलेगा… शशांक से कहती है पार्वती…
फिर वह अपनी सास से कहती है… मम्मी जी मेरे मां पापा ने तो हमेशा हमें अच्छी बातें ही सिखाई पर फिर भी आज उनकी यह दशा हैं, तो जरा सोचिए आपके संस्कार तो ऐसे हैं फिर आपकी दशा क्या होगी..? शांति में बैठकर सोचिएगा जरूर… यह कहकर पार्वती वहां से चली गई और सारे खड़े बस उसे देखते रह गए…
उसके बाद पार्वती अपने माता-पिता के साथ उसी वृद्ध आश्रम में रहने लगी… जहां उसके चाल चलन को देखकर उसे वहां की सेविका बना दिया गया और उसे महीने में छोटी सी पगार मिलने लगी… आज वह तीनों ही बड़ी ही खुशी से वहां रह रहे हैं…
दोस्तों… सदियों से यही रीत चली आई है की औरतें घर संभालती है तो मर्द बाहर का… पर इससे यह साबित नहीं होता के दोनों में से किसका काम श्रेष्ठ है..? अगर औरतें घर पर रहकर सब कुछ ना संभाले तो पुरुष बाहर शांति से कम कैसे कर सकते हैं..? और अगर पुरुष जाकर बाहर पैसे ना कमाए तो घर चलाना भी मुश्किल है… पर आजकल के बुद्धिजीवी समाज में पैसा ही सब कुछ है… इसलिए ज्यादातर घरों में देखा गया है की, औरतें अपने पैरों पर खड़ी नहीं है सिर्फ इसी वजह से जिल्लत भरी जिंदगी जी रही है…
और वह इसलिए है क्योंकि जब समय था, उसके पढ़ाई की कद्र किसी ने नहीं की और अब जब समय निकल गया तो उसकी कदर कोई नहीं करता… पहले तो वह अपने बच्चों के लिए सब सहती है फिर वही बच्चे बड़े होकर उससे कहते हैं… अरे मम्मी आपको कुछ नहीं पता… आप तो चुप ही रहो… पूरी जिंदगी कभी कुछ किया है..? पर वह औरत ना पहले कुछ कह पाई थी और ना आज ही कुछ कह पाती है… इसलिए उठो सखियों अपना समय तो गया, पर अपनी बेटियों को सिखाओ की कैसे अपने पैरों पर खड़ा होना है..
रोटियां गोल तो कभी भी बना लेंगी… पहले उसे अपनी कदर करना सिखाओ… तभी तो वह खुद पर जुल्म होने से रोक पाएंगी… उसे सिखाओ बहू तो बनना है, पर पालतू नहीं, घर संभालने वाली… इस कहानी के माध्यम से मेरा उद्देश्य बस समाज के कुछ दृश्य को दिखाना था… इससे मेरा किसी को नीचा दिखाने या किसी को इंगित करना नहीं है… अगर फिर भी मेरे इस कहानी से किसी के दिल को ठेस पहुंची हो तो उसके मैं लिए क्षमा प्रार्थी हूं…।।
धन्यवाद
रोनिता कुंडु
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