पहचान – माधुरी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : सरल विला के सामने आज मीडिया बालों का जमाबड़ा लगा हुआ है,ये सब के सब इस घर की सबसे बुजुर्ग महिला जो इस घर की मालकिन भी है ने ८० साल की उम्र में कुछ ऐसा करिश्मा कर दिखाया है जो कि कभी कभी कम उम्र के लोग भी नहीं कर पाते। शहर के सभी समाचार पत्र पत्रिकाऔ में उनकी फोटो छपने बाली है।इसी सिलसिले में मीडिया बाले उनका इन्टरव्यू लेने आने बाले

है।

कल ही फोन करके इन्टरव्यू का टाइम निश्चित कर लिया गया है।शहर के नामी गिरामी हॉल में कल सरला जी के द्वारा वनाए गए पोटली

बटुऔं की प्रदर्शनी लगी थी। हाथों-हाथ उनके बनाए बटुए न केवल बिक गऐ व एडवांस में कई लोगों ने बटुआ बनाने का ऑडर भी दे दिया।

कुछ परिचय सरला जी से भी होना जरूरी है।सरला जी जस नाम तक गुण है, स्वभाव से सरल व अपने काम में मशगूल,हर समय कुछ न कुछ नया करने का आइडिया आता ही रहता है।यही कारण है कि उम्र के इस पड़ाव पर भी वे पूरी तरह स्वस्थ हैं,क्यों कि उनका मानना है कि व्यस्त रहने से मन खुश रहता है साथ ही बिमारियां भी दूर रहती हैं ऐसे इन्सान से।घर की मालकिन होने के साथ साथ तीन पुत्रों व बहुऔ की सास व ६ अदद पोते पोतियों थी प्यारी सी दादी मां हैं।भरा-पूरा प्यारा सा परिवार है इनका बेटों का अपना गारमेंट का बिजनैस है,तीनों बहुएं वर्किंग हैं,पोते पोतियां भी बड़े हैं अपनी अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहते हैं।

सरला जी भी अपने आपको व्यस्त रखती हैं,अपने बचपन के शौक को पूरा करके।भले ही सरला जी कोई उच्च शिक्षा प्राप्त महिला नहीं है ,लेकिन उनके घरेलू हुनर ने आज उनको बहुत ऊंचे मुकाम पर पहुंचा दिया है।इस हुनर से न केवल उनको नया पहचान मिली हैव उनकी देश विदेश में शोहरत भी फैल गई हैं। उम्र के इस पड़ाव पर भी उनके चेहरे पर किसी तरह थी थकान का नामोनिशान नहीं नजर आता।दिन दूनी रात चौगुनी उर्जा के साथ वे नऐ नऐ डिजाइन केपोटली वटुऐ बनाती रहती हैं।

देखा जाय तो सरला थी को यह शौक विरासत में अपनी मां से मिला है।उनकी मां को सिलाई करने का बहुत शौक था।सिलाई करने के बाद जब कभी किसी अच्छे चमकीले कपड़े की कतरन बचती तो मां उसका बटुआ बनादेती।धीरे धीरे सरला जीने भी मां से बटुआ बनाना सीख लिया।

शादी के बाद घर-परिवार की व्यस्तताओं ने व बच्चों के पालन पोषन ने काफी समय तक इस शौक को पूरा करने से वंचित रखा।र लेकिन घर की जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद सरला जीने अपने शौक को पूरा करने में अपना समय व्यतीत करना शुरु कर दिया। अब तो यहशौक उनका जुनून बन चुका है। कुल मिला कर किस्सा यह है कि एक दिन उनकी बहू अपने ऑफिस की पार्टी में सासूमां का बनाया सुंदर सा पोटली बटुआ लेकर गई तो सभी ने उस बटुए की बहुत सराहना की,इतना ही नहीं कुछेक महिला सहकर्मियों ने तो उसी तरह के बटुए की फरमाइश भी कर डाली।

घर के सभी सदस्यों ने सरला जी के इस हुनर को व्यवसायिक रूप देने का मन बनाया।

इतना ही नहीं उनकी पोती नीलू ने उनकी एक वेवसाइट बना कर उस पर उन बटुऔ की फोटो डाल दी साथ ही हरेक बटुए की कीमत भी लिख दी।इससे उनके बनाए बटुऔ को नई पहचान मिली।सुखद आश्चर्य तो तब हुआ जव किसी विदेशी कम्पनी ने उनको १०० बटुएबनाने का क ऑडर दिया,कुछेक महिला कारीगरों के सहयोग से दी गई समयाअबधि के अन्तर्गत इस ऑडर को पूरा करके भेज दिया गया।

यह सिलसिला यहीं तक नहीं रूका,उनकी पोती नीलू ने ही यह सलाह दी कि दादी के इस पुराने जमाने के हुनर को पहचान मिलनी चाहिए,

साथ ही दादा भी तो तारीफ की हकदार हैं कि इस उम्र में भी वे इतनी सक्रिय हैं और अपने शौक व जुनून से अपनी नई पहचान बना चुकी हैं

यह उनकी पोती नीलू का ही आइडिया था कि क्यों न दादी के बटुऔं की प्रदर्शनी की जाय जिससे अधिक से अधिक लोग इस पुरानी कला से परिचित हो सकें व इसका लाभ उठा सकें। बस उनकी इसी कला के हुनर से प्रभावित होकर मीडिया वालों ने उनको न केवल

सम्मानित करने का प्लान बनाया है व उनका इन्टरव्यू लेकर विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में छापने का बीड़ा उठाया है।आज सरला जी को अपने इस हुनर से एक नई पहचान मिल चुकी है।

किसी का नाम उस इन्सान का परिचय तो हो सकता है लेकिन असली पहचान तो किसी के हुनर से ही होती है,फिर उम्र चाहे १८ की हो या८० की।कुछ नया करने का जज्बा लाइफ में न केवल उमंग व उत्साह भर देता है व जीवन को नया तरीके से जीने की जिजीविषा भी प्रदान करता है।

स्वरचित वमौलिक

माधुरी

प्रतियोगिता

#पहचान शब्द पर कहानी

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