“हेलो शुभी आज ऋचा दीदी का फ़ोन आया था वो लोग यहाँ आए हुए हैं। शाम को अपने घर आएंगे। नाश्ते की तैयारी करके रखना। इसलिए तुम्हें फोन किया।” रोहन अनमने मन से बोला
“ठीक है जी।” कहकर शुभी ने फोन रख दिया।
ऋचा दीदी के आने की खबर सुनकर शुभी को बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि इतने सालों में कभी उनका फोन नहीं आया था।
ऋचा दीदी शुभी के पति रोहन के ताया जी की लड़की थी। ताया जी पैसे वाले थे और शुभी के ससुर कुछ काम नहीं करते थे बस औरतों की तरह इसकी बहू और उसकी बहू की बातें करते रहते थे। वो तो रोहन इतना लायक था कि पढ़ लिखकर घर की स्थितियों को संभाल लिया था वरना ससुर जी ने तो घर को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
परिवार में पति की ताई जी का ही दबदबा रहता था। ससुर जी की तो पहले ही कोई इज्जत नहीं करता था शुभी शादी होकर आई तो पति की ताई जी उस पर भी ऐसे हुकुम चलाती थीं जैसे वो उनकी बहू हो। शुभी कुछ नहीं बोलती थी क्योंकि वो रोहन की बहुत इज्जत करती थी। ताई जी की बेटियां भी उससे ढंग से बात नहीं करतीं थीं। तब शुभी को अपने ससुर जी पर बहुत गुस्सा आता था कि कुछ काम-धाम करते होते तो आज उसकी भी इज्जत होती।
रोहन अपने पिता के विपरीत बहुत महत्वकांक्षी था।अपनी मेहनत और लगन से आगे बढ़ता रहा।कुछ सालों बाद रोहन को बहुत बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई।वो अपने परिवार संग दूसरे शहर आ गया। शुभी और रोहन के जीवन में बहुत सी तकलीफें आईं पर न ही ताया ताई जी का कभी फोन आया न ही उनकी बेटियों का।
आज इतने सालों बाद कैसे ऋचा दीदी को हमारी याद आ गई शुभी यही सोचकर हैरान थी।
शाम को रोहन घर पर आया और बोला-“शुभी मुझे उन लोगों को लेने जाना पड़ेगा क्योंकि उनके लिए यह शहर अंजान है।”
इस कहानी को भी पढ़ें:
जीत विश्वास और समर्पण की – बीना शर्मा : Moral Stories in Hindi
“चलो मैं भी चलती हूँ आपके साथ में।” शुभी चहकती हुई बोली और फिर जाने के लिए तैयार हो गई। बच्चों को घर पर छोड़कर दोनों गाड़ी में बैठकर दीदी जीजा जी को लाने के लिए निकल पड़े।
उनके बताए हुए पते के अनुसार रोहन ने एक पुराने से गेस्ट हाऊस के सामने गाड़ी रोकी। एक पल को तो शुभी हैरान हो गई कि इतने बड़े बाप की बेटी इस पुराने से गेस्ट हाऊस में क्यों ठहरी है? ये तो बड़े-बड़े होटलों से नीचे बात नहीं करती थी।
रोहन ने दीदी जीजा जी को फोन किया तो वो दोनों बाहर आ गए। ऋचा दी बड़े प्रेम से शुभी और रोहन से मिलीं और बातें बनाते हुए बोलीं- “ये (उनके पति) तो कह रहे थे होटल में रह लेतें हैं पर मैंने कहा इस शहर में मेरा भाई रहता है तो मैं होटल में क्यूँ रहूँ..? मैं तो अपने भाई के घर ही रहूँगी।”
शुभी ने मन में सोचा आजतक तो भाई की कभी सुध नहीं ली अब कैसे भाई की याद आ गई?
पूरे रास्ते दीदी ने तो कुछ नहीं बताया पर बातों ही बातों में जीजा ने रोहन को बता दिया कि उनका कपड़े का बिजनेस बंद हो गया है बहुत घाटा हो गया था। यहाँ किसी काम की तलाश में आए हैं। उनकी माली हालत इस समय काफी खराब थी।
दीदी जीजा जी लगभग पन्द्रह दिनों तक शुभी के घर रहे। शुभी ने उनकी अच्छे से खातिरदारी की। रोहन तो सिर्फ इतवार को ही उन्हें समय दे पाता था। जीजा जी भी बीच बीच में अपने काम की तलाश में मार्केट चले जाते थे।
दीदी जीजा जी के जाने वाले दिन से एक दिन पहले शुभी ने रोहन से पूछा इन्हें शगुन क्या देना है..? तो वो बोला-“तुम देख लो अपने हिसाब से क्या देना है? वैसे मैं तो यही कहूँगा..कोई जरूरत नहीं है कुछ देने की..बस इन्हें इतने दिन अपने घर रखकर इनकी खातिरदारी कर दी काफी है। जिस तरह का इन्होंने बचपन में हमारे साथ व्यवहार किया कोई और होता तो इन्हें पानी तक नहीं पूछता। हमने तो फिर भी इन्हें इतना आदर मान दिया है..कहते कहते रोहन की आँखें भर आईं।
“रोहन मैं आपकी बात समझती हूँ पर हैं तो वो आपकी बहन ही ना। और बहन बेटियों को कभी घर से खाली नहीं भेजते। और फिर ये जरूरी तो नहीं कि किसी ने हमारे साथ बुरा किया है तो हम भी उसके साथ बुरा ही करें।” शुभी ने रोहन को प्यार से समझाया।
दीदी जीजा जी के पैर छूकर रोहन तो सुबह ऑफिस चला गया। शुभी के पास एक नई बेड शीट पड़ी थी वो और शगुन का लिफाफा उसने दीदी को पकड़ाया। दीदी बहुत मना करतीं रहीं पर शुभी नहीं मानी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
“हम तो तुम्हारे और बच्चों के लिए कुछ नहीं ला सके और तुम इतना सब देकर हमें शर्मिंदा कर रही हो।” दीदी रोते रोते बोलीं।
“दीदी इसमें शर्मिंदा होने की क्या बात है आपका तो लेने का हक बनता है। आप तो बस अपने भाई को आशीर्वाद दो। पैसा तो आनी जानी चीज है। रिश्तों की डोर नहीं टूटनी चाहिए।”
“सच कह रही है तू शुभी! हमारे पास जब पैसा था तब हमने रिश्तों की कद्र नहीं की। पैसे के गुरुर में हमने रिश्तों की डोर को टूटने की कगार पर पहुँचा दिया।जब अपने ही अपनों की कद्र नहीं करेंगे तो रिश्तों में दूरियां आना तो संभव है पर आज तेरे प्यार और समझदारी ने रिश्तों की दूरियों को कम कर दिया।” इतना कहकर ऋचा दीदी ने शुभी को गले लगा लिया।
प्यार की महक में सारे गिले शिकवे घुल गए और एक नई महक के साथ रिश्तों की शुरुआत हुई।
सच रिश्तों में बढ़ती दूरियों का एक कारण पैसा भी होता है।पैसे के गुरुर में आकर अपने अपनों की कद्र नहीं करते और उनसे दूरियां बना लेते हैं।
#रिश्तों में बढ़ती दूरियां
लेखिका : कमलेश आहूजा