पागल अम्मा – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

अरे रे ये क्या कर रही हैं आप…?  पागल हो गई है क्या…? चुपचाप एक जगह पर बैठती क्यों नहीं ….कस के चींटी काटने वाले अंदाज में बाँह पकड़ कर पूजा के कमरे से खींचती हुई बिस्तर पर लाकर पटक दिया बहू हेमा ने…! 

अब बिल्कुल यहां से नही हिलेंगी … जब तक मैं ना कहूं ….एक बच्चे की भांति थरथर कांप रही थीं सास बुजुर्ग दमयंती ..।

         क्या हो गया भाभी , परेशान लग रही हैं किस पर नाराज हो रही थी.. घर में प्रवेश करते ही राधा (सहायिका) ने पूछा ….अरे क्या बताँऊ राधा …देख ना बिना नहाए धोए पूजा के कमरे में पहुंचकर भगवान को छू-छू कर प्रणाम कर रही थी ….राधा के अचानक पूछने पर थोड़ी सहमते हुए हेमा ने जवाब दिया… हेमा सोच रही थी शायद राधा ने कुछ (चिकोटी काटते) देखा तो नहीं है…।

       दो बेटों की माँ दमयंती पति रामप्रवेश के सरकारी नौकरी के दौरान कभी इसी घर में रानी बनकर रहा करती थीं…. रिटायरमेंट से कुछ समय पहले रामप्रवेश की मृत्यु हो गई थी…। अनुकंपा नियुक्ति में छोटे बेटे को नौकरी मिल गई थी , क्योंकि बड़ा बेटा पहले से ही नौकरी पेशा में था ….

शुरू शुरू में सब कुछ सामान्य चलता रहा धीरे-धीरे बहूओं के व्यवहार में फर्क आने लगा …अब दोनों भाई अलग-अलग रहने लगे थे और आपस में ये तय हुआ कि… 6 महीने माँ एक बेटे के पास रहेंगी और 6 महीने दूसरे बेटे के पास रहेंगी…!

       ये व्यवस्था चलती रही थी… 6 महीने से एक दिन भी क्या मजाल जो ज्यादा रह लें एक घर में  ….उनके पहुंचने से पहले ही उनका सामान दूसरे बेटे के घर पहुंच जाता था….

 हालांकि दमयंती जिस घर में शुरू से रहती थी वही रहना चाहती थी पर उनकी सुनता कौन …..खैर …

       राधा पोछा करते-करते दमयंती के कमरे में पहुंची …वह सिर्फ कमरा ही नहीं पूरा घर था दमयंती के लिए… उनका बिस्तर , कपड़ा , खाने का बर्तन… दमयंती के आवश्यकता से जुड़ी सभी वस्तुएं इस छोटे से कमरे में रखी होती थी…।

         धीरे से राधा ने पूछा , कैसी हैं अम्मा …? कांपते हुए पहले तो दोनों हाथ जोड़ा फिर धीरे से एक उंगली मुंह पर रखा मानो कह रही हों… कुछ मत बोल राधा …बहू सुन लेगी… फिर और शामत आ जाएगी मेरी तो जो होगी सो होगी तेरी नौकरी पर भी खतरा मंडरायेगा …

  दमयंती के गालों पर लुढ़के आंसुओं को पोछने की कोशिश की राधा ने…. दमयंती ने उसे रोकने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया राधा चौंक गई… उनके बाहों  से खून निकल रहा था… ।

      राधा को समझते देर ना लगी …हेमा ने कस के चींटी काटते हुए उन्हें कमरे में धकेला था उसी की वजह से वहां पर खून निकल  गया था…. ओह ये क्या…. राधा ने हाथ से इशारा कर पूछा…. दमयंती सिर्फ और सिर्फ चुप रहने का संकेत कर रही थीं…।

         तभी बाहर से आवाज आई… राधा ओ राधा ….हां आई भाभी …राधा को सासू माँ के कमरे में देर क्यों लग रहा है….  कहीं ……”चोर की दाढ़ी में तिनका”… हेमा ने तुरंत आवाज देकर राधा को बाहर बुला लिया…।

         वो क्या है ना राधा  ,आज अम्मा के नहाने का पानी रख देना… बगल में चाची के घर शाम को पूजा है तो वहां अम्मा को भी लेकर जाना है…. हां भाभी , वो चाची ने मुझे भी बुलाया है… बोली हैं थोड़ा प्रसाद वगैरह लगाकर बांटने में मदद कर दूं…।

          शाम को दमयंती को एकदम कड़क सूती सफेद जमीन पर हल्के प्रिंट वाली साड़ी पहनाकर हेमा हाथ पकड़ कर चाची की यहां पहुंची… दमयंती बुजुर्ग जरूर थीं पर नाक नक्श काफी आकर्षक था …!

आइए आइए अम्मा…. सभी ने दमयंती की विशेष आवभगत की… इस बीच हेमा भी सबके सामने बीच बीच में पूछ रही थी अम्मा ठीक तो लग रहा है ना… आपको ठंड तो नहीं लग रही है …खाना ले आऊँ क्या …? ऐसे न जाने कितने सवाल पूछ कर लोगों के सामने एक ऐसी आदर्श बहू की छवि जो सासू मां का विशेष ख्याल रखती है …बनाना चाह रही थी और वाकई लोग ऐसी गतिविधि देखकर हेमा की तारीफ भी कर रहे थे…।

    दूर बैठी राधा बस मन ही मन मुस्कुरा रही थी… हे भगवान कुछ लोग वाकई में अच्छे होते हैं और कुछ लोग हेमा भाभी जैसे अच्छे बनते हैं…।

     अगले दिन मौका देखकर राधा ने दमयंती से पूछा …अम्मा भैया को मालूम है ये कैसे लगा …उनके हाथ में लगे निकोटे (चींटी काटे) हुए निशान को दिखाकर राधा ने पूछा…

   नहीं नहीं…तू भी कभी मत बताना राधा.. बस इतना ही तो बोल पाई थी अम्मा और अम्मा ने कभी अपने बेटे से शिकायत भी नहीं की थी वो खुद कष्ट सहकर भी सोचती थीं.. मेरे बेटे बहू खुश रहे …हालांकि राधा स्वयं अम्मा का जितना भी बन पड़ता जरूरतें  पूरी कर देती थी …अम्मा तो बस एक ही टाइम रोटी खाती थी वो भी दो या तीन… रात में कभी खाना खाती ही नहीं थी… कहती थीं बूढी हो गई हूं ना.. अब हजम नहीं होता…

  जब भी मौका मिलता एक बात कहने से नहीं चुकतीं…. पता नहीं भगवान मुझे कब बुलाएंगे….

उनके इस एक वाक्य में न जाने कितनी पीड़ाएं , कितनी लाचारी, कितनी बेबसी छिपी होती थी.. ।

    एक राधा ही तो थी जो सब कुछ जानती थी फिर भी चुप रहती , करती भी क्या…

   देखो देवरानी जी, अम्मा को तुम्हारे घर भेज रही हूं…मुझे शादी में बाहर जाना है ….हेमा फोन पर बात कर रही थी ….दमयंती के कानों में ये बात पड़ते ही उनकी आंखों में आंसू बह निकले थे …इस घर से उन्हें विशेष लगाव था …शुरू से यहां रही थी…. तकलीफ सहकर भी यहां  रहना चाहती थी अम्मा …..!

         अरे दीदी अभी तो 6 महीने पूरे भी नहीं हुए हैं…. फिर ….??  हां हां मैं जानती हूं पर मुझे शादी में मायके जाना है तो तुम इस बार कुछ समय ज्यादा झेल को अम्मा को… अगले बार मेरे घर ज्यादा समय के लिए छोड़ देना फिर मैं झेल लूंगी …कहकर दोनों देवरानी जेठानी हंसने लगी…।

       दमयंती ने आंखें बंद की… दोनों  कोनों से आंसू टपक रहे थे …..राधा ने फोन पर हुई सारी बातें सुनी थी ….उसने दमयंती के आंसू पोछे और पतली सी चादर ओढ़ाकर लाइट बंद कर कमरे से निकल गई…।

   देखो हेमा …तुम्हारे मायके में शादी है , तुम चली जाओ …मैं यहीं रहूंगा.. मेरे ऑफिस से छुट्टी की परेशानी भी हो रही है ..और फिर अम्मा भी हैं तो मैं यहीं रहकर उनका भी देखभाल कर लूंगा और फिर राधा को बोल कर जाना उसे अलग से पैसे दे देंगे तुम्हारे ना रहने पर अम्मा का देखभाल कर देगी…

अरे ये क्या बात हुई आकाश… आप नहीं जाएंगे शादी में , सब क्या बोलेंगे और अम्मा कोई एक दिन की परेशानी थोड़ी ना है …ये तो जब तक रहेगीं तब तक ऐसा ही चलेगा और मैंने तो देवरानी जी से बात कर भी ली है… उनका सामान भी देवरानी जी के घर भिजवा दिया है… बस कल सुबह आप उन्हें छोड़ आना…।

      क्या कहा तुमने हेमा ….मां हमारे लिए परेशानी है … और तुम उनका सामान … ..हे भगवान ….मुझसे पूछे बिना तुम ये सब …… अच्छा ये बताओ तुमने अम्मा से पूछा है क्या… उनका अभी मन है भी या नहीं ,वहां जाने का …..!

       देखो हेमा….  घर में कलह ना हो और अम्मा की देखरेख अच्छे से हो सके.. तुम दोनों देवरानी जेठानी अपना कर्तव्य फर्ज समझ कर बारी-बारी अम्मा की देखभाल करोगी

तो अम्मा को भी अच्छा लगेगा और हम दोनों बेटों और बहूओं को सेवा करने का मौका मिलेगा और अम्मा भी दोनों बेटा बहू के पास रह पाएंगी…।

वरना अपनी मां को मैं अकेला भी रख सकता हूं… थोड़े सख्त आवाज में आकाश ने कहा..।

    चलो ठीक है ….अम्मा से मैं बात करके आता हूं ….अरे अम्मा अभी तक आप सो रही है , उठ जाइए शाम हो गई है …चादर हल्का सा उठाया कोई हल-चल नहीं …..जोर से आकाश की चीख निकल गई ….अम्मा….. और फूट-फूट कर रोने लगे आकाश….

 ” शायद अम्मा आज घर छोड़कर नहीं दुनिया ही छोड़कर चली गई थी “

क्या हुआ अम्मा को …आकाश की चीख सुनकर हेमा ने पूछा…. अम्मा नहीं रही…

      चारों ओर खबर फैल गई अम्मा अब नहीं रहीं …..बड़े से फोटो में माला लटकाए सभी फूल चढ़ाकर प्रणाम कर रहे थे …दोनों बहूएं भी रो रही थी…!

      लोग बातें कर मिली जुली प्रतिक्रिया दे रहे थे , जिसको जितना पता था अपने-अपने हिसाब से लोग बातें बना रहे थे …कोई कहता बहूएं बहुत अच्छी थी खूब सेवा की…. कुछ लोग कह रहे थे उनके लिए अच्छा हुआ बिस्तर पकड़ने से पहले चली गई… कोई कहता…. पर अचानक कैसे ….!

एक सुर में सुर मिलाते हुए दोनों बहुएं कहती ….अब अम्मा का दिमाग भी ठीक से काम नहीं करता था , कभी ये गिरा देती थीं , कभी कोई सामान कहीं रख देती थी …कुछ भी हरकतें करने लगी थी… पागलों की भांति….

भगवान उनकी आत्मा को शांति दे उनका आशीर्वाद हम सबको मिलता रहे….।

     राधा भी चुपचाप हाथ जोड़े बैठकर सब की बातें सुन रही थी ….आज वो चुप न रह सकी ….फोटो की ओर प्रणाम करके बोली ….नहीं अम्मा अब आप नहीं रोक सकेंगी मुझे…. 

क्या है ना भाभी …. ” जब घर में बहूएं  आ जाती हैं और उनका समय  (राज) आ जाता है …तथा सास , माएँ बूढ़ी पराश्रित हो जाती हैं तो वैसे भी वो पागल ही हो जाती है “….।

    और जिंदगी में किसी चीज की  ” कीमत ” चुकानी पड़े या नहीं पर कर्म की  ” कीमत ” जरूर चुकानी पड़ती है जैसा कर्म वैसा ही फल ….

      ठीक है भाभी अब मैं चलती हूं राधा की बातों का अर्थ शायद दोनों बहूएं  समझ चुकी थी ….फिर भी हेमा ने कहा राधा ब्रह्म भोज के दिन आकर खाना खा लेना …हम सबको पूण्य मिलेगा …  हां भाभी अम्मा के नाम का आखिरी भोजन जरूर करूंगी… राधा के आंखों में अम्मा का वो हाथ घूम रहा था … जिसमें की चिकोटी काटने से खून निकल गया था …फिर भी अम्मा ने किसी से ना बताने को कहा था …” धन्य थी अम्मा आप “

( स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित और अप्रकाशित रचना )

साप्ताहिक विषय – # कीमत

   संध्या त्रिपाठी

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