Moral stories in hindi : दर्शना बुटीक ये जाना पहचाना बुटीक शहर में अपनी पहचान बना महिलाओं में बेहद लोकप्रिय था. कारण दर्शना जो बुटीक की मालकिन थी उनका व्यवहार. सिलाई और कपड़ों के बेहद किफायती रेट जो मध्यम वर्गीय महिलाएं और लड़कियां भी खुशी खुशी वहन कर सकती थी.. लहंगा चोली सलवार सूट से लेकर डिजाइनर साड़ी ब्लाउज सब कुछ बुटीक में उपलब्ध था.. बुटीक नीचे था और ऊपर मशीन और स्टाफ थे
अपनी कारीगरी का हुनर कपड़ों पर दिखाते थे.. लंबी पतली दुबली गोरी चिट्ठी दर्शना सब से इतने प्यार और अपनापन से बोलती लगता जैसे उनकी बहुत करीबी है.. हंसमुख चेहरा पर आंखों में मैंने हमेशा एक गहरी पीड़ा और उदासी देखी.. सावन भादो में अन्य महीनो की अपेक्षा महिलाएं बुटीक में कम आती थी..
एक रोज अचानक पटना एयरपोर्ट पर मेरा और दर्शना का आमना सामना हो गया अठारह उन्नीस साल की लड़की और लगभग पंद्रह साल के लड़के के साथ बाहर निकलते समय मुझसे टकरा गई औपचारिकतावश हाय हैलो हुआ.. दर्शना से मैं पूछ बैठी ये बच्चे! मेरी बेटी सौम्या और मेरा बेटा सोहम.. मुझे आश्चर्य मिश्रित उत्सुकता में छोड़ दर्शना हाथ हिलाते आगे निकल गई..
मुश्किल से सत्ताइस या अट्ठाइस साल की दर्शना और इतने बड़े बच्चों की मां..
जब भी एकांत मिलता दर्शना और उसके बच्चे जेहन में घूमने लगते..
महीनो बीत गए इस बात को पर उत्सुकता ज्यों कि त्यों बनी हुई थी..
ऐसे हीं सूट सिलवाने के लिए एक दिन बुटीक में गई.. दर्शना अकेले बैठ मोबाईल देख रही थी.. अच्छा अवसर था.. अपनी उत्सुकता शांत करने के लिए.. मैने दर्शना को बिग बाजार के नीचे कॉफी पीने के लिए मनाया और हम दोनो एक केबिन में आके बैठ गये..
मैने दर्शना को कुरेदना शुरू किया इतने बड़े तेरे बच्चे? थोड़ा टालने के बाद दर्शना ने बोलना शुरू किया..
मेरी शादी डॉक्टर अभिनव से बहुत धूमधाम से हुई थी.. सगाई की अंगूठी पहनाते समय मैंने अभि को देखा था फ्रेंच कट दाढ़ी भूरे बाल भूरी आंखे गोरा रंग लंबे बेहद खूबसूरत ब्यक्तिव के धनी.. प्यारी सी मुस्कान.. कुल मिलाकर मैं पहली नजर में हीं अपना दिल हार गई.. सगाई के तुरंत बाद शादी हो गई.. मैं अपने भाग्य पर इतरा रही थी. सास ससुर ने मुझे पसंद किया था कहा था लाखों में एक है हमारी बहु . पलकों पर रखेंगे इसे..
आंखों में सपने लिए अभि की दुल्हन बन मैं ससुराल आ गई. मैं अभि को करीब से देखने जानने और महसूस करने के लिए बहुत ब्यग्र थी.. सखियों और भाभियों की अभि को लेकर छेड़ छाड़ मुझे गुदगुदा जाती थी .मैं खुद से हीं शरमा जाती थी..
दिन गुजर गया बहुप्रतीक्षित रात आई.. मैं खूब अच्छे से तैयार हो कर फूलों से गमकते खूबसूरत से सजे धजे कमरे में पहुंचा दी गई..
घूंघट में बैठी अभि की प्रतिक्षा कर रही थी. धड़कन तेज हो रही थी लग रहा था जैसे दिल बाहर निकल आएगा..
अभि आया आते के साथ बोला प्लीज़ घूंघट हटाओ और ध्यान से मेरी बात सुनो और निर्णय तुम्हे हीं लेना है मुझे स्वीकार्य होगा..
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पहचान (भाग 2) – वीणा सिंह : Moral stories in hindi
Veena singh