अंतिमदर्शन.. – विनोद सिन्हा “सुदामा”

चारों ओर विषैली गंध फैली थी..भीड़ मुँह ढके सारा मंजर चुप चाप देख और सुन रही थी..परंतु कह कोई कुछ नहीं रहा था..बस एक दूसरे को शांत नज़रों से देखे जा रहा था… नगर पालिका की मुर्दा गाड़ी वर्मा जी के दरवाजे पे आकर लगी थी.. किसी ने वर्मा जी की पत्नी के मरने की … Read more

हिजड़ा कही का – बालेश्वर गुप्ता

#एक_टुकड़ा                         ओ सरस्वती जरा पिंकी को तो दे, उसे दूध पिला दूँ.   लाई – लाई, लो संभालो अपनी बेटी को, मुझे तो ये छोड़ती ही नही.     एक बात तो बता सरस्वती, तू मेरा इतना ध्यान रखती है, मेरी बच्ची को तो एक तरह से तू ही पाल रही है, मेरा तेरा क्या रिश्ता है, भला? … Read more

नहले पे दहला – कमलेश राणा

आज जिस कहानी से आपको रुबरु कराने जा रही हूँ,वह कहानी मैंने बचपन में कहीं सुनी थी,,, बहुत मस्त है,,,आप  भी सुनिये।   ठाकुर ब्रजराज सिंह के यहाँ किसी चीज की कोई कमी नही थी,,,,अपार धन सम्पदा के मालिक थे वो,,,बस कमी थी तो एक सन्तान की,,,,दोनों पति पत्नी ने पूजा पाठ से लेकर डॉक्टर … Read more

 कायापलट -प्रीती सक्सेना

#एक_टुकड़ा बेटी को  प्ले स्कूल से,, लिया, सब्जी खरीदकर,,, जैसे ही दरवाजे की घंटी बजाई,,, शलभ ने दरवाज़ा नहीं खोला,,, मुझे लगा,,, सो गए होंगे,,, दोबारा घंटी बजाई पर,,, कोई आहट ही नहीं,, दरवाज़ा अंदर से बंद,,, दिल घबराने लगा,, क्या हुआ,, शलभ दरवाज़ा क्यों नहीं खोल रहें,,आंसू,, बहने लगे,,, मुझे रोता देखकर,, मेरी दो  … Read more

नयी उड़ान – नीलम सौरभ

“शुभम क्या बोल रहा था फोन पर वैष्णवी!… इस बार तो आ रहे न वो लोग दीवाली पर??” लॉन में लैम्पपोस्ट के ऊपर बने चिड़िया के घोंसले को बरामदे में ईज़ी चेयर पर बैठे-बैठे देर से देख रहे थे समर प्रताप। पत्नी गरम चाय बना कर ले आयी थीं और आतुरता से पूछ रहे थे … Read more

तू भी बेटी बन जा-नीरजा कृष्णा

“अरी श्यामा, तेरी बहु को क्या हुआ है? सुना है महारानी जी की तबियत नासाज़ है और वो दिन रात आराम फ़रमा रही हैं।” श्यामा जी अपनी पड़ोसन के व्यंग वाणों को अनदेखा करती हुई बोली,”अरे कोई विशेष बात तो नहीं है पर कल नलिनी नाश्ते के लिए मँगोड़े बना रही थी,एक मँगोडा़ एकाएक फट … Read more

“तितलिया”-पूनम वर्मा

एक दिन रजनी अपनी चार साल की बेटी काव्या को डांट रही थी । मैंने कारण पूछा तो उसने कहा,  “काव्या अपने स्कूल में कुछ बोलती नहीं । और बोलेगी भी कैसे ? इसे तो सिर्फ भोजपुरी आती है । हिंदी तो बोलती ही नहीं ।” “तो क्या हुआ ? बच्चे को अपनी मातृभाषा का … Read more

जयंती -पुष्पा पाण्डेय

कभी जिन्दगी इस तरह एक इंसान से परीक्षा ले सकती है, विश्वास करना थोड़ा मुश्किल है। जयंति न किसी चलचित्र की नायिका थी और न ही किसी नाटक का किरदार निभा रही थी। वो एक छोटे शहर के जमींदार घराने में जन्मी सीधी-सादी पति का हाथ पकड़कर सड़क पार करने वाली सामान्य सी खूबसूरत महिला … Read more

पश्चाताप – विनय कुमार मिश्रा

मैं लेटा हुआ था कि तभी आहट सुन आँख खुल गई। लेटे लेटे अधखुली आंखों से देखा तो घर की सहायिका राधा की पांच साल की बिटिया थी। राधा अक्सर इसे लेकर ही आती है। उसका कोई है नहीं, शायद इसलिए। ये चुपचाप अपनी माँ के ही इर्द गिर्द रहती है। इधर कुछ दिनों से … Read more

स्वाभिमान – विनय कुमार मिश्रा

“पापा! जरा जा कर देखिए, बाथरूम से लेकर हॉल तक का, क्या हाल हुआ है” ऑफिस से घर पहुंचा ही था कि बेटा लिफ्ट के पास ही मिल गया “क्यों.. क्या हो गया?” “आपने उन्हें यहां रुकने को ही क्यों बोल दिया पापा? आप उन्हें कल ही भेज दीजिए..प्लीज” “बेटे बस हफ्ते दस दिन की … Read more

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