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वर्षों हुए पीहर गए सोचती हूं हो आऊं,जब से तुम्हारे बाबू जी नही रहे गई नहीं।कहते हुए ए टी एम कार्ड पकड़ाया और कहा लो राम पांच हजार रूपए निकाल लाओ।जिसे पास बैठा कुक्कू भी सुन रहा था ।
हां ये सुन राम के हाथ पैर जरूर फूलने लगे।
और कल का पूरा दृश्य आंखों के सामने घूम गया
पर चुपचाप कार्ड पकड़कर स्कूटर स्टार्ट किया और पैसे निकालने चला गया।
इस बीच सविता उठी और सूटकेस तैयार करने में लग गई और कुक्कू भी उठकर अपने कमरे में चला गया।
एकाध घंटे में सारी तैयारी हो गई।
रमेश भी पैसे निकाल कर रास्ते से रेखा को लेते हुए घर आ गया।
हां सही समझा आप लोगों ने पति पत्नी दोनों वर्किंग है जिसमें पति पहले घर आ जाता है और पत्नी थोड़ा देर से।
इस बीच मेड से लेकर दूध अखबार सब्जी आदि की सारी जिम्मेदारी मां निभाती है।
कौन आया कौन गया मतलब कुल मिलाके घर का देखभाल मां करती है।
ऐसे में ये नहीं कि रेखा काम नहीं करती सब करती है हां जिम्मेदारियों का अहसास नहीं हुआ।
क्योंकि आज भी सब कुछ मां देखती है।
और आते ही सामने वी आई पी देखी तो बोली
मां कौन आया है तो उन्होंने कहा कोई आया नहीं मैं जा रही हूं।
इस पर वो आश्चर्य से बोली , कहां अरे नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता आव देखा न ताव बस बोल गई।
आप चली जाएगी तो कुक्कू और घर का क्या होगा कौन देखेगा इन्हें।
हम दोनों तो रहते ही नहीं दिन भर।
फिर थोड़ा सचेत होते हुए कि शायद वो कुछ ज्यादा ही बोल गई।
यदि उसे नौकरी के अलावा हर जगह जाने का मन करता है और जाती भी है तो वो क्यों नहीं।
नौकरी नहीं करती तो क्या हुआ।उनका भी तो मन करता है कहीं जाने आने का।
फिर इस तरह आखिर हमारा ध्यान अब तक क्यों नहीं गया।
हम भी न कितने स्वार्थी हो गए हैं।
अपने स्वार्थ में ध्यान ही नहीं रहा कि वो तो कुछ बोलेगी नहीं इसके लिए हमें ही ध्यान देना होगा।
और चुपचाप कमरे में चली गई।
वहां का दृश्य देखकर भयभीत हो गई कुक्कू सिसक सिसक कर रो रहा था।
आम तौर पर अक्सर ये होता था कि जब वो आती तो वो सो चुका होता और जाती तो सो रहा होता।
इसलिए उसका मिलना अधिकतर रविवार को ही पूरी तौर से हो पाता।
पर आज सिसकते हुए देखकर क्या हुआ क्यों रो रहे हो पूछने पर पता चला।
दादी के लिए रो रहा है।
उसने कहां मां तुम तो चली जाती हो।जब ये भी चली जाएगी तो हमें कौन दूध पिलायेगा,नहलाएगा,और पेपर ,मेड, सब्जी लेने का काम कौन करेगा।
ये सुन लो संन्न रह गई।
और उसे इस बात का अहसास हुआ कि मुझसे ज्यादा उसे दादी की जरूरत है।
इस पर उसने उसे गले लगाते हुए कहा।कोई बात नहीं बेटा मैं उतने दिन की छुट्टी ले लूंगी।
दादी को चूम आने दो।वो दिन भर घर में रहती है।
आखिर उनका भी तो मन करता होगा कहीं जाने आने का।
पर बाल मन वो क्या समझे इन सब बातों को।
सुबह उठा तो सोचा चलो हर बार दादी मुझे बाल दिवस पर कोई न कोई तौबा देती थी इस बार मैं उनके रूकने का तौबा मांग लेता है।
ये सोचते हुए उठा और दादी के पास जाकर बोला।
दादी दादी इस बार बार दिवस का तौबा मैं अपनी पसंद का लूंगा देंगी न।
तो वो बोली हां हां क्यों नहीं मांगों
इस पर उनका अश्रु मिश्रित हाथ चूमते हुए बोला तुम! जल्दी आना।
तुम वो खिलौना हो जिसके आग सारे खिलौने बेकार है।
जिसे सुन पास खड़े रमेश और रेखा की आंखों में भी आंसू ला दिया।
और सोचने लगे सच!
बच्चों के लिए दादी बाबा से बढ़कर कोई खिलौना नहीं है।
तभी तो कहूं वो हमारे बिना कैसे रह लेते हैं।
जिसे सुन सविता की आंखें भर आईं।
और गले से लगाते हुए जाने का प्रोग्राम बिना कहे ही कैंसिल कर दिया।
और बाल दिवस के अवसर पर ऐसा नायाब तौहफा पाकर कुक्कू। खुशी से फूला नहीं समाया।