ओहदा – मीनाक्षी सिंह

बीटिया आ रही  हैँ पूरे एक साल बाद ! ए रे कल्लू ,ज़रा वही गर्मागरम गुलाब जामुन दे दे एक किलो !

हाँ जी वर्मा जी ,हम जानते हैँ हमारी बीटिया को कितने पसंद हैँ ! तुम नहीं भी ले ज़ाते तो  अपने नाती को देखते ही घर भिजवा देता !

भई अब तो लोग वो डिब्बा बंद बड़ी ब्रांड के गुलाब जामुन खाने लगे हैँ ,ये क्या तुम अभी भी वही कल्लू हलवाई के मैले काले हाथों से बने गुलाब जामुन पर ही टिके हुए हो !  अपने जैसे मध्यमवर्गीय परिवार में ब्याह दिया  हैँ क्या अंजू बीटिया को ?? दो साल बाद दिल्ली से लौटे पड़ोसी शर्मा जी बोले !

नहीं यार शर्मा ,वो बात नहीं हैं पर अंजू बीटिया को हमारे कल्लू के हाथ के बने ही पसंद हैँ ! उसकी ससुराल भी जाता हूँ तो पैक करवाके ले जाता हूँ ,नहीं तो क्लास लगा देगी बीटिया ! वर्मा जी हँसते हुए बोले !

तुम लोग मिडल क्लास ही रहोगे ! जमाना कितना बदल गया हैँ ! मेरी बेटी तो सड़क पर पैर भी नहीं रखती ! इतने रइश खानदान में ब्याहा हैँ उसे ! हर चीज एक फ़ोन पर हाजिर होती हैँ ! शर्मा जी मजाक उड़ाते हुए बोले !

वर्मा जी कुछ बोलने ही वाले थे की तभी एक बड़ी सी जैगुआर कार आकर रुकी ! उसमें से वर्मा जी की बीटिया ,आर्मी ऑफिसर की यूनीफोर्म पहने दामाद जी ऊतरे !

दामाद जी ने वर्मा जी,शर्मा जी और कल्लू हलवाई  के पैर छूये ! कल्लू हलवाई शर्म से सिकुड़ गए ! अरे आप इतने बड़े ओहदे पर ,हम नौकरों के पैर छूकर क्यूँ पाप चढ़ा रहे हैँ ! कल्लू अपने अंगोछे से आंसू पोंछते हुए बोले !

अरे आप इतने बड़े हैँ ,हमारे पिता समान हैँ ! अंजू आपको काका बोलती हैँ तो मेरे भी काका हुए ना आप !

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हमें पता था पापा आप यहीं मिलेंगे ,तभी आप दिख गए ! लाईये काका गुलाब जामुन दिजिये मेरे ! सभी लोग खड़े खड़े ही गुलाब जामुन का लुत्फ उठाने लगे !

शर्मा जी से गुलाब जामुन ना गटके ज़ा रहे थे ,ना बाहर निकाले जा रहे थे !! जिस जैगुआर के सपने शर्मा जी  देखते थे ,आज वो उनके सामने खड़ी  उन्हे मुंह जो चिढ़ा  रही थी !

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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