हमारे मुहल्ले में सप्ताह में दो दिन हाट लगता था।मंगल और शुक्रवार को ।हमलोग अक्सर हाट से एक हफ्ते की सब्जी खरीद लेते थे।उसदिन मंगल वार था और मेरे पति आफिस से खाने के लिए दोपहर में आये तो कहा “लाओ थैला और पैसे, सब्जी ले आता हूँ ।अभी ताजी ताजी सब्जी मिल जायेगी ।मैंने पैसे और थैला उन्हे थमा दिया ।मै घर के काम में लग गई ।एक घंटे के बाद मेरे पति सब्जी से भरा हुआ थैला और साथ में एक महिला को अपने साथ लेकर आये ।फटी और मैली वस्त्र में उस महिला को देख कर मुझे अजीब सा लगा ।
” न जाने किसे पकड़ कर ले आये हैं, इनकी यही आदत मुझे बहुत खराब लगती है ” राह चलते भी कोई जान पहचान का मिल गया तो जल्दी छोड़ने का नाम ही नहीं लेंगे ।मै मन ही मन झल्ला रही थी ।” अरे इन्हें पहचाना?”ये कौन हैं? मैंने नकारात्मक में सिर हिलाया ।ये राय बाबू की वाइफ हैं ।पतिदेव बोले।अब मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि ऐसी हालत में? मैंने तो उन्हे एक भिखारी समझ लिया था ।छीः छीः,मैंने न जाने क्या सोच लिया ।थैला अंदर रखकर उन्हें आदर से बिठाया ।गरमागरम चाय पिलाई ।वे कुछ सामान्य हुई ।
वरना वह भी संकोच मे ही थी।बातें चलती रही और मेरा दिमाग पीछे दौड़ लगाने लगा।मेरे पति के बड़े भैया के साथी, साथ साथ काम करने वाले ओवर सीयर थे उनके पति राय बाबू ।कलकत्ता के धनाढय बंगाली परिवार से आते थे।खूब शानदार रहन सहन ।उनका क्वाटर हमारे ही बगल में था।पत्नी खूब जेवरों से लदी फदी रहती ।खूब अच्छी चौड़ा पाड़ की साड़ी मे सजी हुई, मुँह मे हमेशा पान होता ।खूब सूरत और गोरी चिट्टी तो बहुत थी वह।बाल बच्चे बहुत दिनों के बाद हुए।
जबतक बच्चे नहीं थे तो अक्सर हमारे यहाँ आती और मेरे छःमहीने के बेटे को खूब प्यार करती और खिलाती थी ।कभी-कभी बच्चे को उछालने से मै डर जाती और मुझे उनका यह रवैया मुझे पसंद नहीं था ।लेकिन पति ने समझा दिया था कि वह प्यार ही तो करती हैं, तुम बुरा मत मानो, उनके अपने बच्चे नहीं है न? लेकिन उनकी एक बात और भी मुझे अच्छी नहीं लगती थी कि मेरे बेटे को रुला कर खुश होती जो मुझे नागवार होता ।राय बाबू और उनकी पत्नी को पैसे का गुरूर भी बहुत था
किसी रिश्ते दार को कभी पास भी फटकने नहीं दिया ।कहते ” वर्मा साहब, एकबार इन लोगों को पास बिठा लो तो एकदम चिपक जायेंगे, इसलिए तो मै थोड़ी दूरी बना कर रखता हूँ ऐसे लोगों से ।कभी किसी भिखमंगे को एक अधेला नहीं दिया बल्कि डांट कर भगा दिया ।शायद उन्ही का श्राप पीछे लग गया था ।कहते हैं न कि किसी के प्रति बुरा किया हुआ वापस लौट आता है ।शायद वही सब हुआ उनके साथ ।खैर उस रात मेरे पति ने उनकों अपने यहाँ रोक लिया ।मैंने भोजन बनाया तो खूब मन से खाने लगी ।
बोली बहुत दिनों के बाद भर पेट ऐसा खाना खा कर तृप्त हो गयी।मै उनकों दीदी कहती थी ।सवाल किया -“दीदी अपने बारे में बताईए ना?”।राय बाबू और बच्चे कहाँ हैं? उनहोंने कहना शुरू किया ” राय बाबू बहुत खर्चीला थे।कमाते थे और खूब उड़ाते थे।सिर्फ अपने पर।एक बेटा और एक बेटी भी हुई ।पालन पोषण अच्छा से किया ।दोनों बच्चे पढ़ाई पूरी करके विदेश में सेटल हो गये।थोड़े दिन तक आठ दस दिन में बात कर लेते, फिर पन्द्रह दिन में बात होती ।ऐसे करके एक महीने में दो चार शब्द में पूछ लेते हाल चाल ।कभी हमे बुलाया नहीं ।
दोनों भाई बहन ने अपनी पसंद से शादी भी कर ली।माता पिता के आशीर्वाद की जरूरत नहीं समझी ।फिर पिछले पांच साल से फोन भी नहीं आता ।राय बाबू की तबियत बहुत खराब हो गई ।कुष्ठ रोग हो गया ।टोला पड़ोसी ने किनारा कर लिया ।परिवार को तो कभी महत्व ही नहीं दिया था तो अब अकेले हो गये ।फिर नौकरी छूट गयी ।पैसे बेतहाशा खर्च होने लगे।इलाज में, पर कोई फायदा नहीं हुआ और बीमारी बढ़ती गई ।आखिर रखा हुआ पैसा कितना चलता ।सबकुछ खत्म हो गया ।
एक रात राय बाबू भी हमें छोड़ कर दुनिया से चले गये ।घर बिक चुका था उनकी बीमारी में ।एक छोटी सी एक कमरे की कोठरी बगल वाली शान्ती ने दिला दिया, बहुत नेक औरत है वह चार घर में चौंका बर्तन करके अपना गुजारा करती है ।उसका भी कोई नहीं था ।मुझे तो मेरे पति के कुष्ठरोग ने कही काम भी नहीं मिलने दिया ।क्या करती? इसी हाट में भीख मांग कर गुजारा करते हैं ।मुझे उनकी कहानी सुनकर बहुत दुख हुआ ।कैसा चेहरा दमकता था उनका।सोने से लकदक ।क्या से क्या हो गया? पैसे का गुरूर भी बहुत खराब होता है,
काश राय बाबू समझ पाते ।मैंने उनसे रात में रूक जाने का आग्रह किया ।वे मान गई ।शायद एक अपने पन और सहारे की तलाश उनको भी थी।हम दोनों पति पत्नी ने आपस में सलाह किया ।अब उनको कहीं जाने नहीं देंगे ।भोर की अलसायी सुबह मे देखा ।वह जाग गई थी ।नहा धोकर फ्रेश लग रही थी ।”दीदी, इतनी सुबह जाग गई?” ” हाँ, रे थोड़ा साफ सुथरा रहना ही चाहिए ।लाचारी जो न कराये ।लेकिन संस्कार होता है है ना? पति देव भी जाग गये थे ।आते ही कहा ” भाभी अब आप कहीं नहीं जायेंगी, हमारे साथ ही रहना है
आपको ।भैया के दोस्त थे राय बाबू, तो हमारे भी बड़े भैया थे न ? आप हमारी भाभी हुई ।”अब आपका यह देवर कहीं भी नहीं जाने देगा।फिर दीदी मुझसे लिपटी और जार जार रोती रही ।हमने उनके आँसू पोंछ लिए ।”यह कीमती मोती है इसे बरबाद मत करिए ” मेरे बेटे ने भी सहर्ष स्वीकृति दे दी।हमारी जिंदगी की नयी शुरुआत हो गई ।
हम खुश थे।ईश्वर ने हमें एक मौका दिया था।आपसी सदभावना का ।मै सोचने लगी, पैसे का गुरूर कितना खराब होता है ।हमे कहां से कहां पहुंचा देता है ।—प्रिय पाठकों, यह एक सच्ची कहानी है ।दस साल हमारे साथ राय बाबू की पत्नी रही ।और फिर अचानक हार्ट अटेक से एक रात चल बसी ।आज भी उनके बारे में सोच कर मन दुखी हो जाता है ।—-उमा वर्मा, नोएडा ।स्वरचित ।मौलिक ।
VM