Moral stories in hindi : मई महीने की ऊमस भरी गर्मी से तन और मन दोनों में छटपटाहट और बैचैनी भरी हुई थी।।आसमान में सुबह से सूरज बादलों के साथ आंख-मिचौली खेल रहा था।कभी सूरज बादलों की ओट में जाकर बिल्कुल छुप जाता और कभी अचानक से बादलों की ओट से निकलकर सारी पृथ्वी को अपनी तपिश से दहला जाता।मैं नमिता,मेरी जिन्दगी भी सुख-दुःख की छाँव भरी रही।उम्र के 45वें वसंत में भी मैं खुद से सवाल पूछती रही कि मेरी पहचान क्या है?
शादी से पहले माता-पिता ने पराया -धन समझकर मेरी इच्छा-अनिच्छा की परवाह किए वगैर एक अनजान हाथों में सौंप दिया।ससुराल में सास-ससुर, पति की सेवा करते हुए हुए भी हमेशा ताने मिले -“यह तुम्हारा घर नहीं है।यहाँ तुम्हारी मर्जी नहीं चलेगी!”
पति का अपना अच्छा व्यवसाय था।घर में सास-ससुर, ननद का शासन था।फिर भी समझौते के साथ जिन्दगी की गाड़ी पटरी पर रेंग रही थी।दो बेटियों की माँ बन जाने के बाद तो घर में सभी का मेरे प्रति व्यवहार और खराब हो चला।सचमुच कहा गया है कि अगर पति पत्नी की इज्जत नहीं करता है, तो उस घर में पत्नी की कोई इज्जत नहीं रह जाती है।मेरे साथ भी यही हो रहा था।पति का शराब पीकर घर आना और रात में पति का अधिकार जताना,मेरी जिन्दगी का हिस्सा बन चुका था।मेरी पहचान कहीं खो-सी गई थी।मैं अन्दर-ही-अन्दर घुटन महसूस करने लगी थी,परन्तु हालातों से विद्रोह करने की हिम्मत नहीं थी।इसी बीच मेरे बेटे का जन्म हुआ। मुझे लगा कि अब परिस्थितियाँ मेरे अनुकूल होंगी,परन्तु कुछ दिन ठीक रहने के बाद फिर पूर्ववत् हो गई। बस मेरी जिन्दगी हुक्म के गुलाम की तरह हो गई थी,जहाँ अपनी इच्छा-आकांक्षाओं का कोई महत्त्व नहीं था,पहचान तो दूर की कौड़ी लाने के समान थी।
मुझे एहसास था कि हमारा समाज एक परित्यक्त महिला को जीने नहीं देता है,उसे देखकर सहारा देने के बजाय नरपिशाच बनकर खड़ा हो जाता है।इस कारण मान-अपमान के घूंट को अमृत समझकर गले से उतारती जा रही थी।कभी-कभी मेरा आत्मसम्मान मुझे झिंझोडकर पूछता कि तेरा अपना वजूद कहाँ गुम हो गया है?मैं ग्रेजुएट होते हुए भी कबूतर की तरह परिस्थिति से समझौता कर
आँखें मूँद लेती।दिनोंदिन पति का स्वभाव उग्रतर होता जा रहा था।मुुझे पति,सास-ससुर और ननद पग-पग पर अपमानित करते।मैं घर-गृहस्थी के मकड़जाल में उलझकर भावशून्य होती जा रही थी,परन्तु थी तो हाड़-माँस की जीती-जागती प्रतिमा!इन अत्याचारों से ऊब कर कभी-कभी मेरा वजूद सर उठाने लगता।बच्चे कुछ बड़े हुए तो मैंने अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखी।मेरी पढ़ाई से घर में सभी नाराज थे,परन्तु मैंने अपनी जिम्मेदारियोंका निर्वहण करते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी।आखिर मेरी मेहनत रंग लाई। मैंनेM.A.प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया।मैं बहुत खुश थी,परन्तु मेरे रिजल्ट ने घर में बवाल मचा दिया।सास ने उलाहना देते हुए कहा -“इसे अपने पति से मन नहीं भरता है,इस कारण नौकरी के बहाने गुलछर्रें उड़ाने बाहर जाएगी!”
मेरे पति ने तो उस दिन सारी हदें पार कर दी।मेरे रिजल्ट के बारे में सुनकर खुश होने के बजाय मुझपर चिल्लाते हुए कहा -“जब साँप ज्यादा फन उठाता है तो उसे कुचल दिया जाता है।तुम भी अपना फन अन्दर रखो ,नहीं तो कुचल दी जाओगी।”
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पहचान (भाग 2)- डॉ संजु झा : Moral stories in hindi
समाप्त।
यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)