आज कैसी सब्जी बनी है सर्वथा…? मुंह बनाते हुए समीर ने कहा ….. होठ बिचका कर बिटिया अनन्या ने भी समर्थन किया ….!
देखो समीर , ….अब तो देश-विदेश सभी जगहो पर कार्य की गुणवत्ता के मद्देनजर , कार्य की अवधि कम करने की सोच रहे है….।
बस एक हम गृहणी के कार्यों के बारे में कोई न्याय नहीं करता …..तिरछी नजर से पति की ओर देखते हुए सर्वथा ने कहा ….!
ये रोज-रोज का खाना बनाना कभी-कभी जी ऊब जाता है समीर…. अब हर रोज वो उत्सुकता थोड़ी ना रहेगी…. यदि बीच-बीच में ब्रेक मिलता रहे तो उत्सुकता , स्फूर्ति दुगना हो जाता है…. पर इस बारे में कोई सोचे तब ना…. एक बार और सर्वथा ने कटाक्ष किया….!
अरे मम्मी …. ये खाना बनाना भी उतना पहाड़ नहीं है जितना आप बता रही हैं , बिटिया ने तपाक से कहा….
अच्छा चलिए ….कल सवेरे से शाम तक आपकी छुट्टी ….हफ्ते में एक दिन रसोई मैं संभाल लूंगी और रविवार को पापा….. क्यों पापा….? अनन्या ने पापा से सहमति लेनी चाही …!
बिल्कुल…. मैं तैयार हूं …. समीर ने भी सहमति में हामी भर दी…. देखो सर्वथा… अब हमें दोष मत देना तुम्हारे साथ भी न्याय हो गया ना …..और सब हंस पड़े….।
सुबह से सारी चीजे पूछ पूछ कर…. कौन कितना रोटी खाता है… से लेकर कितना चावल बनाऊं ….जैसे ना जाने कितने सवालों के जवाब सर्वथा देती गई ….कभी-कभी तो सर्वथा को लगता ….इतना माथापच्ची करने से बेहतर मैं ही फटाफट खाना बना लेती….. पर नहीं…. अच्छा है इसी बहाने मिलकर काम करने वाली भावना का भी विकास होगा …जो बहुत जरूरी है ..!
सबक ( अपने लिए खुद लड़ना पड़ता है ) – डॉ कंचन शुक्ला : Moral Stories in Hindi
ले देकर रसोई का काम निपटाकर तौलिया से माथे की पसीना पोछती हुई अनन्या जैसे ही बाहर आई…..
आदतन दरवाजे पर रोटी के इंतजार में खड़ी गाय को देखकर अनन्या के मुंह से निकला….. तो अब ये भी रोटी खाएंगी….. ये मम्मी भी ना…. सबका आदत बिगाड़ कर रखी है….!
लेकिन… कहीं ना कहीं गाय को रोटी का इंतजार करता देख अनन्या मुस्कुराई और बोली…..
हे गौ माता ….आज माफ कर दीजिए….. मैं तो आपके लिए रोटी बनाई ही नहीं हूं…. और फिर बागान से एक मुट्ठी घास तोड़कर गाय को खिला ही रही थी तब तक बगल से आवाज आई भूखे को रोटी दे दो मालिक….।
ओह मम्मी….माफ कीजिए …आपके साथ न्याय करने के चक्कर में ये भिक्षुक और गाय के साथ अन्याय हो रहा है….. सर्वथा का हाथ अपने हाथों में लेते हुए अनन्या ने कहा…..
सॉरी मम्मी…. पूरे घर की जिम्मेदारी निभाना कोई मामूली काम नहीं है… आप ठीक कहती हैं….
” गृहणी का काम घंटे निर्धारित कभी नहीं कर सकते “…!
सर्वथा के होठों पर एक विजयी मुस्कान थी ,चलो… देर आए…दुरुस्त आए …… इन्हें समझ में तो आया गृहणी होना कोई मामूली बात नहीं है…!
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना)
संध्या त्रिपाठी