पाप का घड़ा – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

रघु एक छोटी फर्म में लेखाकार  का काम करता था। वह बहुत ही मन लगाकर ईमानदारी से अपने काम को अंजम देता था। काम चोरी, हेराफेरी से उसे सख्त नफरत थी । फर्म मालिक सेठ गोवर्धनदास जी उसके काम  से बहुत प्रसन्न थे। वह स्वाभिमानी एवं मेहनती लड़का था। उसे किसी की टोका टाकी अपने काम में  पसंद नहीं थी।

वह अपने काम  में अन्य प्रकार का दखल भी किसी का स्वीकार नहीं करता था किन्तु मुनीम जी जो उस कारोबार की देख रेख करते थे उन्हें वह फूटी आंख नहीं सुहाता था  कारण वह उनके  मनमुताबिक कागज़ों में हेराफेरी करके पैसे बचाकर उन्हें नहीं देता था। जबकि उससे पहले यहां काम करने वाला

व्यक्ति उनके हिसाब से काम करता था।जब चोरी पकड़ी गई तो सारा इल्जाम उस पर डालकर मुनीम जी साफ बच गए और उसकी नौकरी चली गई।इस घटना के बाद से सेठ जी का भरोसा मुनीम जी पर कुछ ज्यादा ही हो गया, और अब वे इस भरोसे का पूरा फायदा उठाना चाहते थे किन्तु 

 रघु उनकी राह का रोडा बन गया। इसीसे क्षुब्ध  होकर वे समय असमय किसी  के भी सामने उसे बेइज्जत करने से नहीं चूकते। वे अपने मन की खुन्नस इस तरह उसे अपमानित कर निकालते ।शुरु में तो कुछ समय तक रघु ने उनकी  उम्र का लिहाज कर उनकी ज्यादतीयां सहीं किन्तु जब पानी सिर  से  ऊपर निकल गया

और उन्होंने नीचता की सारी सीमाएं पार कर दीं तो एक दिन विस्फोट हो गया। रघु ने भी उन्हें पलटवार कर कुछ बोल दिया उसने यह भी कह दिया कि मैं ऐसी नौकरी  को लात मारता हूं जहाँ मुझे आपने  आत्म सम्मान को गिरवी रख  कर काम करना पडे अतः आप क्या धमकी दे रहे हो

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मुझे नौकरी से निकलवाने की में स्वयं ही त्याग पत्र देकर ये नौकरी छोडता हूं । मुझे अपनी प्रतिष्ठा से समझौता कर ऐसी नौकरी नहीं करनी। जाकर दस मिनिट में वह त्यागपत्र लिख कर लाया  और मुनीम जी को थमाते बोला ये लो मेरा त्याग पत्र कल से किसी और को रख लो में नहीं आऊंगा।

मुनीम जी  तो यही चाहते थे उनके  मन की   मुराद इतनी आसानी  से पूरी हो जाएगी उन्होंने कभी न सोचा था। 

अब उन्होंने रघु के त्यागपत्र देने की बात

सेठ जी को खूब नमक मिर्च लगा कर बताई और बोले अच्छा हुआ जो नौकरी खुद ही छोड़ गया न  तो ढंग से  काम करता था न  कोई बात सुनने को तैयार ही रहता था। बस अपनी ही चलाता था।

इस बार मुनीम जी की बात सुनकर सेठजी का माथा ठनका और उन्होंने कुछ सोच-विचार कर मुनीम जी से कहा कि एक बार मैं उससे बात करना चाहता हूं।

तब मुनीमजी बोले-छोटा मुँह बड़ी बात मालीक आप उससे न मिले तो ही अच्छा है वह बहुत ही बदतमीज है उसने कल मुझसे क्या क्या नहीं कहा आपसे भी कुछ उल्टा सीधा बोल दिया तो  क्या आपको अच्छा लगेगा।

यह सुन उन्हें जाने की कह सेठजी सोचने लगे जरुर कुछ तो दाल में काला है मुनीमजी  क्यों नहीं  चाहते कि मैं उससे मिलूं । 

तब उन्होंने एक अपने विश्वस्त व्यक्ती को बुला कर कहा  तुम रघु से  कहकर  आओ शाम को जाने से पहले  मेरे से  मिलकर जाए।

शाम को छुट्टी होने  के बाद वह उनके केबिन में  आया और  बड़े  अदब  से उन्हें  नमस्कार कर बोला सर आपने मुझे बुलाया। 

सेठजी उसे त्याग पत्र दिखाते बोले- यह सब क्या है।

सर मेरी मजबूरी है कि मुझे यह देना पड़ा। जब तुम मेरे पास काम मांगनेआये थे तब तुमने कहा था कि तुम्हें काम की बहुत आवश्यकता है। क्या मैं जान सकता हूँ कि पाँच महिने में ही  ऐसा क्या हो गया कि तुम्हें काम की जरूरत नहीं रही और तुम नौकरी छोड रहे हो।

सर मुझे काम की आज भी उतनी ही आवश्यकता है किन्तु  मजबूरीवश यह काम छोड़ रहा हूं ।

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 क्या मैं तुम्हारी मजबूरी जान सकता हूं।

सर — कह वह चुप हो नीचे की ओर देखने लगा ।

चुप क्यों हो गये ऐसी क्या बात है जो तुम बताने में इतना हिचक रहे हो तुम अपना काम मेहनत और ईमानदारी  से कर रहे थे मैं तुम्हारे काम से संतुष्ट था फिर एका-एक यह त्यागपत्र । 

सर सोच रहा हूं कि क्या आप मेरी बात सुन कर यकीन करेंगे।

क्यों नहीं यदि बात में सच्चाई होगी 

सर  मेरी मेहनत और ईमानदारी ही सबसे बडी अड़चन बन गई। रोज-रोज सबके सामने अपमानित होने से अच्छा है काम ही छोड़ दिया जाए। जहाँ काम के लिए मान-सम्मान को गिरवी रखना पडे ,सर वहाँ कैसे कोई स्वभिमानी व्यक्ति कार्य कर सकता है।

साफ-साफ बताओ कौन तुम्हें अपमानित करता है एक क्षण वह चुप हो सोचता रहा कि बताऊँ  या नहीं।

तभी सेठजी की कडक आवाज उसके कानों में पड़ी रघु मैं तुमसे कुछ पूछ रहा हूँ। बोलते क्यों नहीं। 

सर हिचकिचाते हुए बोला मुनीम जी ।

क्या कहा मुनीम जी,भला वो ऐसा क्यों करेंगे ।

सर उन्होंने मुझसे से कागजों के हिसाब में हेराफेरी करने को कहा,मना किया तो वे नाराज हो गए और रोज ही सबके सामने    अपमानित करते हुए कुछ भी सुना देते हैं। अब में इतने दिनों में परेशान हो गया तो मैंने सोचा कि नौकरी तो और कहीं मिल ही जाएगी किन्तु मैं अपने सम्मान के साथ  समझौता नहीं  करुंगा। जिस बात को मानने के लिए मेरा दिल गवाही  न  दे वह में कैसे कर सकता हूं ,सो इसीलिए मैंने त्यागपत्र देना ही उचित समझा। 

सेठ जी को उसकी बातों में सच्चाई की झलक दिखी बोले अभी तुम्हें एक हफ्ते और काम पर आना है उसके बाद निर्णय लेंगे।

वह जी सर आ जाऊंगा कहकर चला गया अब सेठजी ने गहनता से छानबीन करवाई तो सचाई सामने आ गई। उन्हें यह भी पता चल गया कि पहले वाला व्यक्ति  भी मुनीम  जी की साजिश का शिकार हुआ हुआ था अब उन्होंने बिना  देर किये मुनीम जी से त्याग पत्र मांग लिया और उनके स्थान पर सम्मान पूर्वक रघु को नियुक्त कर दिया। कहते हैं न कि पाप का घडा कभी तो फूटता ही  है।

शिव कुमारी शुक्ला 

28/8/24

साप्ताहिक बिषय****आत्म सम्मान

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