पल पल दिल के पास – जयसिंह भारद्वाज

कल्पना काल्पनिक लोक में उड़ रही थी। शीघ्र ही वह कानपुर जैसे महानगर से दिल्ली जैसे मेट्रो सिटी के लिए उड़ने वाली थी क्योंकि उसके पापा ने उसकी शादी दिल्ली स्थिति एक कम्पनी के युवा इंजीनियर से तय कर दी थी। पारिजात घर का इकलौता बच्चा था। उसके पिताजी भी नहीं थे अब इस दुनिया में।

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पारिजात के कंधे से सिर टिकाकर सिसकती हुई मधुमालती ने कहा, “पारिजात, कुछ करो न प्लीज!”

“मालती! मैंने अंतिम प्रयास कर लिया है। मम्मी ने जान देने की बात कह दी है। पिताजी के न रहने पर मेरी मम्मी ने बड़ी कठिनाई से मुझे पाला है। मैं अपनी मम्मी को बहुत प्यार करता हूँ।” मालती की पीठ पर सहलाते हुए उसके सिर पर अपना गाल टिकाये हुए पारिजात ने कहा।

“और मुझे..” मधुमालती ने सिर उठाकर पारिजात की आँखों में झाँकते हुए कहा।

“अरे यार! समझा करो। प्रेमिका या पत्नी को माँ से अधिक प्यार तो नहीं किया जा सकता है न! तुम अपनी जगह और मम्मी अपनी जगह।”

मधुमालती झटके से उठी और पारिजात से दूर होती चली गयी। पारिजात उसकी ओझल होती हुई पीठ देखता रहा फिर नम्बर मिलाकर मम्मी से बात करने लगा।

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तीन साल बाद…

दिल्ली में बिस्तर पर लेटी हुई वृद्ध माधुरी पिछले साल लखनऊ ट्रांसफर हुए बेटे को सुबह से कई बार फोन लगा चुकी है किंतु हर बार पूरी घण्टी के बाद भी फोन नहीं उठा। आज बेटे का जन्मदिन था उसे बधाई देना चाहती थी। थक हार सोचा कि बेटा कहीं व्यस्त होगा। जब मिस्ड कॉल देखेगा तो जरूर कॉलबैक करेगा।

शाम-रात-सुबह  बीती किन्तु कॉल नहीं आयी तब दूसरे दिन दोपहर में जब माधुरी ने बेटे को कॉल किया तो कई घण्टियों के बाद फोन उठा और उधर से स्वर उभरा, “मम्मी, आपको तनिक भी तसल्ली नहीं होती। कल से सैकड़ों बार फोन कर चुकी हो। नहीं उठा रहा हूँ तो समझना चाहिए कि मैं व्यस्त था। कल कल्पना ने मेरे लिए जन्मदिन का बहुत बढ़िया इंतज़ाम किया था। प्रेग्नेंट होते हुए भी वह दौड़ दौड़ कर कैसे सारी व्यवस्थाओं को स्वयं देख रही थी और शाम को कितनी प्रसन्नता से सभी अतिथियों से मिल रही थी। मम्मी, आपको कुछ चाहिए था तो प्रोविजन स्टोर वाले मनोज भैया व मेडिकल स्टोर वाले दिनेश भैया को कॉल कर देतीं। सामान आपको मिल जाता। पैसे मैं भेज देता। मम्मी, मुझे कल्पना को देखना जरूरी है। आप अपनी जगह हैं और पत्नी अपनी जगह। ठीक है न! समझ गयीं आप।” झल्लाकर पारिजात ने अपनी बात समाप्त की तो फोन पर मम्मी का स्वर उभरा,”जन्मदिन की शुभकामनाएं बेटा… बस यही कहना था।”

किंकर्तव्यविमूढ़ सा खड़ा पारिजात तब चैतन्य हुआ जब कल्पना ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा,”आइये न, कल के मिले बाकी बचे गिफ्ट भी खोलते हैं।”

“कल्पना! मैं अभी तत्काल मम्मी से मिलने दिल्ली जा रहा हूँ। गिफ्ट तुम अनरैप कर लो।” कह कर पारिजात ने कार की चाभी उठाई और कल्पना को भौचक्का छोड़कर बाहर निकल गया।

                  -इति-

©जयसिंह भारद्वाज, फतेहपुर, (उ.प्र.)

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