आजकल नौकरी की वजह से ज्यादातर युवा लोग अपने परिवार से दूर दूसरे शहर में रहते हैं।अधिकतर नौकरियां कंप्यूटर से संबंधित होती हैं तो ज्यादातर नवयुगल शादी के बाद रहने के लिए अपना आशियाना भी इन्हीं शहर में सोसायटी में ही बनाते हैं। वैसे भी महानगरों में मौहल्ले वाली संस्कृति खत्म हो रही है। ऐसी ही एक गुड़गांव की सोसायटी में राशि अपने पति अमन और 2 साल के बच्चे के साथ रहती थी।
राशि के पति कंप्यूटर में मैनेजर हैं,वो भी कंप्यूटर में ही कार्य करती थी पर बच्चा होने के बाद उसके ठीक लालन पालन के लिए उसने अभी काम से कुछ समय का ब्रेक लिया है क्योंकि उसके और उसके पति दोनों के ही परिवार के लोग देहरादून में रहते हैं। राशि आदत से बहुत ही मिलनसार, प्यारी और काफी सुलझी हुई लड़की है। इस सोसायटी में रहते हुए उसको एक साल होने को आया, काफी लोगों से उसकी जान पहचान भी हो गई पर किसी से भी बहुत ज्यादा घनिष्ठता नहीं थी।
लोग यहां अपने काम से काम रखते थे बस औपचारिक अभिवादन तक ही अपनेआप को सीमित रखते थे। राशि को भी वैसे तो छोटे बच्चे के साथ समय नहीं मिलता था पर वो कहीं ना कहीं अपने परिवार और परिवार के लोगों के अपनेपन की कमी को महसूस करती थी। राशि तो अगर सोसायटी की लिफ्ट में भी किसी से मिलती तो बहुत अपनेपन से मिलती। एक दिन ऐसे ही शाम के समय सोसायटी के पार्क में वो अपने बेटे को घुमाने लाई थी तभी उसने देखा कि नीचे वाले तल पर रहने वाली संध्या भी वहां थी। वो शक्ल से कुछ परेशान सी लग रही थी,उसकी हालत देखकर राशि से रहा नहीं गया।
राशि ने उससे उसकी परेशानी का कारण जानना चाहा तब संध्या ने बताया कि उसके सास-ससुर तीन चार महीने के लिए बाहर जा रहे हैं। उसका छोटा बेटा सिर्फ 3 महीने का है और बड़ा बेटा पहली कक्षा में पढ़ता है,उसकी बस सोसायटी के बाहर वाली सड़क पर बच्चों को छोड़ती है जहां से परिवार के सदस्य में से कोई उसको के ले लेता है। अभी तक तो सास या ससुर में से कोई ले लेता था पर अब उनको किसी काम से जाना पड़ रहा है।
अब जिस समय बड़ा बेटा स्कूल से वापस आता है उस समय भयंकर लू चल रही होती है, ऐसे में तीन महीने के छोटे बच्चे को साथ में ले जाना ठीक नहीं है। पति का ऑफिस भी काफी दूर है। समझ नहीं आ रहा सब कैसे होगा, राशि ने सुनते ही संध्या को बोला अरे ये तो इतनी सी बात है आप क्यों परेशान होती हो, आप उतने समय के लिए अपने छोटे बेटे को मेरे पास छोड़ देना आखिर हम पड़ोसी हैं। हम सब भी तो यहां एक परिवार हैं।
राशि की ऐसी बातें सुनकर संध्या को थोड़ा सुकून मिला।
अब संध्या जब बड़े बेटे को बस स्टॉप से लेने जाती तो अपने छोटे बेटे को राशि के यहां छोड़ देती। संध्या राशि को उसकी मदद के लिए बहुत धन्यवाद देती। ये सिलसिला अच्छे से चल रहा था पर एक दिन संध्या ने जब एक दूसरी पड़ोसन संगीता से राशि के अच्छे स्वभाव और सहायतापूर्ण रवैये के लिए तारीफ की तो उस पड़ोसन ने संध्या से कहा कि ये महानगर है यहां कोई बिना मतलब के किसी की मदद नहीं करता उसको तुमसे कुछ अपना भी काम होगा इसलिए उसने ऐसा किया होगा।
हो सकता है वो तुम्हारे बच्चे को घर पर रख आने वाले दिनों में डे केयर शुरू करना चाहती हो और तुमसे भी अपने बच्चे को रखने के कुछ फीस चाहती हो। संध्या के मन में संगीता की बातों से थोड़ा शंका का बीज उग गया। आज उसे अपने बेटे को राशि के पास छोड़ते हुए लगभग एक महीना हो गया था। आज जब उसने बेटे को छोड़ा तब राशि से साफ-साफ बात करने का निश्चय किया।
उसने राशि से स्पष्ट शब्दों में पूछा कि बेटे को एक महीने से रखने की वो कितनी फीस लेगी, उसकी ऐसी बातें सुनकर राशि हतप्रभ रह गई। वो नहीं समझ पा रही थी कि संध्या की ऐसी बातों को वो क्या जवाब दे।पर फिर उसने बड़े शांति से संध्या को कहा कि उसने तो एक परिवार की तरह संध्या की मदद की।उसने ये मदद किसी लालच या पैसे के लिए नहीं की। उसने बचपन से ही अपने परिवार में सुना था कि कई बार जरूरत पड़ने पर एक अच्छा पड़ोसी रिश्तेदार से भी बढ़कर होता है।
उसकी ऐसी बात सुनकर संध्या को अपनी कही बात पर बड़ा खेद हुआ उसने राशि से माफी मांगते हुए कहा कि हम सब की जड़ें तो गांव और छोटे शहरों में बसती हैं पर आज बड़े शहरों और महानगरों में रहते हुए हम लोग रहन-सहन से नहीं स्वभाव से भी एकाकी हो गए हैं। किसी के अच्छे व्यवहार के पीछे भी हम उसका स्वार्थ समझते हैं। मुझे माफ कर देना। तुम्हारी एक-एक बात सही है,घर और संबंधियों से दूर होकर भी यहां हम ही एक-दूसरे का परिवार हैं।
दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी, मेरा मानना है कि कई बार घर से दूर रहने पर पड़ोस भी किसी परिवार से कम नहीं होता। माना समय बहुत खराब है पर हम किसी की अच्छाई के पीछे भी उसका कोई स्वार्थ समझें ये भी गलत है।एक दूसरे पर किया गया भरोसा और परेशानी के समय साथ ही हम लोगों को परदेस में भी अपनेपन की खुशबू का एहसास दिला सकता है।
डॉ. पारुल अग्रवाल,
नोएडा