“क्यों दिल बेकाबू हुआ जाता है, कौन है जो दिल में फिर से दस्तक देकर जाता है”
श्वेता ने जब से उनको अपने पति की मीटिंग में देखा था, घर पर आने के बाद उनका चेहरा आंखों से हट ही नहीं रहा! समय चक्र क्या इस तरह उसके सामने आकर खड़ा होगा, वह समझ नहीं पा रही! अकेले कमरे में बैठी अतीत की गलियारे में चली गई, लगभग 20 वर्ष पूर्व जब वह केवल 17 वर्ष की थी, उसने वहीं के कॉलेज में एडमिशन लिया था और और राघव अपनी बहन को छोड़ने वहां बस स्टॉपेज पर आया करते थे! पहली बार जब श्वेता ने उन्हें देखा मानो समय वहीं ठहर गया हो, धड़कन बेकाबू हो रही थी,
उसे समझ नहीं आ रहा यह क्यों हो रहा था! इससे पहले तो वह न जाने कितने लड़कों से मिल चुकी थी, पर जो कशिश राघव में थी वह उसे दीवाना किए जा रही थी! शायद यही पहली नजर का प्यार था! बस में बैठने के बाद पता चला कि वह लड़की जिसे राघव छोड़ने आए थे, उसका नाम निहारिका था और वह भी उसी के कॉलेज और उसी की क्लास में थी! राघव निहारिका का भाई था!
धीरे-धीरे श्वेता ने निहारिका से दोस्ती बढ़ाना शुरू कर दिया, दरअसल उसे तो राघव से मिलने के बहाने चाहिए थे! शायद राघव के दिल में भी यही हाल था , धीरे-धीरे राघव और श्वेता कब करीब आते चले गए पता ही ना चला, अब तो श्वेता को पूरी दुनिया में राघव के अलावा कोई अच्छा लड़का नजर नहीं आता था, यहां तक की ना उसे खाने-पीने, उठने बैठने और नींद का ही ध्यान रहता, बस ध्यान रहता तो सिर्फ खुद के सुंदर लगने का ताकि राघव उसको देखकर खुश हो जाए और इंतजार रहता उसे सुबह-सुबह का, जब राघव बस स्टैंड पर अपनी बहन को छोड़ने आए! यह मुलाकातें दोनों को अच्छी लगती थी,
राघव और श्वेता की मुलाकातें अब खतों के जरिए होने लगी और फिर पत्रों के जरिए दिल के उद्गार आदान-प्रदान होने लगे! धीरे-धीरे एकांत में मिलना अच्छा लगने लगा! निहारिका भी जब उसे भाभी कहती तो वह अपने आप में ही शर्मा जाति! राघव और श्वेता ने सुनहरी भविष्य की न जाने कितने सपने बुन डालें! धीरे-धीरे श्वेता और राघव और नजदीक होते चले गए, दोनों अपने प्यार को शादी के मंडप तक ले जाना चाहते थे!
किंतु राघव के पिताजी ने साफ मना कर दिया कि हम दूसरी जाति की लड़की से रिश्ता नहीं होने देंगे! जब राघव ने यह बात श्वेता को बताइए तो श्वेता का दिल टूट गया! उसने राघव से कहा.. तुमने जो मुझसे सारे वादे किए थे.. क्या वह सारे झूठे थे? दरअसल तुम और तुम्हारे पापा को कोई पैसे वाले घर की लड़की चाहिए, तो ठीक है..
तुम अपने पापा का मां मान रखो और जहां वह कहे वहां शादी कर लो क्योंकि मेरी भी शादी कहीं ना कहीं हो ही जाएगी! बस भगवान से दुआ करो हम जिंदगी में दोबारा कभी ना मिले! बस यह उनकी आखिरी मुलाकात थी, उसके बाद श्वेता और राघव को एक दूसरे के बारे में कुछ भी पता ना चला, किंतु समय चक्र देखिए…
अभी कुछ दिन पहले ही श्वेता के पति प्रदीप के ऑफिस में राघव ने ज्वाइन किया था और इसी खुशी में ऑफिस में छोटी सी पार्टी थी, जिसमें वह अपने पति प्रदीप के साथ गई थी! क्यों नहीं वह राघव को इतने सालों में भी भूल नहीं पाई, शायद प्यार का मतलब उसने राघव से ही सीखा था! आज भी क्यों दिल उसके लिए धड़क उठता है!
अगले दिन उसने राघव को एक कैफे में मिलने के लिए बुलाया और उसने राघव से कहा… राघव.. प्लीज तुम अपना ट्रांसफर यहां से कहीं और करवा लो, क्योंकि मैं तुमको इन 20 सालों में एक दिन के लिए भी नहीं भूल पाई हूं, किंतु अब मैं जब जब तुमको देखूंगी मैं तुमसे मिलने के लिए व्याकुल हो उठूंगी और शायद तुम भी! मैं अपने परिवार में बहुत खुश हूं और तुम भी अपने परिवार में बहुत खुश हो,
आगे ऐसी कोई भी नौबत ना आए की, किसी भी कारण से हम दोनों को ही शर्मिंदा होना पड़े! मैं तुमसे गुजारिश करती हूं कि तुम मेरी इस बात को मान लो! 15 दिन बाद प्रदीप ने आकर कहा ..श्वेता… तुम्हें पता है, मैंने तुम्हें राघव से मिलवाया था, पर पता नहीं क्यों… उसने अपना ट्रांसफर मुंबई वाली ब्रांच में करवा लिया और कहने लगा कि मुझे यहां का माहौल पसंद नहीं आ रहा और आज वह यहां से मुंबई जा रहा है! तब श्वेता मन ही मन कहने लगी.. राघव ..उस समय तुमने अपने पिताजी के दबाव में आकर मुझसे शादी के लिए मना कर दिया था किंतु आज तुमने मेरी बात मानकर मुझ पर बहुत एहसान किया है! मेरी नजरों में आज तुम्हारा सम्मान बढ़ गया है! और मैं तुम्हें तुम्हारी उसे गलती के लिए माफ करती हूं!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी प्रतियोगिता समय चक्र