पैरों की धूल समझना – रंजीता पाण्डेय : Moral Stories in Hindi

रीता और रमन की शादी को पंद्रह साल हो गये थे । रीता की शिक्षा हिंदी मीडियम से हुई थी । जिस कारण उसको  अंग्रेजी बोलने में असुविधा होती थी ।

लेकिन हिंदी में उसकी पकड़ बहुत अच्छी थी ।रमन  रीता को” अपने पैरों की धूल समझता” था ।  बात बात पे गवार शब्द का प्रयोग करता था ।

रीता को अपने लिए गवार शब्द सुनना, उनको अंदर से झकझोर देता था।रीता ने सोचा मैं कुछ ऐसा काम करू, की घर मे ना सही ,कम से कम समाज में मान सम्मान मिले।

रीता को कहानियां , लिखना बहुत पसंद था। उसने कहानियां लिखना, शुरू किया, फिर , अपनी बेटी की मदद से फेसबुक पे एकाउंट भी खोल लिया । फेस बुक पे अपनी लिखी कहानियां उपलोड करने लगी ।

अच्छे, अच्छे कमेन्ट आने लगे , रीता अब बहुत खुश थी ।धीरे धीरे रीता ने चालीस   से भी ज्यादा कहानियां  लिख लिया । उसने अपने दोस्त की मदद से अपनी  किताब भी छपवा लिया ।

अब उसको सब लोग जानने लगे ,। वो बहुत प्रसिद्ध हो गयी । अब रीता रीता नही रही, अब लोग रीता को “लेखिका रीता जी कह के बुलाने लगे  ।

जब रीता की किताब रमन ने देखा तो, देखता रह गया। रमन ने बोला ,वाह लेखिका रीता जी आपने तो कमाल कर दिया । रीता ने रमन के हाथों से अपनी किताब ले लिया ।

औऱ बोली हिंदी बोलने वाले भी बहुत कुछ कर सकते है। सबको सब कुछ नही आता ,समझे रमन जी । अभी भी रीता के मन में रमन के प्रति नाराजगी थी ।

रीता ने सोचा की आज के समय में  कैसे लोग हिंदी बोलने वाले को गवार बोल देते है , हिंदी हमारी मात्र भाषा है । हमको गर्व होना चाहिए ।

अंग्रेजी आना बहुत जरूरी है।लेकिन हिंदी बोलने वाले को गवार बोलना, या गवार समझना बहुत  गलत है ।

रंजीता पाण्डेय

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