औरतें हैं या CCTV कैमरा..? – रोनिता कुंडू 

देखिए..! आपकी मां क्या कह रही है..? मैं हमेशा उनसे लड़ने के बहाने ढूंढती हूं…!

शिप्रा ने अपने पति राहुल से कहा…

राहुल:   तुम दोनों अपनी लड़ाई में मुझे मत शामिल करो… आज मेरी छुट्टी का दिन है… उसे मैं तुम दोनों की लड़ाई में बर्बाद नहीं करने वाला….

आशा जी:   वाह बेटा…! तेरी पत्नी तेरी मां की बेइज्जती किए जा रही है और तुझे अपनी छुट्टी की पड़ी है…?

राहुल: ओफ… ओह..! मैं घर से ही चला जाता हूं.. इस घर में मुझे चैन नहीं मिलेगा…

यह कहकर राहुल घर से चला जाता है और वह शाम को घर लौटता है… यह सोच कर कि शायद अब तक तो सब ठीक हो गया होगा… और जैसे ही वह घर पर आता है…

शिप्रा:   अरे..! आ गए आप…?

राहुल:   हां आ गया…

क्या बात है..? बड़ी शांति है घर में…? सब सुलझ गया लगता है..? राहुल ने मन में सोचा…

फिर वह सीधा रसोई की तरफ गया और खाना खाने के लिए कुछ ढूंढने लगा… पर यह क्या..? खाना तो कुछ था ही नहीं… कुछ जूठे बर्तन सिंक में पड़े हुए थे…

शिप्रा को आवाज लगाते हुए राहुल पूछता है… आज खाना नहीं बनाया क्या..?

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शिप्रा: नहीं.. मां जी को मेरे हाथ का बना कुछ नहीं खाना था… इसलिए बाहर से आर्डर किया…

राहुल:   बाहर से…? पर मां को तो यह सब ऑर्डर करना नहीं आता..? उन्होंने क्या खाया फिर…?

शिप्रा:   उन्होंने भी वही खाया, जो मैंने खाया…

राहुल:   1 मिनट… एक मिनट… मां को तुमसे दिक्कत थी ना..? तो उन्होंने तुम्हारा आर्डर किया हुआ खाना खा लिया…?

शिप्रा:   हां… वह मेरे हाथ का बना नहीं खाती, बाहर से आया खाना, मैंने थोड़ी ना बनाया था… इसलिए खा लिया…

राहुल मन ही मन सोचता है…. यह अच्छी नौटंकी लगा रखी है दोनों ने…. आज तो इन दोनों की खबर लेनी ही पड़ेगी…

राहुल:   मां… मां… बाहर आइए… शिप्रा तुम भी आना जरा… उन लोगों के आने के बाद…

राहुल:   यह सब क्या है..? आप दोनों अपने फालतू की लड़ाई में मेरा दिवाला निकालने पर क्यों तुले हैं..?

आशा जी:   बस यही बात हमें तुमसे पूछनी थी….

राहुल हैरान होकर… मतलब…?

शिप्रा:  मतलब, यही कि आप जब बाहर खाए तो आप का दिवाला नहीं निकलता… हम खाए तो आपका दिवाला निकल जाता है… हम सास बहू हर दिन घर का खाती है, जो मिले उसी में खुश हो जाती है…. थोड़े में ही घर को चलाने की कोशिश करती हैं… ताकि आपका बजट ना गड़बड़ाए…. 1 दिन भी हम आपसे बाहर खाना खिलाने को लेकर चलने को कहते हैं, तो आप अपने खर्चों का पोथा लेकर बैठ जाते हैं…

राहुल:  हां..! तो वह सच ही तो है ना….? मेरे ऊपर कितना भार है, तुम लोग क्या जानो..?

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आशा जी: फिर अपने जीभ को भी तो लगाम दे ना..! घर से खाना ले जाकर उन्हें कुत्तों को खिला कर, खुद होटल में चिकन तंदूरी खा रहा है… और सोचता है हमें घर बैठे कुछ भी पता नहीं चलेगा… इसलिए अबसे हमने भी तय किया है, कि छुट्टी के दिन हम भी खाना बाहर का ही खाएंगे… हमारी लड़ाई तो एक बहाना था, ताकि तू घर से निकल जाए और हम बाहर के खाने का मजा ले… हम औरतों का क्या अच्छा खाने को मन नहीं करता..? क्या स्वाद सिर्फ तुम लोगों के पास ही होता है..? घर में जो भी बने, यह महाशय आराम से बाहर पेट पूजा करते रहे.. ऐसा थोड़ी ना होता है.. याद रख, अब भी जो तू ना सुधरा, हमारे पास बहानों के खजाने हैं…

राहुल: माफ कर दीजिए आप लोग मुझे… आप लोग तो महान है.. मैं तो सोचता था कि इस घर की औरतें तो कितनी भोली है… जो कहो वही मान जाती है… पर मुझे क्या पता था..? यह तो CCTV कैमरा है.. जो 24×7 निगरानी करती है.. अब से मेरा बाहर खाना बंद…

आशा जी और शिप्रा तो सोच रही थी कि राहुल उन्हें बाहर खिलाने की बात करेगा, पर यहां तो यही बाहर खाना बंद कर रहा है…

फिर आशा जी शिप्रा से कहती है… तुझे कहा था ना, यह कभी नहीं सुधरेगा… पर तुझे ही हमारा राज बताने की जल्दी पड़ी थी… चल.. चल.. हम दूसरी योजना बनाते हैं…

राहुल हंसते हुए: अच्छा मेरी देवियों… मेरी पूरी बात तो सुनो… आज से मेरा बाहर खाना बंद कहने से मतलब हैं मेरा अकेले बाहर खाना बंद… मैं तो मजाक कर रहा था… अब हर छुट्टी में तो नहीं पर कभी कदार चल चलेंगे, सभी चिकन तंदूरी खाने…

सभी हंस पड़ते हैं..

धन्यवाद
स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित
#मासिक अप्रैल
रचना 4

रोनिता कुंडू 

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