पहली रसोई – डॉ. पारुल अग्रवाल  : Moral stories in hindi

निशि बहुत ही प्यारी सी लड़की थी। वो काफ़ी पढ़ी लिखी और शहर के प्रसिद्ध स्कूल में अध्यापिका के पद पर कार्यरत थी । उसका साधारण सा मध्यमवर्गीय परिवार था। बहुत अमीर तो वो नहीं थे पर उसके माता पिता ने अपनी तरफ निशि और उसके भाई बहन को अच्छी परवरिश देने में कोई कसर नहीं रखी थी।

घरवालों ने एक अच्छे से घर में उसका रिश्ता तय कर दिया था।जब रिश्ता तय हुआ तब निशि के लिए जो लड़का मयंक पसंद किया गया था वो भी कॉलेज में प्रोफेसर था। इस तरह सभी बातों को ध्यान में रखकर रिश्ता तय किया गया था। जिस दिन विवाह होना था उससे कुछ दिन पहले ही मयंक की बैंक परीक्षा का परिणाम आया।

उसका बैंक पीओ के पद पर चयन हो गया था। पूरी रिश्तेदारी में बात फैल गई। लोग बधाई देने के साथ-साथ बातों-बातों में ये जता जाते कि जल्दबाज़ी में मयंक का रिश्ता साधारण परिवार में हो गया है, नहीं तो बैंक में पीओ की पोस्ट पर काम करने वाले लड़के के तो एक से एक बड़े घर से रिश्ते आते हैं।

मयंक और उसकी मां को तो वैसे भी अपने ऊपर काफ़ी घमंड था। अब लोगों के इस तरह की बातें उनके घमंड को और भी हवा दे रही थी।

 ये सब देखते हुए उनको लगा कि उन्हें निशि के घर वालों से शादी का बजट बढ़ाने की बात करनी चाहिए। अब एक गाड़ी भी लड़की वालों की तरफ से होनी चाहिए।वैसे भी अब शादी में कम ही समय रह गया था। ऐसे में उनका सोचना था कि निशि के घर वाले सरकारी नौकरी वाला लड़का और इतना अच्छा घर परिवार छोड़ना नहीं चाहेंगे।

वैसे भी अब शादी में कुछ ही समय रह गया है। ऐसे में रिश्ता टूटने से लड़की पक्ष की बदनामी ही ज्यादा होती है।ये सब सोचते हुए मयंक के माता-पिता ने निशि के माता पिता से बात की और शादी का बजट बढ़ाने के लिए कहा। निशि के माता-पिता जहां मयंक के बैंक पीओ की परीक्षा में चयनित होने पर खुश थे वहीं अब मयंक के परिवार वालों की मांग ने उनकी चिंता बढ़ा दी थी।

उन्होंने दुखी मन से मयंक के परिवार वालों की मांग स्वीकार कर ली। शादी में सिर्फ एक सप्ताह बचा था। निशि के माता पिता ने ये सब निशि से छिपाया हुआ था। आखिर शादी का दिन भी आ गया। निशि के मन में अपने भावी जीवन को लेकर बहुत उमंगे थी। मयंक के व्यवहार का रूखापन उसने कई बार अनुभव किया था

इस कहानी को भी पढ़ें: 

पापा जी !सेहत से समझौता ना बाबा ना  – ज्योति आहूजा

पर उसको लगता था कि शादी के बाद सब ठीक हो जायेगा। वैसे भी वो मयंक और उसके घरवालों की नई मांग से अनजान थी। माता-पिता,भाई-बहन के चहेरे पर उसको तनाव महसूस हो रहा था पर उसके पूछने पर उन लोगों ने उसके बिछड़ने और शादी के काम का बहाना बना दिया। विवाह की रस्में शुरू हो गई थी।

जयमाला की रस्म निपटी ही थी कि निशि ने बहुत तेज़ आवाज़ में मयंक के माता-पिता को चिल्लाते सुना। असल में मयंक और उसके माता पिता ने शादी में नई कार की मांग की थी पर निशि के पिता किसी तरह से सेकंड हैंड गाड़ी ही जुटा पाए थे। 

इसी बात पर वो बारात वापिस ले जाने की धमकी देने लगे थे। निशि जो अब तक मूक दर्शक बनी सब देख रही थी।वो अपने पिता और घरवालों का अपमान सहन नहीं कर सकी। उसने जयमाला गले से निकालकर फेंकते हुए खुद ही शादी से इंकार कर दिया और बारात को वापिस जाने के लिए कहा।

निशि के साहस पर सब हैरान थे। मयंक के घरवालों ने भी नहीं सोचा था कि बात इतनी आगे बढ़ जाएगी। उनको तो लगा था कि निशि के घर वाले उनकी मांग के आगे झुक जायेंगे पर यहां तो पासा ही पलट गया था। अब निशि किसी भी हालात में मयंक से शादी करने को तैयार नहीं थी। अपने पिता का अपमान उसे बिल्कुल भी गंवारा ना था।

बारात तो वापिस चली गई थी पर कहीं ना कहीं वहां उपस्थित नाती रिश्तेदार दबी जबान में निशि के भविष्य और उसके इस तरह के निर्णय पर सवाल उठा रहे थे। लोगों की पीठ पीछे बातें और सुगबुगाहट अभी चल ही रही थी कि सभी ने देखा कि एक सजीला सा नौजवान निमेष निशि और उसके घर वालों को संबोधित करके कहता है कि अगर उन सबको स्वीकार हो तो वो निशि को अपनी अर्धांगिनी बनाना चाहता है।

वो कुछ और कहता उससे पहले निशि के पिता कहते हैं कि वो कौन है? उन्होंने तो उसको आज पहली बार देखा है। उनके ये कहते ही निमेष के माता पिता सामने आ जाते हैं जो कि जब बहुत समय पहले निशि के परिवार के पड़ोसी हुआ करते थे। तब निशि और निमेष बहुत छोटे थे। बाद में दोनों परिवार अलग अलग शहर में बस गए पर फोन पर दोनों के माता पिता की अक्सर बातें होती रहती थी।

दोनों परिवार ने बहुत अच्छा समय एक साथ बिताया था। निशि के पिता और निमेष के पिता ने एक दूसरे से वादा किया था कि भविष्य में दोनों परिवार एक दूसरे के बच्चों की शादी में जरूर आयेंगे। वो लोग थोड़ी देर पहले ही पहुंचे थे। निशि के अदम्य साहस ने निमेष का दिल जीत लिया था।

वहां उपस्थित लोगों की उल्टी सीधी बातें सुनकर निमेष से रहा नहीं गया था और वो निशि को मन ही मन अपना जीवन साथी मान बैठा था। अब निमेष के इस फ़ैसले के बाद उसके पिता भी आगे आए निशि के पापा से बोले कि क्या वो अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल सकते हैं? 

निशि के पापा बिना कुछ कहे निमेष के पापा के गले लग गए। ये सब देखकर पंडित जी भी बोल पड़े कि विवाह का मुहूर्त निकला जा रहा है। वर वधू को मंडप में बैठाया जाए। मंडप का वातावरण जो अभी तक काफ़ी गमगीन हो गया था वो फिर से उल्लासपूर्ण हो गया था। सब तो खुश थे

इस कहानी को भी पढ़ें: 

दुआ करूंगा आपकी बिटिया को अपनी भावनाओं से समझौता ना करना पड़े..  – सविता गोयल

पर निशि कहीं ना कहीं इस रिश्ते के लिए अभी तैयार नहीं थी पर वो अपने माता पिता की चिंता और नहीं बढ़ाना चाहती थी इसलिए चुपचाप परिस्थितियों से समझौता कर लेती है। निमेष कहीं ना कहीं निशि की मनोदशा समझ रहा था। फेरे के पश्चात विदाई भी निपट गई। निमेष और उसके माता पिता मुंबई में रहते थे

जबकि निशि का परिवार दिल्ली में बस गया था। पंडित जी ने कहा कि विदाई के पश्चात ही पगफेरे की रस्म भी कर दी जाए क्योंकि मुंबई से दिल्ली जल्दी ही आना संभव नहीं होगा। वैसे भी अभी का समय भी शुभ है। दोनों परिवारों को पंडित जी की बात ठीक लगी। 

निमेष ने भी मन ही मन ठान लिया था कि वो निशि के चेहरे पर मुस्कान वापिस लाकर रहेगा। पगफेरे के बाद जब सब निमेष को नेग देने लगे तब उसने कहा कि जब तक मेरी पहली रसोई नहीं होगी तब तक मैं ये नेग नहीं लूंगा। सब आश्चर्य से उसका मुंह देखने लगे तब वो हंसते हुए बोला कि बराबरी का ज़माना है जब लड़की को नेग अक्सर ससुराल में कुछ मीठा बनाने या पहली रसोई बनाने के बाद मिलता है

तो फिर वो लड़का होकर कैसे पीछे रह सकता है। आज वो भी अपनी ससुराल में अपनी पहली रसोई बनाएगा। उसकी ऐसी बातों से निशि के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। निमेष ने अपनी पहली रसोई की रस्म बखूबी निभाई। उसने स्वादिष्ट हलवा बनाकर सबका दिल तो जीता ही साथ साथ निशि को ये एहसास भी करा दिया कि ज़िन्दगी के हर कदम पर वो उसका साथ देगा।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। हर सिक्के के दो पहलू हैं अगर मयंक जैसे लोभी लड़के हैं तो निमेष जैसे स्त्री का सम्मान करने वाले नौजवान भी हैं। वैसे भी हमारे यहां तो कहा ही जाता है कि जोड़ी और संजोग ऊपर से बनकर आते हैं।

डा. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

#बेटियां ६ जन्मोत्सव

दितीय कहानी

1 thought on “पहली रसोई – डॉ. पारुल अग्रवाल  : Moral stories in hindi”

  1. Dahej jaisi kupratha se kayi zindagiya aur ghar barbaad hote hai…dono parivaar dahej lene aur dene ka tyag karde to zindagi aur parivar dono dharti per hi swarg dekh sakte hai.

Comments are closed.

error: Content is Copyright protected !!