नीलेश आज अपने आपको बहुत धिक्कार रहा था क्योंकि उसे लग रहा था कि जीवन में कुछ भी बनने में वो कामयाब नहीं रहा।आज मुंबई में आए हुए पूरा एक वर्ष हो गया था। वो एक बड़ा गायक बनने का ख्वाब लेकर इस सपनों की नगरी में आया था। उसके एक सफल गायक बनने के सपने पर ही उसने भविष्य की बुनियाद रखी थी जो अब कहीं ना कहीं दम तोड़ती नज़र आ रही थी।
असल में कल एक बड़े फिल्म बैनर के संगीत निर्देशक का फोन आया था कि उनको नीलेश की आवाज़ बहुत अच्छी लगी है और वे उसके साथ रिकॉर्डिंग करना चाहते हैं।वो बहुत खुश था,आज उसे अपनी वर्षों की कठिन मेहनत और तपस्या का फल मिलने वाला था।उसके सपने पूरे होने वाले थे।पूरी रात उसकी आंखों से नींद गायब थी।
सुबह नियत समय पर तैयार होकर वो खुशी-खुशी फिल्म स्टूडियो में पहुंच गया था जहां प्रसिद्ध संगीत निर्देशक ने उसके गाने की धुन और गाने के लिए बुलाया था।थोड़े से इंतज़ार के बाद जब संगीत निर्देशक से उसकी मुलाकात हुई तो उन्होंने उसकी गाने की उसकी आवाज़ और धुन के साथ रिकॉर्डिंग की। उसकी बहुत तारीफ़ भी की फिर थोड़ी देर उसको बैठने के लिए बोला गया।
कुछ समय पश्चात उसे एक कॉन्ट्रैक्ट पढ़ने को बोला गया जैसे ही उसने कॉन्ट्रैक्ट पढ़ा, उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उस कॉन्ट्रैक्ट में साफ साफ लिखा था गाना की धुन और उसमें आवाज़ भले ही उसकी है पर उसमें नाम बड़े गीतकार और गायक का जायेगा।उसको अपने काम के पूरे पैसे दिए जायेंगे पर उसके बाद उस गाने और धुन पर उसका कोई हक नहीं रहेगा।उसको अभी तक भरोसा नहीं हो रहा था कि इस तरह का भी कोई कॉन्ट्रैक्ट होता है।
उसको लगा शायद उसके पढ़ने में कोई गलती हो रही है। उसने संगीत निर्देशक से बात की तो उन्होंने कहा कि ये सही लिखा है। नीलेश ने उनकी बात सुनकर बोला कि जब आवाज़ मेरी है, गाना मेरा है, धुन मेरी है तब आप इसे दूसरे के नाम कैसे कर सकते हैं ? इस पर संगीत निर्देशक ने बड़ी बेशर्मी से कहा,अरे तो इसमें कौन सी बड़ी बात हो गई, तुम्हें तुम्हारी मेहनत की पूरे पैसे तो दिए जा रहे हैं,
रही नाम की बात तो कौन सा तुम्हें यहां कोई पहचानता है जो मैं तुम पर दांव लगाऊं। ये बड़े बजट की फिल्म है, इसमें तुम्हारे जैसे नए कलाकार जिसका फिल्मी दुनिया में ना तो जानने वाला है, ना ही कोई पहचान है को लेने से, ये फिल्म रुपहले पर्दे पर आने से पहले से डूब जायेगी। ये सपनों की दुनिया है यहां नाम बिकता है नाम। उसके ऐसे शब्द नीलेश के कानों में हथौड़े की तरह बजने लगे।
नीलेश को ऐसा लगा कि जैसे आज कोई उसके गाने की बोली ना लगाकर कोई उसके स्वाभिमान की बोली लगा रहा हो। उसने उस कॉन्ट्रैक्ट पर साइन करने से मना कर दिया और कहा, मैं अपनी मेहनत को इस तरह दूसरे का नाम नहीं दे सकता। मेरे गीत और धुनें मेरी संतान की तरह हैं और कोई पिता अपनी संतान को कैसे बेच सकता है।
उसकी ऐसी बातें सुनकर संगीत निर्देशक बोला कि ऐसी बातें किताबों में ही अच्छी लगती हैं पर वास्तविकता उससे कोसो दूर है। वो आगे कुछ ना सुन सका। जब वो स्टूडियो से बाहर निकलने लगा तब उस संगीत निर्देशक ने एक व्यंगात्मक हंसी हंसते हुए बोला कि तुम्हारे जैसे हजारों लोग यहां संघर्ष करते हुए आते हैं और गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं।
तुम्हें तो फिर भी अपने गाने के लिए अच्छा पारिश्रमिक मिल रहा था, जिसे तुम ठुकरा रहे हो बहुतों को तो वो भी नहीं मिलता। माना सपनों की नगरी तो है पर जीने के लिए यहां हक़ीक़त का पैसा चाहिए। कल को जब तुम्हारे पास खाने के पैसे भी नहीं होंगे तब तुम्हारी अकड़ नीचे आयेगी। आज उसकी सारी उम्मीदें टूट कर बिखर गई थी।
वो भारी कदमों से चलते हुए पास के पार्क की एक बेंच पर अपने गिटार के साथ बैठ गया। आज जो भी कुछ हुआ उससे उसके सपनों की दुनिया पर गहरा तुषारापात हुआ था। उसे याद आ रहा था कि जहां एक तरफ उसके मध्यमवर्गीय पिता ने उसके सपनों की खातिर अपनी परिस्थितियों से समझौता किया था वहीं निधि उसकी प्रेमिका ने भी उससे शादी की खातिर अपने उद्योगपति पिता से एक साल का समय मांगा था। आज उसे अपने बीते हुए कल का एक एक पल याद आ रहा था।
निधि और नीलेश के सबसे अच्छे दोस्त की बहन की शादी में मिले थे। दोस्त की बहन निधि की सबसे अच्छी सहेली थी। उस शादी में हर कोई नीलेश के व्यवहार और महफ़िल में रंग जमाती आवाज़ का कायल हो गया था। निधि भी उसकी तरफ बरबस ही आकर्षित हो गईं थी।
हालांकि नीलेश ने निधि से दूर रहने और समझाने की बहुत कोशिश की थी क्योंकि उसके और निधि के रहन सहन के स्तर में बहुत फ़र्क था और वैसे भी नीलेश गायकी में अपनी पहचान बनाना चाहता था जिसमें संघर्ष का रास्ता थोड़ा कठिन था। पर निधि की जिद्द और प्यार के आगे उसकी एक ना चली थी। निधि की जिद्द को देखते हुए उसके पापा ने नीलेश को एक वर्ष का समय दिया था।
एक वर्ष बीतने को ही था। उधर उसके पापा की भी नौकरी के सिर्फ दो साल बचे थे फिर बहन की शादी भी करनी थी। कुल मिलाकर उसके पास गायकी में नाम कमाने का ये ही समय बाकी था। कल जब नामी फिल्म संगीत निर्देशक का फोन आया था तो उसको लगा था अब सारे सपनेँ पूरे हो जाएंगे पर आज फिर से वो अपने संघर्ष के धरातल पर वापिस आ गया था।
अभी ये सब उसके दिमाग में चल ही रहा था कि उसके हाथ में गिटार देखकर एक सज्जन उसके पास आए। उन्होंने उसे बताया कि पार्क में शाम को गायन का ओपन माइक कार्यक्रम है जिसमें नवोदित कलाकार को प्रोत्साहित करने हेतु आकर्षित पुरुस्कार हैं। अगर उसकी भी इस तरह के आयोजन में रुचि है तो वो भी इसमें भाग ले सकता है।
हालांकि नीलेश का दिल तो पहले ही बुझ चुका था वैसे भी अब किसी पुरुस्कार में भी उसकी इच्छा नहीं थी,पर वहां का संगीतमय नज़ारा देख कर वो अपनेआप को रोक नहीं सका। उसने जब गाना शुरू किया तो वहां उपस्थित लोगों में कोई भी ऐसा नहीं था जो तालियां बजाए बिना वहां रह पाया हो।
ऐसा लग रहा था मानो उसके दिल का दर्द उसकी आवाज़ में उतर आया हो। उसकी गायकी सुनकर जहां लोग तालियां बजाने और उसके लिए वोटिंग करने में व्यस्त थे वहीं वो परिणाम की प्रतीक्षा किए बिना भारी कदमों से अपनी मुंबई में छोटी सी खोली में रात बिताने के लिए निकल पड़ा था। आज का एक एक क्षण उसको भारी प्रतीत हो रहा था।
गाने के बाद उसको थोड़ा सुकून तो मिला था पर अभी भी उसको अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा था।अब उसने अगले दो तीन दिनों में अपने शहर वापसी का निर्णय ले लिया था। वैसे तो वो बहुत आत्मविश्वासी था पर उसके साथ कई जिंदगियां और भी जुड़ी थी। इधर वो अपने स्वाभिमान से भी समझौता नहीं कर सकता था।
ये सब देखते उसने सोच लिया था कि वो अपने चक्कर में निधि की ज़िंदगी बरबाद नहीं कर सकता वो कल ही उसको कहीं और शादी के लिए मना लेगा और पापा के रिटायरमेंट से पहले अपने शहर में ही नौकरी प्राप्त कर घर का सहारा बनने की कोशिश करेगा। इसी उधेड़बुन में कब उसको नींद आ गई पता ही नहीं चला।
अगले दिन मोबाइल की घंटी से उसकी आंख खुली। देखा तो फोन बज कर कट चुका था। निधि का ही फोन था। उस दिन उसके फोन पर कम से कम 75 मिस्ड कॉल उसके पापा,निधि और रिश्तेदारों की थी। वो किसी अनहोनी आशंका से घबरा ही रहा था इतने में दोबारा फोन की घंटी बजी। फोन निधि का ही था।
नीलेश के फोन उठाते ही और उसके कुछ बोलने से पहले ही निधि उसको गाना गाए हुए बधाई देने लगी। उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था। तब निधि ने कहा कि शायद उसने आज सुबह का समाचारपत्र नहीं देखा है फिर उसने कहा कि पहले आज का समाचारपत्र देखो फिर बात करती हूं। निधि के फोन रखते ही उसने अपने फोन पर ई-समाचार पत्र का लिंक खोला जिसके कला और संस्कृति वाले पृष्ठ पर उसकी फोटो के साथ साथ उसकी गायकी की प्रशंसा लिखी थी।
असल में जिस संस्था ने ओपन माइक गायकी कार्यक्रम का आयोजन किया था वो फिल्मों से जुड़ी काफ़ी बड़ी संस्था थी।ये संस्था इसी तरह के नवोदित कलाकारों को आम जनता की वोटिंग द्वारा चुनकर उनको आगे बढ़ाने का कार्य करती है। इस कार्यक्रम में नीलेश को प्रथम पुरुस्कार और उसके फलस्वरूप 5 लाख की नकद धनराशि प्रदान करने की घोषणा की गई थी।
साथ ही साथ नीलेश को छः महीने फिल्म संबंधी कार्यक्रम में गाने के साथ एक फिल्म का अनुबंध भी मिला था। नीलेश को ऐसा लग रहा था कि वो नींद में है और सपना देख रहा है पर इन सब बातों की पुष्टि आयोजक के अभी आए फोन ने भी कर दी थी। नीलेश ने सोचा ना था कि एक पार्क में आयोजित इस तरह का ओपन माइक कार्यक्रम जिनके बारे में अपने दोस्तों ने सुना तो था पर कम स्तर का आंकते हुए उनमें भाग नहीं लेता था एकदम से उसकी किस्मत बदल देगा।
आज उसे ये भी अनुभव हो रहा था कि मेहनत कभी व्यर्थ नहीं जाती। आज उसकी सच्ची लगन और स्वाभिमान ने उसके लिए नया ही रास्ता तैयार कर दिया था। आज वो समझौते के गर्त से भरे दलदल में गिरने से बच गया। वो अभी ईश्वर का धन्यवाद कर ही रहा था कि निधि के घरवाले,उसके घरवाले सब साथ वीडियो कॉल पर थे। दोनों ही परिवार वालों ने उनके विवाह की सहमति दे दी थी।।
दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी?आज की मेरी कहानी थोड़ा अलग है पर आजकल जगह जगह ये ओपन मंच और ओपन माइक कार्यक्रम होते हैं जो वास्तव में नई प्रतिभा को आगे आने में काफी सहायक सिद्ध हो रहे हैं। मेरी सोसाइटी से जुड़े पार्क के ऑडिटोरियम में भी आए दिन इस तरह के आयोजन होते हैं जिससे नूतन कलाकारों को नए अवसर प्राप्त होते हैं इसलिए घबराना नहीं चाहिए क्या पता किस मोड़ पर मंजिल मिल जाए।
वो कहते भी हैं ना
मंजिल तो मिल ही जायेगी, भटकते ही सही।
गुमराह तो वो है जो अभी घर से निकले ही नही।।
डॉ.पारुल अग्रवाल,
नोएडा
बहुत सुंदर प्रस्तुति आप इस प्रकार के लेख लिखती रहा करो जिससे लोगों का मार्गदर्शन बढ़ता है और युवा पीढ़ी को मार्गदर्शन में मिलता है
उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏
NICE STORY
जी…बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏