पांच गज की साड़ी – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

अब सीखूंगी मम्मी जी साड़ी पहनना…. मुझे भी साड़ी पहनना पसंद है ….! पता नहीं  “अब ” वो “कब” आएगा …..और चीज़े सीखने में तो बिल्कुल समय नहीं लगता…. बल्कि हमें पता भी नहीं चलता और बच्चे माहिर हो जाते हैं ….l

          हम तो जैसे माँ के पेट से ही सीख कर आए थे साड़ी पहनना ….और हमारे जमाने में कितनी छोटी उम्र में शादी हो जाती थी फिर भी हम साड़ी पहन लेते थे… और पहनते पहनते आदत हो ही जाती है….। अनुराधा जी रसोई का काम निपटाते निपटाते बड़बड़ा रही थी….

    अरे क्या हो गया श्रीमती जी ….ये अकेले-अकेले ही क्यों बड़बड़ा रही हो ….क्या फायदा होगा आपके इस तरह बड़बड़ाने से…. कोई सुनने वाला तो है नहीं  , आइए मुझे बताइए …. बात क्या है ….अभय , अनुराधा का हाथ पकड़ कर रसोई से बाहर बरामदे में लाकर सोफे पर एक और अनुराधा को बैठा दिये और दूसरी और खुद बैठकर अनुराधा का हाथ अपने हाथों में लेते हुए बोले …अब बताओ अनु क्या बात है…?

   देखिए अभय…. मैं कोई जोर जबरदस्ती थोड़ी ना कर रही हूं …मैं भी पढ़ी लिखी हूं ….आधुनिक विचारों वाली हूं…. मैं ये भी जानती हूं विचार अच्छे होने चाहिए , परिधान उतने मायने नहीं रखते … फिर हर रोज सुविधा युक्त कपड़े तो बच्चे पहनते ही हैं …..पर विशेष उत्सवों पर हमारे कुछ पारंपरिक रीति रिवाज , वेशभूषा ,पहनावा  …जो हमारी संस्कृति सभ्यता में चार चांद लगाते हैं और उनमें से साड़ी प्रमुख है…।

   और फिर हमारी पीढ़ी बहुत सारी ऐसी चीजों के लिए आखिरी होगी…. फिर मैं तो कुछ विशेष अवसरों पर ही अपेक्षा रखती हूं की भावी पीढ़ी …तौर तरीकों , मान मर्यादाओं , हमारी सभ्यता , संस्कृति , परिधान और वेशभूषा से अपनी पहचान पर गौरवान्वित हो सके…।

 जैसे , तुम होती हो… है ना अनु…. प्यार भरी नजरों से अभय अनु की ओर देखते हुए बोले और बात-बात पर मुझे , बच्चों को गर्व से अपनी सासू मां की ये बातें बताती रहती हो कि उन्होंने ऐसा किया और उन्हीं से मैंने ये सीखा है….।

     हां अभय … बच्चों को भी तो अपने बच्चों को बताने के लिए , विरासत में कुछ देने के लिए… होना चाहिए ना…।

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  बिल्कुल  , होना चाहिए ऐसा कहकर आज अभय और अनुराधा को वो पुराने दिन याद आ ही गए और बातों ही बातों में वे दोनों यादों का पुलिंदा खोल बैठे… उन यादों का जिसमें कुछ बातें तान्या ने बताई , कुछ समधन जी ने …अपने घर के बारे में बताईं थीं….

..तीन वर्ष पहले की ही तो बात है..

अरे बेटा , सो के उठी तो अपना बिस्तर ठीक क्यों नहीं की …..कम से कम रजाई तो मोड कर रख दिया होता …  अरे मम्मी अभी दोपहर में तो रजाई ओढ़ कर फिर से सोना ही है… फिर दोबारा खोलना पड़ेगा तो अभी मोड़ने से क्या फायदा .. कुछ समझा करो मां…. कह कर गले लगाती हुई तान्या ने मां तरुणा के गाल पर पप्पी ले ली…।

        ये क्या बात हुई …. ससुराल जाएगी ना.. तब पता चलेगा …चल किनारे हो… मुझे खाना बनाने दे… कहकर तरुणा ने तान्या को किनारे हटने को कहा…।

    किसको पता चलेगा मां…. मुझे या सासू मां को …..इस बार तान्या ने फिर से मां को छेड़ा …..तरुणा घुर कर तान्या को देखी…   सॉरी मां , सॉरी…. मैं तो मजाक कर रही थी… क्या बना रही है आज …अच्छा रुक मां , मैं पहले अपना बिस्तर ठीक करके आती हूं …कह कर तान्या कमरे में चली गई…।

     तरुणा मन ही मन मुस्कुरा रही थी…. वो जानती थी जब सर पर आता है तो बच्चे संभाल ही लेते हैं… फिर तान्या की तो रुचि भी है अच्छे-अच्छे , किस्म किस्म के खाना बनाने , खाने  और खिलाने की…!

    हां मां… अब बता क्या बना रही है… ये लौकी क्यों कीस रही है… रायता बनाएगी क्या …?  नहीं बेटा कोफ्ता बनाऊंगी …तनय लौकी की सब्जी नहीं खाता है और कोफ्ता खा लेता है , तो एक ही सब्जी से सब का काम चल जाएगा ….इसलिए आज कोफ्ता बनेगा ….।

    अच्छा तू जा मां…. आराम कर , आज मैं कोफ्ता बनाती हूं ….तान्या ने मां के हाथों से कलछी लेते हुए कहा…. अरे बेटा ध्यान से करना कहीं जल वल मत जाना ….कल ही लड़के वाले आ रहे हैं तुझे देखने ….हां मां कह कर तान्या थोड़ी शरमा गई…।

     आपस में सलाह मशविरा करने के बाद अनुराधा जी ने कहा ….हमें लड़की पसंद है ….फिर क्या था तरुणा ने बाॅल में रख रसगुल्ले को उठाया और कहा खुशी के इस मौके पर सब मुंह मीठा करें …..।

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    हां हां तरुणा जी ….पर एक मिनट रुकिए….. मेरी भी कुछ अपेक्षाएं हैं… सभी लोग आश्चर्य से अनुराधा जी की ओर देखने लगे …आकाश आश्चर्य  भरी नजरों से मम्मी की ओर देख रहा था कि…. सब कुछ पसंद आ गया फिर मम्मी क्या चाहती है ….,?

अनुराधा जी ने बिना देर किए तुरंत कहा….. शायद मेरे ये विचार तान्या को बेबुनियाद लगे….. पर कुछ मामलों में मैं अपने विचार स्पष्ट कर देना चाहती हूं…… अपनी संस्कृति , परंपरा , धर्म के प्रति थोड़ी सजग हूं और उन्हें भली-भांति पालन कर , निर्वाह कर मुझे बड़ी खुशी मिलती है….. मैं चाहूंगी कि मेरी बहू भी मेरे विचारों का सम्मान करें…।

और इस पर तान्या के विचार बिल्कुल उसके अपने होंगे किसी भी दबाव में वह कोई फैसला ना ले….

अब सभी की निगाहें तान्या की ओर थी …..तरुणा तो मन ही मन डर रही थी , हमेशा से हंसी मजाक में उल्टा सीधा जवाब देने वाली तान्या कहीं यहां भी कुछ उटपटांग ना बोल दे…. मुस्कुराकर तान्या ने बड़ी विनम्रता पूर्वक कहा …..आंटी जी लंबे समय से घर से बाहर रही हूं ….यदि आपकी अपेक्षाओं पर खरी ना उतरी तो माफ कीजिएगा पर मैं कोशिश पूरी करूंगी…. मुझे भी अपनी संस्कृति परंपरा रीति रिवाज से बहुत प्यार व गर्व है ….और मेरी हमेशा कोशिश रहेगी आपको शिकायत का मौका ना मिले…।

तान्या के इस जवाब से माहौल खुशनुमा हो गया था… सबसे ज्यादा खुश तो तरुणा थी , उसने झट प्लेट उठाया सबका मुंह मीठा कराया…।

शादी के बाद पहली दिवाली थी तान्या की …. बहु बेटे दिवाली से हफ्ता भर पहले ही घर आ रहे थे… दोनों नौकरी के कारण अन्य शहर में रहते थे ….बड़ी खुशी थी अनुराधा जी के घर में पहली बार बेटे बहू पूजा में शामिल होंगे ….।

      नई-नई दुल्हन अपने रीति रिवाज अपने घर के पूजा पाठ के तरीके सभी कुछ तान्या को सीखाने के लिए अनुराधा जी थोड़ी उत्सुक भी थीं…।

सवेरे से सभी लोग काम में व्यस्त थे… रंगोली बनाने से लेकर दीये सजाने तक के सभी कामों में ….इसी बीच सवेरे चाय पीते पीते सास बहू के बीच बातों का सिलसिला जारी रहा…. बातों ही बातों में अनुराधा जी ने कहा… तान्या , बेटा तुम शाम को पूजा के समय साड़ी पहन लेना अच्छी लगोगी…।

   लेकिन मम्मी जी मुझे तो साड़ी पहनना आता ही नहीं… बाप रे…  ” पांच गज की साड़ी ” पहनकर काम कैसे होगा….अच्छा आप पहना देगी क्या….?  अनुराधा जी से पूछ लिया…।

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  अरे बेटा , पता नहीं मुझे दूसरों को पहनाते बनेगा भी या नहीं…. रुको देखती हूं पार्लर वाली को बोलूंगी… त्यौहार का दिन है… यदि आ जाएगी तो वो पहना देगी…।

  पर तान्या ….कभी-कभी ना.. घर में हल्की साड़ी पहना करो ,  जिससे पहनना आ जाएगा ….बेटा फिर ऑफिस में भी कभी-कभार साड़ी पहनकर जाना अच्छा लगता है …मुझे तो साड़ी बहुत पसंद है …।

  हां मम्मी जी…. अब मैं भी साड़ी पहनने की कोशिश किया करुंगी…. तान्या के स्वीकृति से अनुराधा जी खुश हो गईं…।

   शाम को सज संवर कर तान्या साड़ी में बड़ी खूबसूरत लग रही थी… आसपास के लोग तारीफ किये जा रहे थे ….खैर , पहली दिवाली बहुत अच्छे से बीत गई ….बीच-बीच में बेटे बहू जब भी छुट्टियां होती आ जाते थे… अनुराधा जी बहुत खुश होती… बहू तो मानो उनकी सहेली ही मिल गई थी …जितना बन पड़ता … रसोई के कामों में बहू की मदद करना हो या किसी भी और मामले में ,अनुराधा जी हमेशा तैयार रहतीं…. बस वो चाहती थीं… सामने से उनकी बहू भी उनके रीति-रिवाज सलीके से सीख जाए…।

   समय बीतता गया …साल , दो साल बीत गए ….जब भी कोई पारिवारिक उत्सव होता ….अनुराधा जी चाहतीं उनकी बहू साज श्रृंगार करें …साड़ी पहने …पर हर बार तान्या का जवाब होता ….मम्मी जी मुझे तो साड़ी पहनना आता ही नहीं…।

अब महीने भर बाद ही दिवाली है… और इस दिवाली में सभी रिश्तेदार एकत्रित होने वाले हैं ….अभय का रिटायरमेंट जो इसी महीने होने को है… इसीलिए सभी परिवार वाले मिलकर दिवाली और रिटायरमेंट एक साथ उत्सव के रूप में मनाने की योजना बनाए हैं…।

जब से आकाश की शादी हुई है… आकाश और तान्या बहुत कम ही यहां आ पाते हैं ….आकाश तो आ भी जाता है , पर तान्या कम आ पाती है… आजकल लड़के लड़की बराबर है… तान्या का अपने मायके जाना भी उसकी इच्छा जरूरत और जिम्मेदारी है … और हो भी क्यों ना ….पर शादी की है तो ससुराल वालों की भी तो जिम्मेदारी होनी चाहिए ….

अरे ये मेरे मन में ऐसे विचार क्यों आ रहे हैं…. नहीं नहीं मेरी तान्या ऐसी बिल्कुल नहीं है…. वो तो मैं ही पागल हूं …..और अनुराधा अपनी सोच पर ही लज्जित हो हंस पड़ी…।

    सच में अनु बहुत अच्छी यादें हैं… और हमारे बच्चे भी बहुत समझदार हैं तुम चिंता मत करो कह कर अभय और तान्या मुस्कुरा पड़े…।

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जब भी बच्चों के घर आने का समय होता , अनुराधा जी की खुशियां बढ़ जाती …..आखिर एक महीना कैसे बीत गया पता भी नहीं चला ….बस एक-दो दिन के बाद आकाश और तान्या आने वाले हैं …..मैंने गुजिया पहले से बना लिया है ….पारंपरिक बेसन के लड्डू जो हर वर्ष मेरी सासू मां बनाती थीं…. वो तान्या के आने के बाद बनाऊंगी ….ताकि वो भी सीख जाए…।

  अरे बच्चों , तुम लोग …?  तुम सब तो कल आने वाले थे ना फिर आज…?  क्यों भाई अपना घर है हम कभी भी आ सकते हैं …..मम्मी सरप्राइज किस चिड़िया का नाम है आप जानती है ना …..आकाश ने मजाक किया …..हां बड़ा सरप्राइज वाला बना है…. और बेटा तान्या तू तो बता सकती थी ना ….जाओ मैंने तुम्हारा खाना भी नहीं बनाया है….. आकाश ने मना किया था मम्मी बताने को ……कोई बात नहीं हम बना लेंगे क्यों आकाश …..तान्या ने बातों बातों में आकाश से खाना बनाने में मदद की हामी  भरवानी चाही…।

   मम्मी जी एक मिनट इधर आइए ना… तान्या ने अनुराधा जी को अपने कमरे में बुलाया ….अटैची खोली दो साड़ी निकाली…. दोनों बिल्कुल एक जैसी थी …..क्रीम कलर की साड़ी गहरी चौड़ी , लाल बॉर्डर वाली ….बड़ी प्यारी …प्योर सिल्क की ….।

    मम्मी मैंने अपने लिए और आपके लिए बिल्कुल एक जैसी ली है…. दिवाली के दिन हम दोनों पहनेगें…. एक समान ….खुश होते हुए तान्या ने कहा …..अच्छा सच-सच बताइए मम्मी जी , पसंद आई साड़ी आपको…..?

     हां बेटा , बहुत सुंदर है , पर तू ..अरे मम्मी अपन इस साड़ी में पिनअप नहीं करेंगे ….फ्री पल्ला रखेंगे …मैंने सीख लिया है साड़ी पहनना…. आपका पल्ला मैं बना दूंगी …..अनुराधा हक्का-बक्का हो तान्या को देखे जा रही थी ….मुझे साड़ी पहनना नहीं आता , कहने वाली तान्या इतनी निपुण हो गई है कि…. कितने विश्वास से कह रही है मैं आपका पल्ला बना दूंगी ….खुशी से अनुराधा जी की आंखों में आंसू आ गए थे …।

    अरे ये क्या सीरियल की शूटिंग चल रही है भाई …. अनुराधा जी को भावुक होते देख अभय ने कहा… अच्छा तो सासु मां को खुश किया जा रहा है अनुराधा जी के हाथों में साड़ी देखते हुए अभय ने मजाक किया…।

    पापा जी एक मिनट आप भी रुकिए …..आकाश ने दूसरा पैकेट निकालते हुए कहा …..ये कुर्ता पैजामा आपके लिए …..बिल्कुल ऐसा ही मैंने अपने लिए भी लिया है…. अरे वाह , फिर तो इस बार सीनियर अनुराधा अभय व जूनियर तान्या आकाश ….बिल्कुल एक जैसे दिखेंगे ….।

      मम्मी कल मुझे आप वो बेसन के लड्डू भी बनाना सिखा दीजिएगा जैसा पूजा के लिए दादी जी बनाती थी…।

    हां बेटा जरूर , तू कितनी समझदार हो गई है… जब ” अपनों का साथ ” हो ना मम्मी जी तो अक्ल आ ही जाती है…. आकाश और अभय की ओर देखते हुए तान्या ने कहा…।

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अनुराधा जी के चेहरे की चमक बता रही थी जिन बच्चों को कमतर आंक रही थी ..वो कहीं ज्यादा सयाने निकले..। 

      अनुराधा जी ने अपने सास ससुर के फोटो के आगे मन ही मन धन्यवाद किया और  आशीर्वाद बनाए रखने की कामना की …..तो अनुराधा जी को ऐसा लगा जैसे सासू मां बोल रही हों…… बड़ा तू ही जैसे मेरी आदर्श बहू थी ….पूरा रीति रिवाज परंपरा का दायित्व सिर्फ तू ही निभा सकती है ….देखा मेरी नातिन बहू को…

सच में साथियों ….थोड़े प्यार से ,थोडी जिम्मेदारी से और थोड़ी समझदारी से ….हमें हमारे धर्म , संस्कृति , सभ्यता , रीति रिवाज , परंपरा ,पहनावा आदि का ज्ञान, महत्व भावी पीढ़ी को अवश्य कराना चाहिए… और भावी पीढ़ी को भी इन छोटी बड़ी सभी तथ्यों की जानकारी हासिल करने की जिज्ञासा ,  रूचि लालसा होनी चाहिए ताकि…. हमारी संस्कृति ,रीति रिवाज ,परंपरा , वेशभूषा ,परिधान ,विलुप्त ना हो ….वरन उनका पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण होता रहे…!

( स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित और अप्रकाशित रचना )

साप्ताहिक विषय : # अपनों का साथ

संध्या त्रिपाठी

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