पछतावा : संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

आज विवेक बहुत गुस्से मे था उसे खुद नही समझ आ रहा था वो गुस्से मे क्या कर जाये । पत्नी की अय्याशी के ढेरों किस्से सुने थे उसने पर कानो सुनी बातों पर विश्वास करने वालों मे विवेक नही था उसने हमेशा सुनी सुनाई बातों को एक कान से सुन दूसरे से निकाल दिया था ! फिर आज ऐसा क्या हुआ कि विवेक गुस्से मे है क्या आज उसने खुद अपनी आँखों से कुछ देख लिया , या फिर विवेक के गुस्से का कारण कुछ और है ?..इन सब सवालों के जवाब आपको मिलेंगे पर उससे पहले आपको विवेक और उसकी पत्नी नताशा के अतीत मे जाना होगा । 

मल्टिनेशनल ऑफिस मे इंजीनियरिंग के पद पर था विवेक और नताशा बैंक मे नौकरी करती थी । एक दिन यूँही दोनो शेयरिंग कैब मे टकरा गये । क्योकि विवेक का ऑफिस और नताशा का बैंक एक ही इलाके मे था और दोनो ही शेयरिंग कैब करते थे तो आज अचानक दोनो एक दिन के लिए हमसफर बन गये पर सफर के दौरान दोनो का परिचय हुआ तो अब रोज मुलाक़ात भी होने लगी क्योकि दोनो एक की कर्मस्थली पास पास थी तो दोनो मिल ही लेते थे।

फिर दोनो साथ साथ कैब मे भी जाने लगे । क्योकि पहले नताशा का घर आता था फिर विवेक का तो वो विवेक का स्टॉपेज डाल कैब करने लगी । धीरे धीरे दोस्ती प्यार मे बदल गई और एक दिन के हमसफर बनने से शुरु हुई कहानी जिंदगी भर के साथ पर पहुंच गई । क्योकि दोनो के माता पिता इस विवाह के लिए तैयार थे तो चट मँगनी पट ब्याह हो गया और नताशा विवेक की पत्नी बन कर आ गई । 

अब जब रिश्ता जुड़ा तो कुछ जिम्मेदारियां भी बढ़ी । स्वछंद नताशा को ये जिम्मेदारियां रास नही आई और अक्सर दोनो मे झगड़े होने लगे ।

” नताशा तुम सुबह जल्दी उठकर थोड़ा मम्मी के साथ खाना वाना बना लिया करो वो अकेले काम करे क्या अच्छा लगता है !” विवेक ने उससे कहा।

” क्यो मेरे आने से पहले तुम्हारी मम्मी अकेले खाना नही बनाती थी ? तब तुम्हे अच्छा लगता था पर अब नही ऐसा क्यो ?” नताशा ने झट से पूछा। 

” नताशा अब तुम आ गई हो इस घर की बहू तो उन्हे भी थोड़ा आराम मिलना चाहिए ना !” विवेक बोला।

” बहू हूँ नौकरानी नही ..फिर मुझे कौन सा आराम मिलता है सारा दिन ऑफिस मे खटती ही हूँ ना मैं भी ।” नताशा गुस्से मे बोली।

” नताशा अपने काम करने से कोई नौकरानी नही हो जाता है घर सबका है तो सहयोग भी सबका होना चाहिए ।” विवेक भी थोड़े गुस्से मे बोला। 

” चिल्लाओ मत मुझपर मैने अपने घर मे काम नही किये तो यहाँ क्या करूंगी । अगर तुम्हारी मम्मी को इतनी परेशानी है तो नौकर जो लगा दो घर मे !” नताशा तुनक कर बोली।

” बर्तन सफाई को नौकर है पर मम्मी को रसोई के काम किसी ओर से करवाने पसंद नही ! तुम उनकी मदद कर दोगी तो क्या हो जायेगा !” विवेक ने भी उसे उसी टोन मे बोला।

बस इस बात का ऐसा बवाल मचाया नताशा ने और अपना सामान ले मायके आ गई अपने और विवेक और उसके  माँ बाप पर दहेज़ का केस डाल दिया। विवेक बेचारा समझ नही पा रहा था उसने नताशा से शादी करके क्या गलती कर दी। नताशा ने अपना केस वापिस लेने की एक ही शर्त रखी कि वो अपने माँ बाप से अलग रहेगा वरना वो उन सब को जेल की चक्की पिसवा कर रहेगी । 

मजबूर होकर विवेक के पिताजी ने उसे समझा कर अलग घर लेने को बोल दिया क्योकि इस उम्र मे ना तो वो जेल जा जिल्ल्त की जिंदगी जीना चाहते थे ना बेटे के लिए ऐसा सोच सकते थे । अंततः नताशा की जीत हुई और वो सास ससुर से दूर बेपरवाह जिंदगी जीने लगी । 

इधर विवेक तो अपने माता पिता से दूर हो मानो टूट सा गया । समझौते से जुड़ा रिश्ता वैसे भी पहले की तरह तो हो नही सकता था पर नताशा को इसकी परवाह नही थी वो अपनी जिंदगी स्वछंद हो जी रही थी अब ना कोई रोक टोक थी ना कुछ कहने सुनने वाला यही जिंदगी तो चाहती थी वो इसलिए ही उसने जरा सी बात को तूल दे इतना बड़ा हंगामा किया था। 

अब नताशा देर रात तक पार्टी कर घर आती । घर मे काम करने को नौकरानी रख ही ली थी उसने तो जिम्मेदारी कुछ थी नही उसपर । घर से ऑफिस , ऑफिस से क्लब और क्लब से शराब के नशे मे धुत घर आना यही दिनचर्या सी हो गई थी उसकी । बीच बीच मे विवेक ने अपने दोस्तों या जानने वालों से ये भी सुना कि नताशा किसी और के साथ घूमती है पर विवेक ने होगा कोई दोस्त बोल बात वही खत्म कर दी लेकिन वो नताशा के यूँ देर रात घर आने से परेशान था।

” नताशा तुमने जो चाहा वो पाया अब कम से कम घर तो समय से आ जाया करो तुम , यूँ देर रात शराब के नशे मे आना क्या सही है कल को कुछ ऊंच नीच हो गई तो ?” एक दिन हार कर विवेक ने उसे समझाया।

” तुम और तुम्हारे पुराने ख़्यालात कभी नही बदलेंगे । अपने माँ बाप से दूर तो तुम आ गये पर उनकी सोच साथ ले आये । ये पार्टी , क्लब ये मॉर्डन जमाने का हिस्सा है । मैं जिंदगी को भरपूर जीना चाहती हूँ और आशा करती हूँ तुम इसमे रूकावट नही बनोगे वरना मैं क्या कर सकती हूँ ये तुम जानते ही हो !” नताशा लगभग धमकी देने वाले अंदाज़ मे बोली और अपना पर्स उठा , ऊँची हील खड़काती निकल गई वहां से। विवेक समझ नही पा रहा था उसने नताशा से शादी कर क्या गलती कर दी । शादी से पहले तो वो नताशा के इस पहलू को जान ही नही पाया था । 

अब विवेक ने नताशा को कुछ भी कहना बंद कर दिया एक किस्म से वो समझौते का रिश्ता निभा रहा था बस क्योकि नताशा उसे तलाक भी नही देना चाहती थी । विवेक ने अपने हालातो से समझौता भले कर लिया था पर वो अंदर ही अंदर टूट सा रहा था इसी कारण वो खुद भी देर से घर आने लगा था । दोनो के प्रेम विवाह को एक साल होने को था पर अब प्रेम तो रहा नही था । 

आज विवेक ऑफिस के बाद यूँही सड़को पर घूम रहा था और अपनी शादीशुदा जिंदगी के बारे मे सोच रहा था ” क्या सोच मैने नताशा से शादी की थी और देखो क्या हो गया । पहले हम मे कितना प्यार था पर अब एक दूसरे से बात किये भी कई कई दिन बीत जाते है । क्या ऐसे ही जिंदगी कटेगी ? नही नही मैं आज ही नताशा से बात करूंगा , उसे अपने प्यार की दुहाई दूंगा वो जरूर समझ जाएगी ..आखिर वो भी तो मुझसे प्यार करती है तभी तो मुझसे तलाक भी नही लेना चाहती !” ये सब सोचते हुए उसने आज समय से घर पहुंच नताशा से बात करने की सोची ..उसने नताशा के लिए उसकी पसंद के फूल खरीदे और घर पहुंचा । घर खुला देख वो एक सुखद एहसास से भर गया मतलब आज नताशा भी जल्दी घर आ गई थी ।

पर जैसे ही वो घर मे घुसा मानो उसकी दुनिया , उसके सपने सब उजड़ गये ..नताशा उसका प्यार , उसकी बीवी किसी और के साथ बैठी शराब के जाम छलका रही थी । फूलों का गुलदस्ता खुद ब खुद उसके हाथ से फिसल गया ।

” नताशा …..!!! वो गुस्से मे चिल्लाया । 

” विवेक तुम …तुम यहां क्या कर रहे हो ?” विवेक को देख नताशा सकपका सी गई उसे शायद उम्मीद नही थी कि विवेक इस समय घर आ जायेगा ।

जी हां आज विवेक ने खुद अपनी आँखों से नताशा को किसी और के साथ देख लिया था वो भी अपने ही घर मे इसलिए वो गुस्से मे अपना आपा खो रहा था। उस वक्त दोस्तों की बात ना मानना शायद विवेक की भूल ही थी तभी नताशा इतनी आगे बढ़ गई थी ।

” ये मेरा घर है और तुम मुझसे पूछ रही हो मैं यहां क्या कर रहा हूँ । पूछना तो मुझे चाहिए ये कौन है और यहाँ क्या कर रहा है मेरी बीवी के साथ ?” विवेक शब्दों को चबाते हुए गुस्से मे बोला। 

” ये सिर्फ मेरा दोस्त है तुम खामखा गुस्सा हो रहे हो !” नताशा विवेक के पास आती हुई बोली। 

” नही दूर रहो मुझसे … वरना मैं नही जानता मैं क्या कर जाऊंगा .. बहुत समझौते किये मैने तुमसे प्यार करने की कीमत मे पर अब नही … अब कोई समझौता नही होगा !” विवेक चिल्लाया।

” समझौते तुमने क्या समझौते किये समझौते तो मैं कर रही हूँ तुम जैसे इंसान के साथ जिंदगी गुजार कर जिसकी सोच पिछड़ी हुई है .. आज के जमाने मे मर्दों से दोस्ती कोई बड़ी बात नही पर तुम्हारी सोच गलत है , तुम गलत हो  फिर भी तुम्हारे साथ निभा रही हूँ मैं !” नताशा अपनी गलती पर पर्दा डालने को विवेक पर ही इल्जाम लगाती चिल्लाई ! उसके साथ बैठा आदमी चुपचाप दोनो को देख रहा था। 

” अच्छा तुम समझौते कर रही हो … ठीक है आज से सब समझौते खत्म …आज से ये समझौते का रिश्ता ही खत्म । रहो तुम अपनी आधुनिक सोच के साथ मैं अपनी पिछड़ी सोच मे खुश हूँ !” ये बोल विवेक वहाँ से जाने लगा।

” नही तुम ऐसे मुझे छोड़ कर नही जा सकते , मैं …मैं तुम्हारे खिलाफ केस कर दूंगी  !” सकपकाई नताशा धमकी पर आ गई । 

” अच्छा …ठीक है कर दो केस मुझे पता था कुछ ऐसा ही होगा यहाँ इसलिए मैने घर आते ही तुम्हारे माता पिता को फोन कर दिया था वो बस आते ही होंगे !” विवेक के इतना बोलते ही बाहर गाडी रुकने की आवाज़ आई और कुछ ही सेकेंड मे नताशा के मम्मी पापा दरवाजे पर नज़र आये । 

” हमें तुमसे ये उम्मीद नही थी नताशा .. तुमने तो हमारा शर्म से सिर नीचा कर दिया !” नताशा की मम्मी ने आते ही उसे चाँटा मारते हुए कहा। इतने मे नताशा के साथ आया आदमी वहाँ से चुपके से खिसक लिया।

” मम्मी आप लोग गलत समझ रहे हो ये विवेक तो मुझे खुद परेशान करता है !” नताशा झूठे को रोती हुई बोली।

” बस करो कितना नीचे गिरोगी तुम यहाँ के हालात , तुम्हारे मुंह से आती शराब की बदबू और वो आदमी सब बयान कर रहे है कौन सही कौन गलत … आज के बाद तुम्हारा और हमारा कोई रिश्ता नही समझी तुम !” नताशा के पिता गुस्से मे बोले। 

नताशा ने उन्हे बहुत समझाने की कोशिश की पर वो उससे सब रिश्ते तोड़ चले गये । विवेक ने नताशा से तलाक का केस डाल दिया और इसमे नताशा के माँ बाप ने भी उसका साथ दिया क्योकि वो अपनी बेटी की हरकत से वैसे ही शर्मिंदा थे विवेक को आसानी से तलाक मिल गया नताशा ने तलाक के एवज मे मोटी रकम भी विवेक से लेनी चाही पर क्योकि गलती नताशा की थी और वो खुद कमाती भी थी तो ऐसा हुआ नही । अब विवेक अपने माता पिता के पास लौट आया । और जिसके लिए नताशा ने ये सब किया उसने भी नताशा से मुंह मोड़ लिया ये कहते हुए कि जो अपने माँ बाप , पति की नही हुई मेरी क्या होगी । आज नताशा बिल्कुल अकेली है अपनी आधुनिकता और स्वछंदता के साथ । उधर विवेक के माता पिता ने उसकी शादी एक गरीब घर की लड़की से कर दी । विवेक अपनी जिंदगी मे खुश है क्योकि उसकी पत्नी ने नताशा से मिले जख्मो पर अपने प्यार और अच्छाई का मरहम जो लगा दिया । 

दोस्तों पति पत्नी का रिश्ता प्यार के साथ सम्मान और वफादारी भी मांगता है अगर इनमे से किसी भी चीज की कमी हो तो रिश्ता टूटते देर नही लगती फिर चाहे गलत कोई हो । शादी के नाम पर एक दूसरे को मानसिक तनाव देना , उन्हे अपनों से ही अलग कर देना , धमकी देना सरासर गलत है । दिल से बने रिश्ते दिल से ना निभाए जाये तो तन्हाई ही हाथ आती है जैसे नताशा आज तन्हाई झेल रही है और अपने किये पर पछता रही है । 

#समझौता अब नही 

संगीता अग्रवाल

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